Sunday, 19 April 2020

दलित साहित्यकारों ने अन्य जातियों के दुःख-दर्द को कितना लिखा?


1.
निराला ने तुलसीदास लिखा राम की शक्ति पूजा लिखा, वे सांप्रदायिक थे, जातिवादी थे| प्रेमचंद सामंतों के मुशी थे| द्विवेदी लोग अपने वर्ग को आगे बढाए| ब्राह्मणों और क्षत्रियों को आगे ले आए| नामवर सिंह और काशीनाथ सिंह की जगह कोई दलित और ओबीसी भी हो सकता था, यह उन्होंने नहीं किया| शुक्ल ने ब्राह्मणों को ही आगे बढ़ाया, सर्वविदित है| परशुराम चतुर्वेदी, रामस्वरूप चतुर्वेदी, जगदीश्वर चतुर्वेदी ये सब हिंदी साहित्य में महज जातिवाद के जरिये आए|

नामवर सिंह भी कुछ ऐसा ही किये| हर समय सवर्णों को लेकर आए| ब्राह्मणों और क्षत्रियों को उन्होंने विभागों में लगवाया| जो विमर्श किये वह सब सवर्ण मानसिकता के तहत किये| आपकी वैचारिकी सहानुभूति का बहाना खोज ही ली है तो ये सभी उसके पैरोकार रहे हैं| इन सभी को पकडिये|

प्रसाद जैसा सांप्रदायिक तो कोई हो ही नहीं सकता| उन्होंने चाणक्य को सर्वश्रेष्ठ बनाया, जबकि वे चाहते तो मरवाकर कहीं फेंकवा सकते थे|  मैथिलीशरण गुप्त भी सांप्रदायिक थे| वे हिन्दू सम्बोधित करके लिखते थे| वंदा वैरागी मुस्लिमों के प्रति आक्रामक थे| गुरुकुल के नाम से सीधा सनातनी धर्म को आगे बढ़ाया| इन सभी कवियों और लेखकों को कठघरे में खड़ा किया जाए, यह अवसर है| अच्छा अवसर है| नागार्जुन को भी कटघरे में लीजिए वे सिर्फ हरिजन के लिए लिखते थे, दलितों के लिए नहीं|

शिवमंगल सिंह सुमन, रामविलाश शर्मा जैसे लोग भी कुछ नहीं किये| रामधारी सिंह दिनकर ने जातिवादी गेम खेला और बाद में राष्ट्रकवि भी बन गये| सर्वेश्वर दयाल सक्सेना वगैरह की स्थिति पता ही है आप सभी को| इन सभी को पकडिये|

इन सभी को कठघरे में लेते हुए बस एक प्रश्न जरूर पूछना| अभी तक जितने दलित लेखक, कवि, सम्पादक, प्राध्यापक आदि हुए हैं उन सबने अन्य जातियों के दुःख-दर्द को कितना लिखा? यह प्रश्न जब आप पूछेंगे, जातिवाद से लेकर सम्प्रदायवाद तक का उत्तर मिल जाएगा|
2.
मुझे लगता था कि दलित साहित्य के लगभग हस्ताक्षर अब प्रौढ़ हो गए हैं| कुछ स्वस्थ चिंतन और विमर्श निकलकर सामने आएगा| लेकिन भूल गया था कि अभी भी सीख रहे हैं| अभी भी अपने घेरे में कैद होकर गाली-धर्म का निर्वहन कर रहे हैं| ऐसा नहीं होना चाहिए| कुछ गंभीरता लाई जानी चाहिए|

सिर्फ शोर करने और गाली देने भर से साहित्यधर्म का निर्वहन नहीं किया जा सकता| जैसे आज आप शुक्ल आदि से प्रश्न कर रहे हैं, आने वाला समय आपसे भी पूछेगा कि सामाजिक सद्भाव और समानता के लिए आपने क्या किया? क्या बताएंगे? यही कि जी भर कर दूसरी जातियों के लोगों को गाली दिया...सोचिए| स्वयं जवाबदेह बनिए हो सके तो| किसी अन्य को कब तक अपनी गति-दुर्गति के लिए जिम्मेदार बताते रहोगे? खुद भी किसी के उद्धारक बनिये प्रभुओं!

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