2021 भी गया लगभग| आज और कल का दिन शेष है| इन दो दिनों में वैसे कोई
चमत्कार होने से रहा|
जो पूरे वर्ष सोए रहे तो आज कौन-सा जग जाएंगे|
युवाओं को अपनी उम्मीदें यहाँ वरिष्ठ साहित्यकारों से छोड़ देनी चाहिए| विडंबना की बात यह है कि जो ललक
एक युवा में होनी चाहिए उससे भी निचले स्तर की ललक यहाँ के वरिष्ठों में देखी जा
रही है|
वरिष्ठों की देख रेख में ही यहाँ
हिंदी भाषा एवं साहित्य के लिए दिए जाने वाले लगभग पुरस्कार बंद कर दिए गये| हिंदी के शिरोमणि बन चुके लोगों
से इस वर्ष कुछ आन्दोलनों की उम्मीद थी भाषा एवं साहित्य के लिए लेकिन ऐसा न हो
सका| जिनके सिर पर नेतृत्व का ताज था
वह स्वयं पुरस्कार खोजते और कमेटियों के मध्य गिडगिडाते दिखाई दिए|
पंजाब प्रदेश में कभी हिंदी भाषा
एवं साहित्य के लिए लगभग दर्जनों पुरस्कार थे| मेरी जानकारी में वर्तमान में एक ही पुरस्कार बचा है
और वह है शिरोमणि साहित्यकार का सम्मान|
इस एक पुरस्कार के लिए जो नूर कुश्ती मचती है कि बस देखते बनता है| हर सम्मान घोषित होने के बाद
कोर्ट कचेहरी तक की धमकियाँ दी जाती हैं|
इस वर्ष तो यह भी हो गया|
विडम्बना की बात यह है कि ऐसा सिर्फ पाने के लिए होता है| जो पुरस्कार बंद कर दिए गए उनके
प्रति कोई आव़ाज शायद ही कोई उठाया हो|
यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि
सर्जना और आलोचना के क्षेत्र में मिलने वाले तमाम पुरस्कार शिरोमणि साहित्यकारों
की चौकीदारी में समाप्त कर दिए गए लेकिन इनके मुख से आह तक न निकली| अकेले जालंधर के शिरोमणि भी यदि
किसी चौक पर चौकड़ी लगाकर बैठ गए होते तो काफी भला हो गया होता भाषा एवं साहित्य का
लेकिन ऐसा कुछ न हुआ|
जन सरोकारों के लिए कार्य करने
वाले साहित्यकारों को दिए जाने वाले पुरस्कार बंद हुए तो फायदा किसे हुआ? सरकार से सवाल करने की बजाय ये
लोग आपस में टांग खिंचाई करते रहे|
एक ने दूसरे के कार्यक्रम को फ्लाप करने के लिए सुपारी ली तो दूसरे ने उसके
कार्यक्रम को बदनाम करने के लिए शूटरों की व्यवस्था की|
यही सब पूरे वर्ष केंद्र में रहा|
पंजाब का वर्तमान हिंदी साहित्य तमाम प्रकार के विडम्बनाओं का शिकार है| जन जागरण एवं जागरूकता जैसे विषयों पर न लिखने और न बोलने का जैसे ठीक ले लिया है यहाँ के लोगों ने| कुछ को छोड़कर लगभग साहित्यकार जैसे कोमा में चले गये हैं| जालंधर हर दृष्टि से संपन्न शहर है यहाँ का| पत्रकारिता एवं साहित्य का क्षेत्र इनसे नेतृत्व की उम्मीद लगाए रखता है लेकिन यहाँ के साहित्यकारों ने पंजाब अन्य अन्य अंचल के साहित्यकारों से अधिक निराश किया|
अन्य अंचल के साहित्यकार तो कुछ
न कुछ बोल भी देते हैं यदा कदा,
यहाँ के लोग एकदम से मौन में व्यस्त हैं|
कभी जब जागते हैं तो पुस्तक लोकार्पण या फिर बहुत खुश हुए तो चार लोगों को
इकठ्ठा करके चाय-पानी कर लिए|
बाद इसके इसी चाय पानी के रश्म को राष्ट्रीय संगोष्ठी में परिवर्तित करके
अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर देते हैं|
अखबार वाले तो खैर बैठे ही हैं टाइप किये हुए मैटर को छापकर हीरो बनाने के
लिए|
पंजाब का हिंदी साहित्य किस दिशा
में जा रहा है इस पर गम्भीरता से विचार करने की जरूरत है| अभी यदि न किया गया तो बाद में
हाथ मलने के अलावा कुछ न शेष बचेगा|
युवाओं को विशेषकर आना होगा इस दिशा में आगे|
अस्सी वर्ष के बुजुर्गों से कोई उम्मीद नहीं की जा सकती| वह अभी जोड़ तोड़ के साथ अमर होने
के लिए स्वप्न में व्यस्त हैं|
वह इतिहास के हीरो बनने के लिए अपने फालोवर्स की गिनती कर रहे हैं| तो आप इनके शौक में न शामिल होकर
इस चिंता में शामिल होइए कि आखिर हिंदी भाषा एवं साहित्य की बेहतरी के लिए इस
प्रदेश में क्या किया जा सकता है?
आइये एक कदम बढाते हैं
कुछ समझते हैं कुछ समझाते हैं
3 comments:
सही कहा आपने
वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य के सत्य को सटीकता के साथ अनावृत किया है आपने 👌
आप सभी का बहुत आभार पढ़ने और पसंद करने के लिए| फिलहाल पंजाब के हिंदी साहित्य का परिदृश्य कुछ ऐसा ही चल रहा है| आज दूसरा अंश भी इसका प्रकाशित होने जा रहा है यहाँ पर|
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