Monday 10 April 2017

सुनो सांड यह मनुष्य का समाज है


सांड चाहता है
स्वच्छंद होकर जीना  
स्वच्छंद होकर रहना
स्वच्छंद होकर चिल्लाना
स्वच्छंद होकर बढ़ते रहना 
स्वच्छंद होकर चलते रहना
स्वच्छंद होकर घूमना पूरे परिवेश में
स्वच्छंद होकर घूरना पूरे आवेश में 

वह नहीं चाहता
उसके जीने
उसके रहने
उसके चिल्लाने
उसके बढ़ने
उसके चलने
उसके घूमने
उसके घूरने में
बाधा कोई और बने

वह चाहता है
घर-बार को उजाड़ दे
वह चाहता है छान-छप्पड़ को फाड़ दे
वह चाहता है पेड़-पौधे को रौंद दे
वह चाहता है
कि वह सब कुछ कर दे
जिसमें उसे संतोष मिले
वह नहीं चाहता
उसके यह चाहने में
बाधा कोई और बने


उसके यह सब चाहने में
बल है उसके पास
पूरे परिवेश की फसलों पर
एकाधिकार समझता है वह
कोई उसे रोके
कोई उसे टोके 
नहीं कर सकता बर्दास्त वह और
खदेड़ लेता है मारने के लिए
सभी जन-समाज-जीवन को
वह चाहता है स्वच्छंद होकर जीना
बंधन उसे स्वीकार नहीं

तो सुनों सांड
यह भी मनुष्य का परिवेश है
नियम और कायदे हैं यहाँ के
बकायदे चलना होता है उनसे जुड़कर
जो नहीं चल पाते
दाग दिया जाता है उन्हें
छुट्टू सांड से किया जाता है विभूषित और
कर दिया जाता है हवाले सरकार के

सुनों सांड
छुट्टू सांड इस तरह हो जाता है बाहर
पूरे सामाजिक व्यवहार से
आचार से, विचार से, संस्कार से
हो जाता है अलगाव उसका पूरी तरह
न कोई मारता है
न कोई डांटता है
न कोई चीखता है
न कोई चिल्लाता है
बंद कर देता है बोलना एकदम से 

सुनों सांड
छुट्टू सांड की उपमा से विभूषित हो
जंगल-वन में रहने की इच्छा पूरी हो,
विधि विधान से इसलिए 
छोड़ दिया जाता है उसे घूमने-फिरने के लिए

यह मनुष्य का आतंक नहीं है सांड
उसके समाज का नियम है
स्वभाव है उसका
वह चाहता है बनाने का अच्छा विवेक मिले 
न कि उजाड़ मचाने के लिए खुला परिवेश मिले


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