Saturday 25 June 2022

एक जरूरी और आवश्यक कथाकार : रूपसिंह चंदेल

 पिछले दो-तीन वर्षों से रूपसिंह चंदेल की कहानियों का पाठक रहा हूँ| अभी भी उनकी कहानियों पर अध्ययन चल रहा है| कथा-तन्त्र और मूल्यांकन-तन्त्र पर जब विचार करता हूँ तो हैरानी होती है कि आखिर इतने सक्रिय और लगभग जरूरी विषयों पर केन्द्रित लेखन करने वाला साहित्यकार कैसे उपेक्षित हो सकता है? वैसे उपेक्षित शब्द लिखना मेरी नज़र में जायज नहीं है क्योंकि कथाकार लगातार सक्रिय है और बहुत महत्त्वपूर्ण विषयों पर न सिर्फ लेखनी कर रहा है अपितु परिवेश को भी रचनात्मक बनाए हुए है|

इधर उनकी कहानियों को पढ़ते हुए मैं देख रहा हूँ कि वास्तविक भारतीय पृष्ठभूमि की कथात्मक प्रस्तुति उनके द्वारा हो रही है| वैसे तो इधर का यथार्थ यह है कि पात्रों को फ़ुटबाल बनाकर प्रस्तुत किया जा रहा है कहानियों में| न तो कहानी का सम्बन्ध यथार्थ लोक से बन पा रहा है और न ही तो कथाकार की| बावजूद इसके वह बड़े हैं| उन पर चर्चाएँ हो रही हैं| सेमीनार करवाए जा रहे हैं विशेषांक निकल रहे हैं| रूपसिंह चंदेल इन सबसे अलग होकर अपनी ज़मीन को विस्तार देने में सक्रिय हैं| यह सक्रियता वास्तविक चरित्र और यथार्थ परिदृश्य को गंभीरता देने में बनी हुई है इसके लिए उन्हें
बधाई
दी जानी चाहिए|



एक-दो विषय मुझे इनकी कहानियों में याद आ रहे हैं| पहला तो प्रेम| प्रेम को लेकर आलिंगन-चुम्बन की नवीन परंपरा में इनका मन नहीं रमता है| वैसे तो जिस तरह बेड-बिस्तर-जिस्म का समीकरण अन्य कथाकारों द्वारा इधर के दिन फिट किया गया उसमें पाठक भी अपना स्थाईत्व तलाशने लगा था लेकिन जिस तरह से नंगे जिस्म को देखने के बाद यथार्थ मनःस्थिति में उबकाई आना तय है उसी तरह से पाठक ऊबा भी है| रूपसिंह चंदेल ऐसे प्रेम को लेकर आते हैं जिसमें पड़ने के बाद आकर्षण बढ़ता जाता है| सब कुछ लुटाकर तवायफ बनने की अपेक्षा बहुत कुछ बचाकर 'सही और जरूरी' बने रहने की कवायद इनके यहाँ विशेष है| प्रेम के लिए जिन प्रतीकों, बिम्बों, व्यवहारों आदि का प्रयोग रूपसिंह चंदेल करते हैं वह अश्लील न होकर समाज में स्थायित्व प्राप्त विषय हैं| इनकी कहानियों को पढ़ते हुए ऐसे बहुत से प्रेम-हृदय को रमते-विलखते महसूस सकते हैं जो प्रेम-प्रलाप से जुड़े होने के बावजूद भी घर-परिवार-समाज की सीमाओं और जरूरतों से बँधे हुए हैं|
दूसरा महत्त्वपूर्ण विषय बुजुर्ग-विमर्श| इधर कई कहानियाँ बुजुर्गों की दयनीयता और हाशिएगत जीवन को केन्द्र में लेकर लिखी गयीं और लिखी भी जा रही हैं| अमूमन तो हर स्थिति के लिए युवाओं को कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है और बुजुर्गों की यथास्थिति के लिए उन्हें ही दोषी माना जाता है| रूपसिंह चंदेल इन प्रथा को थोडा बदलने की कोशिश करते हैं| इनके यहाँ का बुजुर्ग हर समय असहाय नहीं रहता है| वह निपट दयनीयता में रोने-धोने से बेहतर परिवर्तन और जागरूकता का मार्ग अपनाता है| सफल भी होता है| यह सफलता कई अर्थों में कथाकार की संघर्षधर्मिता को परिभाषित करती है| जहाँ तक बुजुर्ग-उपेक्षा का यथार्थ है उसे भी रूपसिंह चंदेल नकारते नहीं हैं अपितु प्रमुखता से लाकर आपके सामने रख देते हैं| दयनीय और सक्रिय बुजुर्ग-अवस्था का परिवेश इन्होने अपनी कहानियों में निर्मित किया है| यह निर्माण सही मायने में ग्रामीण और शहरी जीवन को करीब से देखने की प्रवृत्ति से संभव हुआ है|
भ्रष्टाचार को लेकर कोई भी जागरूक कथाकार चुप नहीं रह सकता है| रूपसिंह चंदेल तो बड़ी गंभीरता से इस विषय को अपनी कहानी का आधार बनाते हैं| इस राह उनकी एक बड़ी खासियत यह है कि वे महज आरोप लगाकर दूर नहीं हो जाते हैं| उसका निराकरण तो तलाशते ही हैं उसके तह तक जाकर अपराध के कारणों की गंभीर शिनाख्त भी करते हैं| अफसरशाही, पुलिस-व्यवस्था, राजनीतिक भ्रष्टाचार, अकादमिक जगत के भ्रष्टाचार से लेकर छोटे-छोटे अपराधी बनने तक के कारण और निवारण उनकी कहानियों में देखा जा सकता है|

