Thursday 9 May 2019

उन्हें उजाड़ो और उनके घर में आग लगा दो (अलवर गैंग रेप घटना)


यह सहसा विश्वास नहीं होता कि हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं| कोई कब और कहाँ घेरकर बेइज्जत कर दिया जाए कुछ नहीं कहा जा सकता| हम एक ऐसी वहसी दुनिया में घिरते और सीमित होते जा रहे हैं कि रक्षा-सुरक्षा पर बात करना भी महाअपराध की श्रेणी में आता जा रहा है| कुछ भी हो यह किसी तरह से बर्दास्त नहीं है| नहीं हो रहा है| कैसे और किन हालातों में होगा परिवार| पति और पत्नी पर क्या बीत रही होगी यह न तो हम कह सकते हैं और न ही तो आप| यह उसकी आत्मा से पूछा जाना चाहिए जिसके साथ यह सब हुआ|

देश लोकतंत्र का पर्व मनाने में व्यस्त है| राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप जोरों पर है| इतनी जोरों पर कि अपराध को नियंत्रित करने के लिए पुलिस नहीं है और यदि है भी तो उसके पास समय नहीं है| अपने ऊपर हुए वहसी हमले की फरियाद लेकर पुलिस के पास दंपत्ति जाते भी हैं तो यह कहकर कार्यवाही करने से इनकार कर दिया जाता है कि अभी चुनाव ख़तम हो जाए फिर कुछ किया जाए| हम तीन ही हैं बाकी सभी की ड्यूटी लगी है| क्या राजस्थान सरकार के पास इतने भी पुलिस नहीं हैं कि वे ऐसे जघन्य अपराधों पर अविलम्ब कार्यवाही कर सकें|


सवाल यह नहीं है कि ऐसा क्यों कहा गया, यह भी है कि जिस पार्टी को लेकर लोग बड़े-बड़े आशाएं पाल बैठे हैं, उस पार्टी के सरकार में यह सब कुछ हुआ लेकिन राजनीतिक घाटे का सामना न करना पड़े, इसलिए पूरी सरकार सोई रही| उसके कारिंदे सोये रहे| हमारे यहाँ के सूचिबाज साहित्यकार बंधू भी, जो कांग्रेस पार्टी के दलाल बनकर जनता को बरगला रहे हैं, सूची पर सूची निकाले जा रहे हैं, लगभग मौन की स्थिति में रहे| अब तक कहीं यह घटना भाजपा शासित प्रदेशों में हुआ होता तो ये पीछे ही पड़ गये होते| मोमबत्ती की लाइनें लगा दिए होते| मानवाधिकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटा आए होते|

खैर यह तो इनकी नियति है ऐसा करना लेकिन हमें अब होशियार हो जाना चाहिए| इस दृष्टि से बगैर किसी लापरवाही के जनता को अपनी जवाबदेही स्वयं तय करनी होगी| भाजपा हो या कांग्रेस या फिर अन्य कोई पार्टी, वह जनता की सुरक्षा का जिम्मा नहीं ले पा रही है, नहीं ले सकती| यह समय है जब सभी स्वार्थों को दरकिनार रखते हुए ऐसे मामले में संलिप्त अपराधियों को दौड़ाकर पीटा जाए| उनके ऊपर तेज़ाब डालकर सार्वजनिक रूप से जला दिया जाए| यह समय न तो पुलिस का सुनने का समय है और न ही तो किसी राजनीतिक दल से आश रखने का माहौल|

बुद्धिजीवियों से तो कतई ऐसे मसले पर किसी प्रकार की अपेक्षा करना गलत है| वे कुछ नहीं करेंगे| उनसे यदि आप सम्वाद रखने की कोशिश करेंगे तो वे भाजपा और कांग्रेस के समय के अपराधों की गिनती लेकर बैठ जायेगें| यह भी एक बड़ी सच्चाई है कि पीड़ित दंपत्ति न तो मुसलमान परिवार से है और न ही तो उच्च तबके से कि उस पर चर्चाओं का माहौल गरम हो सके और अपराधियों को सजा दिलाई जा सके| वे दलित परिवार से सम्बन्धित हैं| इसलिए अक्सर सच का पहरा देने वाले लोगों को कोई लाभ यहाँ नहीं मिलेगा इसलिए सभी चुप हैं और मौन रहेंगे| ये जितने भी हैं सबके सब नोट और वोट के नशे में चूर हैं| हो सके तो ऐसे साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों को भी दौड़ाकर घसीटने का उपक्रम किया जाए जो ऐसी सरकारों के परिप्रेक्ष्य में वकालत करते पाए जाएं|

इस दंपत्ति ने भला क्या बिगाड़ा था किसी का? अपने मोटर साइकल से आ रहे थे लेकिन बदमाशों ने जो क्रूरता दिखाई वे उसके शिकार हुए| अब जब पूरा परिवार बेइज्जत हो चुका है, पति-पत्नी मुंह दिखाने के लायक नहीं रह गये हैं फिर राजनीतिक दलों के चाटुकार सम्वेदना दिखा रहे हैं| जनता को चाहिए कि उन्हें ही दौड़कर दुरुस्त करे जो राजनीतिज्ञ और दलाल अब आन्दोलन-सक्रियता का बहाना लेकर पार्टी हितों को साध रहे हैं|

मेरे देशवासियों अब तुम्हें स्वयं सरकार बनना होगा| अपने अधिकार और सुरक्षा के नाम पर स्वयं जागरूक होना होगा| तुम्हारे साथ कोई नहीं है, तुम अकेले हो| यह समाज तुम्हारा नहीं है चोरों और लुटेरों का है| यहाँ जनहित के नाम पर पैसा कमाने वाले भाड़-साहित्यकार इकठ्ठा हो जाएंगे लेकिन तुम्हारे सुरक्षा के नाम पर संघर्ष करने वाले जन नहीं मिलेंगे| तुम उठो और ऐसे नरपिशाचों को ठिकाने लगाओ| उन्हें उजाड़ो और उनके घर में आग लगा दो| यदि ऐसा करते हो तो दूर तक लोग ऐसे वारदात को अंजाम देते हुए 100 बार सोचेंगे|


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