Wednesday, 28 April 2021

उत्तर-बाज़ार युग है

 किसी को बुलाओ मत

खुद परेशान हैं 

जैसे हम, सब वही हैं


आवाज़ के अर्थ इधर नहीं हैं

जैसे नहीं हैं अर्थ

सरकार और 

सामाजिक व्यवहार के कोई भी


डूब रहे हो तो गुहार मत लगाओ

कोशिश करो कि 

लग जाओ किनारे पहले

कोई दूसरा मझधार में ही धकेलेगा


यह उत्तर-बाज़ार युग है

मनुष्य नहीं

जरूरी हैं उसके नाम पर बहने वाले

घड़ियाली आँसू


कोई मरे तो 

संवेदना की फेहरिस्त हो जाती है बड़ी

जीते जी एक रोटी भी 

कौन पूछता है यहाँ

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