Wednesday, 5 May 2021

यह समय संत बनने का नहीं है बिलकुल

 इस दंगे से परिपूर्ण हो चुके समय में यह जरूरी है कि आपके घर 100-200 बम हों| पिस्टल हों, AK-47 हों| यह शास्त्र रखकर मन्त्र पढने का समय तो कतई नहीं है| आप बर्बाद हो रहे होंगे और नीच किस्म के लोग अतीत का हवाला देकर मजा लूट रहे होंगे|


कश्मीर उदाहरण है| बंगाल उदाहरण बन गया है| 400 के करीब लोग बंगाल से निकलकर असम में शरण लिए| शरणार्थी आप अपने ही प्रदेश में बन रहे हैं तो इसका सीधा सा मतलब है कि जवाब देने की हिम्मत नहीं है आपमें| हिम्मती बनिये| नहीं बन सकते तो तलाशिये उसे| यह समय संत बनने का नहीं है बिलकुल| आतंकवादियों की प्रशंसा होने वाले देश में बुद्ध बनोगे तो कश्मीर, बंगाल वाली स्थिति ही होगी|
मूर्ख बुद्धिजीवियों से कोई आशा रखना व्यर्थ है| इनके पास जो कुछ भी है वह आतंकवादियों के लिए आरक्षित है| देश के नागरिकों के लिए नहीं| ये कविताओं और कहानियों में सामाजिक सौहार्द्र खोजने वाले लोग हैं जो फेसबुक जैसे माध्यम पर ऐसी हिंसाओं को उचित ठहराते हैं|

देश को छोडो पहले खुद बचने की कोशिश करो| तुम बचे रहोगे तो देश भी बचा रहेगा| यह मात्र ममता का तांडव नहीं है अपितु मुर्दा हो चुके वाम का भी खेल है| वाम समर्थित कोई लेखक इस हिंसा को हिंसा नहीं मानेगा| नीच-बुद्धि का प्रयोग करते हुए इसे पवित्र बताएगा क्योंकि वह जान रहा है कि ऐसा करने से उसकी भक्ति बची रहेगी|
ऐसा होगा नहीं पर| तुम्हारी खूनी हिंसा की मंसा तुम्हारे हलक में डाल दी जाएगी| तुम बंगाल में शून्य आए हो देश में अर्थी उठेगी तुम्हारी| तुम्हारे सारे प्रयोग तुम्हारी शव यात्रा के सहभागी बनेंगे| तुम जितने भी उदाहरण दे रहे हो उतने उदाहरण सम्भाल कर रखना| आने वाले दिन में उन्हीं को फिर गिनना और उसमें बंगाल की इस स्थिति का मूल्यांकन करना|


तुम यह सोच सकते हो कि बंगाल कश्मीर बने तो यह तुम्हारी भूल है| तुम ऐसा सोचते-सोचते कश्मीर से भी अपंग बना दिए गये| कुछ कर नहीं पाए| कुछ कर भी नहीं पाओगे| नक्सलियों और आतंकवादियों के शव पर मानवतावाद का नाटक करने वाले नरभक्षियों 'देश' तुमको पहचान गया है| मैं यह कतई नहीं कहता कि भाजपा ही एक मात्र विकल्प है लेकिन यह यह जरूर कहता हूँ कि जितना कमजोर सम्प्रदाय विशेष को समझ रहे हो उतना वह है भी नहीं| उदाहरण लेना हो तो आज़मखान से ले सकते हो| उन्हें उत्तर प्रदेश के दंगे याद हैं|


औरतों के सामूहिक बलात्कार हुए| घरों को जालाए गए| निर्दोषों को मारा गया| सब कुछ ठीक रहने वाले माहौल में बम दगे| गोलियां चलीं और तुम इसे गलत ठहराने की बजाय उसे निर्दोष साबित करने पर तुले हो? तुम्हारे इस दोष का मूल्यांकन तो फिलहाल समय करेगा लेकिन ध्यान यह भी रहे कि हिंसा प्रत्युत्तर कभी अहिंसा नहीं होता|
तुम सभी अहिंसा के इस देश में हिंसा का तांडव करने आए हो| अतीत बनकर रह जाओगे| हो भी रहे हो| हर गलत को सही बनाना तुम्हारी परंपरा है| देश की संस्कृति को गाली देते देते देश के नागरिकों पर भी तुम्हारी कुदृष्टि पहुंची है तो अब एक ही उपाय है कि पहचान बनाकर तुम्हें घसीटा जाए| तब पता चलेगा कि निर्दोषों की हत्या का परिणाम क्या होता है|

@सभी फोटो गूगल से लिया गया है जो 4 अप्रैल की हैं| #बंगाल चुनाव#बंगाल हिंसा#

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