इन सबको देखते हुए कहीं भी यह एहसास नहीं होता कि आप कथा की ज़मीन से खिसक कर दूर चले गये हैं| कहानी की तरह के होने में जिस भाव और भाषा की जरूरत होती है वह रूपसिंह चंदेल के यहाँ विशेष है, यह हर पाठक जो उनकी एक भी कहानी पढ़ा होगा, बता सकता है|
संवाद-व्यवस्था का क्षीण होना भी आज की एक बड़ी समस्या है| रूपसिंह चंदेल इस समस्या की जड़ तक पहुँचना चाहते हैं| वह रिश्तों के ऊपरी छिलके से मतलब नहीं रखते जैसा कि आजकल के बहुत से कथाकारों में देखा जा रहा है| मैं ऐसे कथाकारों का नाम इसलिए यहाँ नहीं ले रहा हूँ क्योंकि वह सब लेख का हिस्सा बन चुके हैं| जिन वजहों से रिश्तों में खटास उत्पन्न हो रही है और लोग अकेले जीवन जीने के लिए अभिशप्त हो रहे हैं उन कारणों की पहचान रूप के यहाँ वर्तमान है| नोकरीपेशा लोगों की अलग समस्याएँ हैं तो घर-गृहस्थी में जीवन यापन करने वालों की अलग समस्याएँ हैं| इन समस्याओं को पकड़ने के लिए कथाकार गाँव और शहर दोनों जगह से घटनाओं का चयन करता है| जो रोजगार संपन्न हैं और जो बेरोजगार हैं उनके अहम् भी कहीं न कहीं रिश्तों के टूटने के विशेष कारण हैं| रूपसिंह चंदेल समाज के व्यवस्थागत समस्या को दरकिनार करके वैयक्तिक दुखों का जंजाल न खड़ा करके आमजनमानस की मानसिकता में परिस्थितियों का निराकरण खोजते हैं|
विषय और भी हैं| और भी समस्याएँ हैं जिन पर रूपसिंह चंदेल की लेखकीय गंभीरता बनी हुई है| उन पर पहुँचना और उन्हें देखना-परखना जरूरी है| कुछ इने-गिने जुगाड़बाज़ रचनाकारों पर मंडराते रहने से ही कथालोचना का कार्य समाप्त नहीं हो जाता है| सही तो यह है कि कथा साहित्य पर आज भी गंभीर कार्य करने वालों की बड़ी कमी है| जो लिख रहे हैं वह कहानियों के सारांश अधिक बता रहे हैं आलोचना या मूल्यांकन कम| ये समस्याएँ दूर होनी चाहिए| इसका एक सही और अच्छा विकल्प यह हो सकता है कि जरूरी रचनाकारों तक अपनी दृष्टि ले कर जाएँ