वर्तमान
समय में सम्पर्क साधनों में बड़ी संख्या में इजाफा हुआ है| कहाँ तो चिट्ठी-पत्री का
दौर था कहाँ मोबाइल क्रांति आई| सब कुछ एकदम पास-पास लगने लगा| हजारों किलोमीटर
दूर रहते हुए भी यह आभास हुआ कि हम एकदम पास और एक ही खाट पर बैठकर सम्वाद कर रहे
हैं| जब तक बात आवाज के माध्यम से हो रही थी, तब तक भी कुछ गनीमत थी| आवाज से दृश्य
तक का सफ़र हम सब जल्दी तय कर लिए| कहना न होगा, नैतिक-अनैतिक परिधि में जिन
बातों-आदतों को गिना जा सकता है, उन सभी स्थितियों का व्यवहार वीडियो कॉल द्वारा
किया गया| घर के व्यंजन से लेकर बेडरूम तक के दृश्य को देखने-दिखाने की प्रवृत्ति बढ़ी| इस प्रवृत्ति के कुछ शिकार हुए तो कुछ समृद्ध|
शिकार होने वालों में कितने तो आत्महत्या कर लिए और कितने दिन-प्रतिदिन कर रहे
हैं, यह भी विचारणीय मुद्दा है|
फोन
कॉल से आगे बढ़ा जाए तो वीडियो बनाने और उसे अपलोड करने की जो नीति-राजनीति है,
उसने भी मानवीय अस्मिता और मनुष्य-जीवन को कम संकट में नहीं डाला| जब मैं ‘बेडरूम
तक के दृश्य’ की कर रहा हूँ तो उसके केंद्र में यही विडंबना रही| सबसे अधिक
दुर्गति प्रेमी जोड़ों की हुई| भावुकता में किया गया प्रेम लोभ-वृत्ति को विकसित करने
का महत्त्वपूर्ण कारण सिद्ध हुआ| धन कमाने और बलैक्मेल करते हुए चारित्रिक हनन की
प्रक्रिया सबसे अधिक यहाँ प्रयोग में लाई गयी| हालांकि इस दौरान ‘लघु फिल्मों’ और
‘सावधान इण्डिया’ जैसे धारावाहिकों द्वारा इसके इफेक्ट पर गंभीर कार्यक्रम भी
प्रस्तुत किये गए लेकिन प्रकारांतर से वे भी इस अपराधीक प्रवृत्ति के विकास में
सहायक ही सिद्ध हुए|
दरअसल
अब बात मोबाइल-टाक और वीडियो प्रदर्शन तक ही सीमित नहीं है| व्हाट्सएप और फेसबुक
की दुनिया भी उसमें आकर जुड़ गये हैं| व्हाट्सएप व्यस्त रखने और रहने का एक जरिया
तो बन गया है लेकिन इसके दुस्प्रभावों पर हम अभी भी गंभीरता से विचार नहीं कर पा
रहे हैं| ध्यान से देखें तो घर, परिवार, सम्बन्ध-व्यवहार, शिक्षण-संस्थान से लेकर
सार्वजनिक स्थलों तक युवाओं की भीड़ को इस दुनिया में व्यस्त और मस्त रहते देखा जा
सकता है|
ये
वही युवा हैं जिन्हें घर का कोई काम कह दिया जाए तो उनके पास समय नहीं होता|
पढाई-लिखाई से सम्बन्धित कोई टास्क दे दिया जाए तो उसके लिए उनके पास समय नहीं
होता| किसी की सहायता आदि करनी हो तो लगता है जैसे बहुत बड़ा बोझ लाद दिया गया है
उन पर| लेकिन व्हाट्सएप पर रहते हुए पता नहीं क्या खोजते रहते हैं? किस दुनिया में
व्यस्त रहते हैं? ये प्रश्न जब घर का कोई बुजुर्ग पूछता है तो वह हम युवाओं की नजर
में मूर्ख और गंवार सिद्ध होता है जबकि यह बहुत देर बाद पता चलती है कि मूर्ख और
गंवार वे नहीं, हम स्वयं हैं| होता यही है कि अच्छी बातें और आदतें बहुत देर से
संज्ञान में आती हैं| जब तक हम किसी गंभीर निष्कर्ष पर पहुँचते हैं तब तक बहुत कुछ
खो चुके होते हैं|
फेसबुक
की दुनिया इसी खोने की यथा-व्यथा से भरी पड़ी है| शाम को बनने वाले मित्र आधी रात
को बिछड़ जाते हैं| वर्षों के संचित सम्बन्ध क्षण भर में तहस-नहस हो जाते हैं| बहुत
ही हितैषी और आत्मीय सदैव के लिए विरोध के भेंट चढ़ जात हैं| घनिष्ठ से घनिष्ठ
मित्र एक-दूसरे को गाली देते मिलें तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए| इधर एक अहम् से
हम एकाकीपन के शिकार हो रहे होते हैं तो उधर सामने वाला उसी एकाकिपान से पीड़ित|
आभासी दुनिया की बात छोड़ दीजिए, कई बार तो पति-पत्नी तक एक दूसरे के खिलाफ मोर्चा
खोल बैठते हैं| यही मोर्चे आने वाले दिनों में हमारे सम्बन्धों की विश्वसनीयता तय
करेंगे| यानि यहाँ तक पहुँच कर हम स्वयं अपने दायरे में नहीं रह गये, स्वयं को
बाज़ार के हाथों गिरवी रख लिए|
कमेन्ट
और लाइक की महफ़िल से सजी फेसबुक की दुनिया में आप स्वस्थ मानसिकता के साथ प्रवेश
तो करते हैं लेकिन लौटते हैं चिंतित, कुण्ठित और भ्रमित होकर| कितने ही दिन ऐसे
होते होंगे जब लड़-झगड़ लेने के बाद आप अपने अनभिज्ञ बच्चे पर खीजते होंगे, परिवार
पर झनझनाते होंगे या थक-हार कर बगैर कोई सम्वाद किये किसी से, मौन होकर सो जाते होंगे?
यह सोचिए कभी फुर्सत में इस दुनिया से बाहर निकलकर| सोचिए कि पाया आपने कुछ नहीं
और खो दिया बहुत कुछ|
निःसंदेह
मोबाइल क्रांति और नवीन सम्वाद-संसाधनों ने हमें वहां लाकर छोड़ा है, जहाँ से न तो
हम पीछे मुड़ने के लायक रह गए हैं और न ही तो मौज के साथ आगे जा सकते हैं| हमारी
स्थिति वही हो गयी है जो एक बच्चे की किसी भीड़भाड़ भरे इलाके या मेले में गुम होने
के बाद होती है| हम मात्र रो सकते हैं| स्वयं को कोस सकते हैं| लानत-मलानत कर सकते
हैं खुद का| किसी को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते| तो अब आगे क्या किया जाए
कि इस गंभीर समस्या से कुछ हद तक छुटकारा मिल सके? विचार इस पर भी कर लेना चाहिए|
जैसे
कि मैंने कहा कि किसी को दोषी नहीं ठहरा सकते लेकिन अनागत भविष्य के भय से कुछ
दोषों से मुक्त रहने और होने का उपाय तो कर ही सकते हैं| यहाँ यह भी नहीं कहा जा
सकता कि इन माध्यमों को बंद कर दो या किसी को बंद करने की सलाह दो| किसी भी वस्तु
या स्थिति का अनवरत प्रयोग करते हुए जब हम उससे मुक्त होने का उपाय ढूंढते हैं तो
उसे तुरंत लागू नहीं कर देते| ऐसा करना जहर लेने के बराबर प्रभाव डालता है|
फिर
क्या करेंगे? करना यही है कि इन माध्यमों की मोह-माया से दूर होकर धीरे-धीरे
साहित्य की तरफ मुड़ो| कविता, कहानी, उपन्यास, आत्मकथा, संस्मरण आदि ऐसी बहुत-सी
विधाएं हैं जो इसी इन्टरने पर आपका इंतज़ार कर रही हैं| ऑनलाइन फ्री बुक स्टोर से
लेकर पुस्तकालय तक आपके एक क्लिक के इंतज़ार में हैं| हिंदी साहित्य की लगभग
पत्रिकाएँ थोड़े-मूल्य के साथ आपकी बाट जोह रही हैं| इस फेसबुक का उपयोग अगर करते
भी हो तो बहुत थोड़े और सकारात्मक लोगों का साथ ढूंढों| ऐसे लोग, जो सम्वाद में सहज
और सरल हों| जिनके यहाँ ठहरने से कुछ मिले| आप सुकून महसूस कर सकें|
आप
ब्लॉग की दुनिया से जुड़ सकते हो| यहाँ टांग खिचाई नहीं है| स्वस्थ सम्वाद है| यहाँ
कुंठा नहीं है, सृजन है| सम्वाद और सृजन से जुड़ना समृद्ध भविष्य की सम्भावना से भर
उठना है| हो सकता है कि कुछ मुद्दे ऐसे निकलकर आएँ जो सोचने के लिए विवश करें...यह
भी हो सकता है कि कुछ मुद्दों पर आपकी तीव्र असहमति हो और उसके विरोध में कुछ कहना
चाहते हों? ध्यान रहे कि जब ऐसा कुछ होगा तो आपका मन कहीं न कहीं सृजन की तरफ
उन्मुख होगा| क्यों? क्योंकि तुरंत पूछने और बताने वाला कोई नहीं होगा वहां पर| जब
कोई नहीं होगा तब आप उसे कुछ लिख कर पूछना चाहेंगे| ऐसा चाहना ही सृजन की दुनिया
में कदम रखना है|
घर
रहते हुए यह भी एक कोशिश हो सकती है कि परिवार के सदस्यों के साथ सम्वाद करो| खुल
कर विमर्श करो| घर में बुजुर्ग हों तो उनसे जुडो और अपनी परंपरा को जानने और समझने
का प्रयास करो| आज के समय में उनके साथ से बड़ा कोई दूसरा विद्यालय आप नहीं
पायेंगे| इससे दो तरह का एकाकीपन टूटेगा, एक आपका और दूसरा बुजुर्ग माता-पिता या
दादा-दादी का| मित्रों के साथ जब भी रहो तो मोबाइल को बंद करके रखने का प्रयास
करो| मित्र के साथ चुहलबाजी कर सकते हो| हंसी-मजाक कर सकते हो| बात-विमर्श कर सकते
हो| लेकिन यह सब मोबाइल के दूर या मौन रहने पर ही सम्भव है| यह मैं फिर कहना
चाहूँगा जितना आनंद सम्वाद में है, मित्रों के संग-साथ में है, माता-पिता और
परिवार के संतुलित वातावरण में रहते हुए पारस्परिक व्यवहार में, उतना कहीं अन्यत्र
नहीं है|
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