शुक्रवार, 2 मार्च 2012
हिन्तित मत हो परिवर्तन का दौर है
हिन्तित मत हो परिवर्तन का दौर है
कल कोई और था आज कोई और हैहै
यही क्रम बराबर हो जीवन में हमारे
गया जो और था आया जो और है
रखना जरुर ख्याल इतनी सी बात का
कभी सुबह दोपहर तो कभी शाम होगा
पलटकर देखोगे अपने जीवन के पन्ने को
सबसे पहले दर्ज वहां मेरा नाम होगा .....
कल कोई और था आज कोई और हैहै
यही क्रम बराबर हो जीवन में हमारे
गया जो और था आया जो और है
रखना जरुर ख्याल इतनी सी बात का
कभी सुबह दोपहर तो कभी शाम होगा
पलटकर देखोगे अपने जीवन के पन्ने को
सबसे पहले दर्ज वहां मेरा नाम होगा .....
किस्मत ही भारी है
कोई चले मोटर पर
कार , ऑटो, स्कूटर
किसी को प्यारी है
कोई ढोता रिक्शे पर
दिन भर सवारी है
बैठ शाम घर कोई कहता
युग की मंहगाई ने हमको मारी है
कोई बैठ फूटपाथ पर रोता
दुनिया में एक
बुरी किस्मत हमारी है
प्रबुद्ध जन नारे देता
मिट गयी असमानता
अब,समानता की बरी है
स्तब्ध है आमजन
असमानता बदस्तूर जारी है
सच है इस दुनिया में
कोई कम सुखी ,
न अधिक कोई दुखारी है
उम्र और योग्यता पर
किस्मत ही भारी है
गुरुवार, 29 सितंबर 2011
विद्रोही तारा हूँ मैं
जिंदगी के उहापोह में
सुख के चाहत और
दुःख के टोह में
निकला हुआ घर से
रजिस्टर्ड आवारा हूँ मैं
घूमा करता हूँ दिन भर
टहला करता हूँ
समझे न कोई फ़ालतू मुझे
किसी गली में सम्हलकर
प्रायः निकला करता हूँ मैं
कोई समझे न समझे
यहाँ सबका प्यारा हूँ मैं
चमकते सितारों का साथी रहा मैं भी कभी
आज उनके गोल से निकला
बिछुड़ा हुआ उनसे
विद्रोही तारा हूँ मैं
खो चूका हूँ तेज अपना
वह सुख पुराना ,आज सपना
कह नहीं सकता कौन साथ है
पहुंचाएगा गंतव्य स्थल तक
निहायत ही दीन हीन
किस्मत का मारा हूँ मैं .....
बुधवार, 28 सितंबर 2011
फिर वही रास्ते मिले
फिर
वही रास्ते मिले
मोड़ वही
गुजरते थे जहां से
कुछ दिनों पहेले भी
वही दूब
कंकर वही
भूमि वही
बंजर परी
वही रास्ते
ईंटो के खडंजे
मिट्टियों की बनी
दिख रहे हैं
वही का वही
पर
हम बदल गये
विचार हमारे
व्यवहार हमारे
जो रहा करते थे
नहीं रहे वही
क्या बदलेंगे वे रास्ते भी
जो अब भी पड़े हैं
वहीं के वहीँ
जहां से हम चलते थे
खड़े जो अब भी
दिख रहे
वहीं का वहीं ........
"दुःख सबको माजता है "
गम
किसे नहीं है
दुःख
कहाँ नहीं है
कौन है सुखी
कह नहीं सकता
सम्पन्नता आखिर कहाँ है
कह नहीं सकता
समझ सकता हु
पर
दुखी सब हैं
कोई दुःख को दूर करने के लिए
सुख के सुखत्व से परसान होकर कोई
दुखी है
सब जन
सब जगह
सब तरीके से
इस धरती पर रहने के लिए
पाने के लिए
कमाने के लिए
एक दुनिया बसाने के लिए
सुख की
चाहत की
महेफिल एक सजाने के लिए
दुखी हैं सब
क्योंकि
"दुःख सबको माजता है "
कहा कहा था किसी ने
शनिवार, 30 जुलाई 2011
मिट जायेगी एक दिन ये काली अँधेरी ...
चुप हूँ , मौन हूँ, बेबसी है मेरी
इस छोटे से जीवन में विपदा घनेरी
घनेपन में निकालूँगा रास्ता एक ऐसा
इस छोटे से जीवन में विपदा घनेरी
घनेपन में निकालूँगा रास्ता एक ऐसा
मिट जायेगी एक दिन ये काली अँधेरी
निकलेगा चाँद अभिनव रोशनी को संग ले
टिमटिमाते तारों से धरती ये जगमगा जायेगी
दौड़ता हुआ आएगा सूरज भी एक दिन
बजेगी संवादों की भेरी जब मेरी
ऐसा भी न सोंचो कि बाते ख़तम हैं
ढा रहा खुदा जिस कारण सितम है
बातें तो बहुत हैं हाले इस दिल में
पर क्या करें कि समय से हम तोड़े हुए है
रख रख के थोडा थोडा नीबू की तरह
सब के सम्मुख आज हम निचोड़े हुए हैं
एक दिन फिर रस का संचार होगा
फ़िदा मेरे ऊपर सारा बाजार होगा
पड़े रह जायेंगे सब कीमती दम वाले
खुल जायेंगे अकलों के पिटारे जब मेरी
बुधवार, 23 फ़रवरी 2011
दीप की बेबसी
आत्मा दुखी मन हंस रहा है
जीवन का कुछ अनुभव पाकर
घर घर देखा हमने जाकर
रोशनी मिलती जिससे , वह दीपक
पतंगे की फडफदाहत पर तरस रहा है
कितना सुन्दर,! आह ! उदार कितना
ह्रदय पतंगे का , मृदुल व्यवहार कितना
रहा तड़पता मुझपर , नहीं मैं दिया
हक़ इसका, जितना बनता नहं लिया
इसने , हाल मेरा जस का तस रहा
किया बखान पतंगे का सबनें , देखा नहीं
वह प्यार हमने , रूप रंग पर मेरे वह
मिटता रहा , हमने तो चाह रह दिखाना
उसको रोशनी देकर , मारा वह , उलटे
मिलता मुझको ही अपजस रहा
आत्मा दुखी मन हंस रहा
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