Saturday 16 October 2021

जिस दिन हम स्वप्नों की खेती करना सीख लेंगे, परिवेश उसी दिन से समृद्ध होने लगेगा|

 बिम्ब-प्रतिबिम्ब प्रकाशन को लेकर मेरे मन में कुछ चलता रहता है| स्वप्न देखता हूँ कि इस प्रकाशन के माध्यम से कई विशेष रचनाकारों को ला रहा हूँ| उन्हें, जिनके पास पैसे नहीं हैं लेकिन शब्द-सामर्थ्य है| उन्हें, जो बड़े पद पर नहीं हैं लेकिन समन्वय और सहभागिता से भरे हुए हैं|

बहुत कुछ सोचता रहता हूँ अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद भी| किताबों को प्रकाशित करना और फिर उन्हें पाठकों तक पहुंचाना भी ज़िम्मेदारी है हमारी| मैं मानता हूँ और जब स्वयं किताबों का पैकेट बनाता हूँ और पोस्ट करता हूँ तो बहुत आनंद भी मिलता है| यहाँ भी स्वप्न देखता हूँ कि बिम्ब-प्रतिबिम्ब की किताबें वे लोग भी पढ़ रहे हैं जिन तक बड़े प्रकाशनों की किताबें नहीं पहुँच पा रही हैं| जो ज्यादा पैसा खर्च करने की स्थिति में नहीं हैं लेकिन किताबों को पढ़ना चाहते हैं| बहुत संतोष मिलता है ऐसा देखते हुए|
बिम्ब-प्रतिबिम्ब मेरा स्वप्न है| मैं बिम्ब-प्रतिबिम्ब का| कभी-कभी ऐसा भी लगता है| नाम अलग है लेकिन लगाव एक-सा| यह सच है कि पैसे दोनों के पास कम हैं लेकिन इच्छाएं एकदम स्वच्छ पानी-सा| उत्साह अधिक है| व्यस्तता दोनों के पास हैं| दोनों अपनी तरह की दुनिया का निर्माण चाहते हैं और अपनी तरह से ही सक्रिय हैं|
जुड़ते समय इतना देख कर जुड़ें कि अनिल फिर भी बिम्ब-प्रतिबिम्ब से अलग है| कई बार समस्या वहाँ हो जाती है जहाँ लोग अनिल और बिम्ब-प्रतिबिम्ब को एक समझ कर जुड़ते हैं| अनिल का काम विशेष रूप से आलोचना और प्राध्यापकीय सरोकारों से जुड़कर चलता है जबकि बिम्ब-प्रतिबिम्ब प्रकाशन का कार्य प्रकाशन से सम्बंधित है| इतना-सा ध्यान रखेंगे तो बिम्ब-प्रतिबिम्ब और अनिल दोनों की इच्छाएं पूरी होती जाएँगी और आपकी आशाएं भी|
बहुत-से कार्य ऐसे हैं जो सिर्फ और सिर्फ बिम्ब-प्रतिबिम्ब के माध्यम से पूर्ण होने हैं और ऐसे भी कार्य हैं जो मात्र अनिल के माध्यम से| मेरी कोशिश है कि इन दोनों के बीच के दायरे बने रहें और सरोकार भी| मैं चाहकर भी जरूरी और विशेष रचनाकारों की किताबें नहीं छाप सकता लेकिन बिम्ब-प्रतिबिम्ब कर सकता है| यदि आपके पास ऐसे रचनाकार हैं तो आप मुझसे संपर्क करा सकते हैं| समय जरूर लगेगा मेरे पास लेकिन पूरा किया जाएगा, यह तय है|
कई बार कुछ ऐसे लोग जुड़ जाते हैं जो एक-दो दिन या दस-बारह दिन में ही हीरो बनकर छा जाना चाहते हैं| साहित्य जगत में उन्हें लगता है कि वे अब बहुत बड़ा मुकाम प्राप्त कर लेंगे| आप प्राप्त करिए मैं कुछ नहीं कह रहा हूँ लेकिन जब भी मेरी दुनिया में कदम रखिये तो बाकायदा समय निकालकर| आपके पास समय होगा तो मैं अपना समय भी उसमें जोड़ दूँगा| यदि आपके पास समय न होगा तो मैं तो वैसे ही चौबीसों घंटे व्यस्त रहने वाला इंसान हूँ|
बिम्ब-प्रतिबिम्ब मेरे लिए एक माध्यम भर नहीं है| अब जीवन-शैली है| चाहकर भी इसे छोड़ नहीं सकता| अपनी ऊर्जा इसे समाप्त करने में न लगाइए| सब चीजें नष्ट हो जाती हैं लेकिन स्वप्न नहीं नष्ट होते| वह जीवित होते हैं| बिम्ब-प्रतिबिम्ब की संकल्पना ऐसी ही संकल्पना है जो नष्ट होने की बजाय और अधिक विस्तृत होती जा रही है| यदि आपके पास भी कोई स्वप्न है तो इस स्वप्न में लाकर मिलाकर दीजिये| नयी दुनिया बनेगी और फिर कुछ नए स्वप्न जन्म लेंगे| जिस दिन हम स्वप्नों की खेती करना सीख लेंगे, विश्वास मानिए परिवेश उसी दिन से समृद्ध होने लगेगा|
तो आइये एक कदम के साथ दो-चार कदम और बढ़ते हैं| नए स्वप्न और नई दुनिया की तलाश में| हम सफल न होंगे तो असफल भी न होंगे| पहले से कहीं अधिक बेहतर जरूर होंगे|

No comments: