Thursday, 3 June 2021

यह साहित्यिक हादसों का शहर है जालंधर

 मैं कुछ भी कहूँ तो आप कहेंगे कि कहता है लेकिन कहना पड़ता है| हर क्षेत्र में जो कुछ होता है सबको पता चल जाता है| साहित्य के क्षेत्र में जो कुछ हो रहा है बहुत कम लोगों को पता चल पाता है| ऐसा लोग कर क्यों रहे हैं यह एक सवाल हो सकता है लेकिन ऐसा ही लोग कर रहे हैं, यह एक प्रवृत्ति बन चुकी है|


जालंधर की साहित्यिक प्रवृत्ति के विषय में बहुत अच्छा महसूस नहीं हुआ मुझे| आज भी नहीं होता है| नहीं हो रहा है| यह शहर महज कुछ लोगों की वजह से अपनी विश्वसनीयता खोता जा रहा है| कुछ लोग ऐसे हैं जो सही सही साहित्य शिरोमणि का पुरस्कार पा चुके हैं| अब यह पुरस्कार क्यों मिले हैं यह तो मुझे नहीं पता लेकिन जो लक्षण इन दिनों दिखाई दिए उससे ये प्रश्न जरूर उठते हैं कि ऐसे लोगों को ही क्यों मिला?
पिछले कुछ महीनों से यहाँ शीतयुद्ध की स्थिति बनी हुई है| कोई किसी तरह से शिकायत कर रहा है तो कोई किसी बात को लेकर रोना रो रहा है| ठीक है कि मैं सबको सुधार नहीं सकता लेकिन कुछ जो गलत हो रहा है उस पर बोल तो सकता ही हूँ| जालंधर के कुल पन्द्रह किलोमीटर के इर्द-गिर्द रहने वाले लोग सौ खण्डों में बंटे हैं तो अपनी दकियानूसी स्वभाव को लेकर| अपने आप को इतना मजबूत बना लिया है इन्होने कि कोई इन पर बोलता भी नहीं| चाहे जो कर लें या जो भी करें|
यहाँ की स्थिति तो यह है कि 2018 में एक पुस्तक प्रकाशित होती है| पुस्तक का लेखक स्वयं इस बात की घोषणा करता है अपने फेसबुक पेज पर| उसका लोकार्पण भी होता है| जश्न भी मनता है| यह शहर के सभी साहित्यकारों को पता होता है| 2018 के बाद 2021 में उस पुस्तक का आवरण पेज लेखक और जिस पर पुस्तक लिखी जाती है वह और उसका प्रकाशक फिर उसी की फोटो शेयर करते हैं और यह दिखाते हैं कि जल्द ही यह आलोचना पुस्तक प्रकाशित होने वाली

है| जिसके ऊपर किताब लिखी जाती है वह भी उसी निर्लज्जता से उसका स्वागत करता है| और तो और एक और शिरोमणि साहित्यकार हैं जो शिरोमणि साहित्यकार द्वारा शिरोमणि साहित्यकार पर पुस्तक लिखने को पंजाब की आलोचना के लिए शुभ बताया है, वह इसे उतनी ही गंभीरता से शेयर करते हैं| इन सभी का स्क्रीन शॉट यहाँ शेयर किया गया है| आप स्वयं देख सकते हैं|

यह देखने में एक सामान्य घटना है लेकिन सही अर्थों में साहित्यिक अपराध की श्रेणी में हैं ये आदतें| ये गलत परंपरा की शुरुआत है जो आने वाले दिनों में उदहारण के रूप में अपनाया जा सकता है| आपको विश्वास नहीं होगा इसलिए वह स्क्रीन शॉट मैं यहाँ संलग्न कर रहा हूँ| कहने को आप कह सकते हैं कि यह उसका दूसरा और तीसरा संस्करण है लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है| कहीं भी इसका उल्लेख नहीं है| यह क्या हो रहा है? कुछ नहीं, बस पाठकों के साथ मजाक चल रहा है| यह सब पाठकों को महज छल रहे हैं| यह छलने की प्रवृत्ति समाप्त होनी चाहिए|
सवाल क्या यह नहीं है कि ऐसा क्यों किया जा रहा है? फेसबुक पर कमेन्ट और लाइक मात्र पाकर क्या और कौन-सी सम्पत्ति जुटा लेंगे भला? कोई युवा रचनाकार करता तो मान भी लिया जाता कि क्या पता उसे कुछ पता न हो साहित्यिक नैतिकता के बारे में लेकिन यही कार्य 80 वर्ष के बुजुर्ग रचनाकारों द्वारा किया जा रहा है| यह कैसा संस्कार दिया जा रहा है आखिर? कैसी परंपरा विकसित की जा रही है? क्या शिरोमणि पुरस्कार इसीलिए मिलते हैं? सोचिए और सोचते रहिये| यह साहित्यिक हादसों का शहर है जालंधर| यहाँ कभी भी आइये तो षड्यंत्रकारी रचनाकारों से बचकर रहिये|

2 comments:

रूपसिंह चन्देल said...

वास्तव में यह अचंभित करने वाली बात है। इससे क्या हासिल होने वाला है!

अनिल पाण्डेय (anilpandey650@gmail.com) said...

सर क्या पता नोबेल पुरस्कार की मंशा हो...