Thursday, 24 July 2014

मै पाती बिन रहा हूँ

छोटे छोटे  बच्चे
 देखते हुए ललचाई आखो से 
देख रहे थे उन सबको 
जो खा रहे थे 
खाते हुए आनंद - मग्न हो गा रहे थे 
धीरे धीरे कुछ उनमे से जा रहे थे, और 
वे बच्चे देख रहे थे 
नीचे गिरी पत्तल और प्लास्टिक  के बोतल उठाते हुए 
उन सबको जो बस खा रहे थे 
रहा नही गया यह दृश्य देख 
पूछ लिया उनमे से एक 
''ये क्या कर रहे हो 
क्यों फालतू में मर रहे हो ''
सीधे हुए बच्चे 
कपड़ा  था नही शरीर पर 
नंगे एकदम , थे एक चड्ढी भर पहने हुए 
देखती रही आखे , देखकर भी , देखते हुए 
बोला एक उनमे से 
देखते नही हो 
मै पाती बिन रहा हूँ 
अपने पूर्वजो की दी हुई थाती गिन रहा हूँ 
यही तो बचाकर रखे थे मेरे लिए 
जन्म लिया इस दुनिया में 
दुनिया ने जीने के सपने दिए  
बिन रहा हूँ उन सपनो के लिए 
शायद उन सपनो में ही मिल जाए कुछ 
जीवन को जीने की लिए 

No comments: