Sunday, 23 April 2017

बगुलों के देश में हंसों का क्या जीना?

1.       
सुनो हंस!
नाहक तुम डींग मारते हो
कूदते-फानते हो
इस सबसे बनावटी दौर में
वास्तविक होने का प्रमाण बांटते फिरते हो  
अपना धवल व्यक्तित्व दिखाकर लोगों को
सौंदर्य का धाक जमाते हो
धीर और शांत होने का स्वप्न दिखाते हो

तुम्हें पता है
कृत्रिमता के युग में
सौंदर्य समय के सस्ते स्तर पर है
सुन्दरता गौरवान्वित हुई है
शरीर सब का तुमसे सुन्दर सफेदी में पलस्तर हैं
सभी चलने लगे हैं मराली चाल
चोंच और चरण में जड़ा प्रकृति-नस्तर है

सहज हुए हैं सभी
इन दिनों के माहौल में
नम्रता सबके हृदय में विराजमान है
अपना स्थाई-स्थान निर्धारित करके
तुम्हारे सभी क्रियाकलाप लगे हैं ढोंग इन दिनों
संभव है तुम पकड़कर मारे-गरियाए जाओ
लकडबग्घा घोषित करके कर दिए जाओ पुलिस के हवाले
अच्छा है भाग जाओ अभी
बची रहेगी इज्जत सबके दिल में तुम्हारे सुंदर होने की  

तुम्हें पता है?
इन दिनों परिवेश में
सबके जुबान पर है शोषण की खबर
पूरी दुनिया में तुम्हारे धवल होने को लेकर
लगाए जा रहे हैं कयास
सिद्ध किया जा रहा है कांति का घोटाला
मिले सजा तुम्हें सरगना बन सुन्दरता हड़पने की  

सुनों हंस!  
छोड़ दो तुम अपने प्राकृतिक गुण को
और करने लगो कूद-काद बगुलों की तरह
चिल्लाने लगो कौवों की तरह
कुत्तों की तरह ढूँढने लगों खाने के साधन
बंदरों की तरह हँसना
और बिल्लियों की तरह रोने लगो

तुम्हें नहीं पता
गुण के अलग पैमाने निर्धारित किये जा रहे हैं
प्रकृति को कृति और कृति को प्रकृति कहे जा रहे हैं
सच को झूठ झूठ को सच बनाए जा रहे हैं
मुर्दों को जिन्दा घोषित किया जा रहा है
जिन्दे को मुर्दे की तरह दफनाया जा रहा है
यही नहीं विद्या के इस सुनहरे दौर में
जिन्दा रहने वालों को मरने का तरीका सिखाया जा रहा है

यह भी तुम्हें पता होना चाहिए
इस नये युग की संस्कृति की परिभाषा भी
मुर्दा अट्टहास करे उसे सभ्य कहा जा रहा है
जिन्दा जीवित रहने के अधिकार की मांग करे
भरी सभा में असभ्य ठहराया जा रहा है
यहाँ नहीं गुजारा कपड़े पहनने वालों की
नंगों का शहर बसाया जा रहा है  
  
कुछ ऐसा भी किया जा रहा है प्रयास
तुम्हारे इस सत्य-स्थापित देश में
असुंदर दिखने वाले पंक्षियों को   
उनका हक़ मिलना चाहिए
उसकी जगह तुम और
तुम्हारी जगह उनको होना चाहिए
तुम चाहते हो तो छोड़ सकते हो यह लोक  
बगुलों के देश में हंसों का क्या जीना?  

2.  
\
सुनो हंस!
तुम तलाश सकते हो अपने लिए
देश का कोई और दूसरा कोना

हमारी बस्ती में ही नहीं
किसी की भी बस्ती में नहीं बची  
कोई जगह तुम्हारे लिए

तुम आते हो
तो सूल सा उठता है हृदय में
जी करता है कत्लेआम हो जाए अभी

तुम्हारा चलना
देखना, और रुकना भी
मन में संशय बन कर उभर रहा है

नहीं देखना चाहता कोई
तुम्हारा सभ्य रूप
इस असभ्यता के सबसे सुन्दर दौर में |

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