1.
ब्राह्मणों का
जितना विरोध हिंदी साहित्य-जगत में हुआ उतना किसी भी क्षेत्र में क्या हुआ होगा?
यह अलग बात है कि ब्राह्मणों ने हर चुनौती को आसानी से झेला ही नहीं अपितु पूरी
गंभीरता से उसका जवाब भी दिया| यह दौर फिर से उसे तोड़ने और मटियामेट करने का दौर
है| किसी भी रूप में लांछित करने और उपेक्षित करने का दौर है| बावजूद इसके वह उगता
आया| बनता आया और विकसित होता आया|
क्षत्रियों के
संगठित विरोध को राजनीति से लेकर साहित्य तक ब्राह्मणों ने खूब झेला| इतना कि,
उसकी कोई सीमा नहीं है| आज भी ये षड्यंत्र बिछाए जाते हैं, क्यों? यह एक विमर्श का
विषय तो है ही| सर्वविदित है कि जितनी भी लडाइयां हुईं हैं उनमें ब्राह्मणों के
स्थान पर क्षत्रियों का सीधा हस्तक्षेप रहा| समाज में जमीदरी प्रथा अधिकांश
क्षत्रियों ने सम्भाली| जो भी अत्याचार और शोषण हुए उसके सीधे कारण क्षत्रिय रहे
लेकिन मंदिर आदि मसले का सहारा लेकर उसे ब्राह्मणों पर कन्वर्ट कर दिया गया|
इस सच को आज कोई स्वीकार
करने के लिए तैयार नहीं है कि ब्राह्मणों ने हर समय जन-सामान्य की रक्षा-सुरक्षा
को प्राथमिकता दिया है| उसके पास शासन और सत्ता नहीं था, यह भी स्पष्ट है| छोटी
जातियों से लेकर अन्य तबकों को एकबारगी ब्राह्मणों के प्रति भडकाया गया जिसे बड़ी
गम्भीरता से उन्होंने झेला| ब्राह्मणों के प्रति दूधनाथ सिंह, उनके चेले-चपाटी से
लेकर उदय प्रकाश तक की घटिया और विक्षिप्त मनसिकता वाली राजनीति साहित्य में किसे
नहीं पता है?
उदय प्रकाश की
कहानी “पीली छतरी वाली लडकी” आज भी उनकी पशुवृत्ति को दर्शाती है| ब्राह्मण विरोध
की जिस कुकुर-मानसिकता से उन्होंने परोसा चाहते तो बहुत से ब्राह्मण उस तरह का
जवाब दे सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया| क्यों? क्योंकि उन्हें विरोध को
सहना आता है|
2.
ब्राह्मणों ने हर समय अत्याचार
किया है अन्य जातियों पर| आज भी यह अत्याचार
रुका नहीं है| द्विवेदी, शुक्ल,
पाठक, दीक्षित, मिश्रा,
तिवारी, पाण्डेय, चौबे,
चतुर्वेदी, त्रिवेदी, शर्मा
आदि ये जितने भी हैं सभी प्रकार के वैमनस्यता के कारण हैं| ये
न होते तो दुनिया खूबसूरत होती| विभाजनकारी मानसिकता की
शुरुआत इन्हीं से होती है| ये धरती पर रहें अब ऐसा नहीं होना
चाहिए|
ब्राह्मण विद्वान हो,
कवि हो, आलोचक हो यह तो बिलकुल नहीं होना
चाहिए| उनके नाम का गुणगान हो यह तो और भी नहीं होना चाहिए|
हमारे समय के जागरूक लोगों द्वारा उन्हें रोकना होगा| वे जम न पायें इसलिए उनकी जड़ों को काटना होगा| आरक्षण
के विष-बेल को और अधिक धार दिया जाए| राजनीति में नरसंहार को
और प्राथमिकता से लाया जाए|
वे फिर भी न मानें तो सामूहिक
नरसंहार किया जाए उनका| जितनी जल्दी हो सके
इस धरती से रुखसत किया जाए उनको| उनके द्वारा लिखे गये
साहित्य को जलवाया जाए| कूड़े में फेंका जाए| नगर पालिका से कहकर उठवा लिया जाए| यह सब हो और
जल्दी हो|
भारत से जातिवाद को खत्म करना
है|
साम्यवाद को लाना है| लाल सलाम को
प्रतिष्ठापित करना है| बाबू साहबों की ठकुरसोहाती करनी है|
यह सब तभी होगा जब ब्राह्मण नहीं होंगे| यदि
वे रहते हैं तो ये प्रयास कैसे सफल होंगे? इसलिए जागो वीरों
सदियों से जो काम कोई न कर पाया वह अब तुम कर डालो|
3.
यदि यह सब न हो तो प्यारे बच्चों ब्राह्मण और
ब्राह्मणवाद को कोसने से बाज आओ| कुछ काम करो
जिससे कि देश और समाज का हित हो| यह भी पता है कि ब्राह्मणों
का रत्ती भर कुछ नहीं बिगाड़ सकते, लाख चाहने के बावजूद भी| वे अभाव के सागर में
जन्म तो लेते हैं लेकिन स्वभाव उनका समृद्धि का है| स्वयं होते हैं और दूसरों को
भी करते हैं| वे पूरे परिवेश को सुंदर देखना चाहते हैं, चाहते रहे हैं और चाहते
रहेंगे|
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