कभी फुर्सत मिले तो चुपचाप किस्मत के बदलते समीकरण को देखिये और महसूस कीजिये| कुछ दिन पहले मैंने कहा था कि हम पढ़ते ही इसलिए हैं कि एक ठीक ठाक नौकर बन जाएँ| सच यह भी है कि किस्मत, रुतबा और पैसा का कोई सम्बन्ध नहीं है| आप यदि फेमस बनना चाहें तो तमाम राहें आपका इंतज़ार कर रही हैं| रोड से उठकर महलों में पहुँचते हुए मैंने देखा है| कहानी अधिक पुरानी नहीं पिछले वर्ष से शुरू होकर इस वर्ष तक जारी है|
साहिर लुधियानवी अतीत भले हैं लेकिन बदलते समीकरण के एक स्थाई उदाहरण तो हैं ही| रानू मण्डल का उदाहरण आप सब के सामने है| अभी काचा बादाम के गायक भुबन बडायकर को भी देखा| एक कोई कैलाश खेर हैं उनके गीतों को सुबह ही Paramjeet Singh Kattu सर ने सुनाया| उनसे सम्बन्धित कहानी भी सुनाई इन्होने| निश्चित ही ये प्रतिभाएँ आपके विश्वविद्यालय के कैम्पस से नहीं सम्बन्धित हैं और न ही तो किसी इंजीनियरिंग का कोई सर्टिफिकेट है इनके पास| रोड से उठकर सीधे महलों में पहुँचने वाले लोग हैं ये|
हम अच्छे दिनों की तलाश में भटकने वाले निहायत ही पढ़े-लिखे मूर्ख की श्रेणी के लोग हैं| साहित्य में सफलता का स्वप्न संजोए युवाओं के पास तरीके तो हैं, लेकिन मूर्खताओं में कैद रहने वाले कैदखाने अधिक हैं, स्वतंत्रता कम| आप जितने अधिक बन्धनों से मुक्त हैं, स्वतंत्र हैं सफलता की राहें आपके लिए खुली हैं| साहित्य में यह नहीं है| एक अच्छा से अच्छा लेखक भी प्रकाशक-संपादक-आलोचक की दया पर टिका है| यह न कहना कि निराला, कबीर, तुलसी आदि इस मायने में अपवाद हैं, सही बात ये है कि उन्हें भी प्रकाश में लाने का श्रेय इन्हीं लोगों से होकर जाता है|
इधर हिंदी का लेखक सेलिब्रिटी नहीं बन पाया| उनके कहने से कई वर्ष हुए कोई धरना-प्रदर्शन नहीं हुआ| हाय-हाय तो क्या बाय-बाय कहने वाला भी कोई नहीं मिला उन्हें| सौंदर्य की तलाश में इतना बिचारा-सा लगता है यह वर्ग कि जीते-जी सूख गया लेकिन जुल्फों के छाए की सिहरन भी उसे नसीब न हो पाई| कहाँ तो एक डायलोग लिखने वाले को लाखों मिल जाते हैं और कहाँ लाखों रचनाएँ लिखने वाला खुद के लिए एक घर तक नहीं बनवा पाया|
क्रांति और सुधार की बात न कीजिये| परिवर्तन और समाजिक चेतना का हवाला देकर सच को ठुकराने का दुस्साहस आपको और अधिक गर्त में लेकर जाएगा| दुनिया ऐसी ही है| न तो गरीबी ख़त्म हुई और न तो राजाओं का अंत हुआ| भुखमरी में आज भी लोग मर रहे हाँ आज भी महलों में पैसे लुटाए जा रहे हैं| ये जो आदर्श का चोला है न इसी उतार फेंकिये|
तो कुल कहने का अर्थ यह है कि कदम जिधर भी बढ़े उसको बढ़ा दीजिये| पीछे घूमने या कदम हटाने से कुछ होने वाला नहीं है| होगा तभी जब आप दायरों को तोड़ कर आगे बढ़ेंगे| ये दायरे सोच के भी हो सकते हैं और संकोच के भी|
No comments:
Post a Comment