Wednesday, 13 October 2021

पिज्जा-बर्गर संस्कृति के हिमायती लोग साहित्य में नमक-प्याज ढूंढ रहे हैं

 कल-परसों पंजाब के वरिष्ठ कवि सत्यप्रकाश उप्पल जी ने अपनी एक पोस्ट में कुछ ऐसा कहा कि "पंजाब के हिंदी साहित्य को जब तक कोई ठीक का समालोचक (या आलोचक) नहीं मिलता तब तक तू मेरी पीठ खुजला मैं तेरी खुजलाता हूँ जैसा ही चलता रहेगा|" ऐसा नहीं है कि पंजाब में आलोचक नहीं हैं| यह सच जरूर है कि यहाँ के भेड़चाल में वे नहीं फँसे| आलोचकों में यदि गिनती करवाऊं तो बड़ी संख्या में लोग सक्रिय हैं| राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पहचान है लेकिन वे इन पर चुप रहते हैं| हर ऐरा-गैरा पर बोलना वैसे भी आलोचना के लिए सुखद नहीं होता और आलोचकों के लिए भी, ये हमें समझना होगा| सच्चाई तो उप्पल सर को भी पता है, नहीं है तो होना चाहिए कि जिन्हें वे विशेष करके चिह्नित करना चाहते हैं उन पर कोई क्यों नहीं बोल रहा है? जब पंजाब के आलोचक बाहर के रचनाकारों पर बोल रहे हैं तो बाहर के आलोचक पंजाब के रचनाकारों पर क्यों नहीं मुँह खोल रहे हैं?

पहले तो उनके लिखे को पढ़कर काफी देर तक सोचता रहा| फिर विचार किया कि पंजाब के जो कुछ सही के रचनाकर हैं उन पर लिखना या कहना तो गलत नहीं है लेकिन इधर जो कुकुरमुत्ता की तरह उगे हुए लोग हैं, जिन्हें न कविता की समझ है और न ही तो आलोचना की, उनके रहते यह ईमानदार आलोचना कहाँ सम्भव है? मूल्यांकन की तो बात ही जाने दीजिये| एक दिन में यहाँ यशपाल से बड़ा रुतबा हाशिल करने वाले लोग हैं| भले कथा साहित्य की प्रस्तुति का अंदाजा हो या न हो| मोहन राकेश जैसे रचनाकार की औकात ही नहीं कुछ ऐसा कभी कभी तमाम रचनाकारों के शक्ति-प्रदर्शन को देखकर लगता है|


यहाँ के साहित्यिक परिवेश में रहते हुए चार वर्ष से अधिक हो गया मुझे| अक्सर गोष्ठियों में मैंने देखा है कि प्रेमचंद जैसे रचनाकारों को यहाँ के लोग जेब में लेकर घूमते हैं| जब मर्जी किया, जिसे चाहा, उसे घोषित कर दिया पंजाब का प्रेमचंद| जबकि स्थिति उनकी फेकचंद बनने की भी न रही| महादेवी वर्मा तो जैसे इन सभी के आगे पानी भरती हैं| कार्यक्रमों में जिन्हें महज भीड़ का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित किया जाता है वह भी स्वयं को महादेवी वर्मा से कमतर नहीं समझते/समझती हैं|
ज़मीनी स्तर पर निष्क्रिय लोग साहित्य को महज खिलौना समझ बैठे हैं| पिज्जा-बर्गर संस्कृति के हिमायती लोग साहित्य में नमक-प्याज ढूंढ रहे हैं| विडम्बना यहीं तक होती तो ठीक था जिन्हें न गाँव का पता है और न ही ग्रामीण संस्कृति का वे भी कथाकार रेणु की उपमा से विभूषित हो रहे हैं| सच तो यह है कि निरा व्यापारी भी यहाँ का भारतेंदु बन साहित्य की ज़मीन को बंजर बना रहे हैं| व्यापारी साहित्यकार नहीं होते ऐसा विल्कुल नहीं है लेकिन साहित्य के विशुद्ध व्यापारी जब साहित्य में सुधार और संभावना पर चर्चा करते दिखाई देते हैं तो हँसी आती है|
झोला उठाऊ रचनाकारों के यहाँ दंभ इतना है कि शब्द निकला नहीं कहीं और ये कोर्ट का दरवाजा तलाशने लगे| 80-90 वर्ष तक के बुजुर्गों तक को मैंने ऐसा कहते और योजना बनाते हुए देखा और पाया है| आप यदि थोड़ी भी गंभीरता से विचार करें तो सोचें कि निरा वैयक्तिक स्तर पर पहुंचकर मार-काट देने की धमकियों वाले अंचल में वाद-संवाद कितना संभव हो सकता है, यह समझने की ही नहीं देखने और जानने की भी जरूरत है| पिछले चार वर्ष के लगभग की सक्रियता में मैंने यही देखा| खुद पंजाब का आलोचक इन पर नहीं बोलना चाहता| दिल्ली, बनारस या अन्य अंचलों के रचनाकार इनके लिए प्रिय हैं| क्यों? क्योंकि साहित्य किसी क्षेत्र विशेष के दायरे में सीमित रहने वाला नहीं है| यदि ऐसा होता तो पंजाब का अधिकांश आलोचक अब तक दलाल-माफियाओं के माध्यम से जेल के अन्दर होता| जो बचा रहता उसे सुपारी देकर उठवा दिया गया होता|

3 comments:

Ravindra Singh Yadav said...

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 14 अक्टूबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

!

Manisha Goswami said...

वाह बहुत ही उम्दा लेख!
सर मैं अभी नौसिखिया ब्लॉगर हूं मुझे नहीं पता मैं अच्छा लिखती हूं या फिर बुरा! तारीफ तो मुझे बहुत मिलती हैं पर मैं चाहती हूं कि कोई ऐसा व्यक्ति हो जो वास्तव में बता सके कि मैं सच में अच्छा लिखती हूं, या लोग सिर्फ ऐसे ही तारीफ कर देते हैं! अगर आपके पास वक्त हो तो प्लीज एक बार हमारे ब्लॉग पर आने का कष्ट करें और हमारी रचनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया दें! ऐसी प्रतिक्रिया जो मेरी लेखन की वास्तविकता बता सके! साफ शब्दों में कहूं तो आलोचनात्मक प्रतिक्रिया! जिसमें कमियां और खूब या दोनों बताई जाए! एक बार वक्त निकालकर हमारे ब्लॉग पर आने का कष्ट करें आपकी अति महान कृपया होगी आदरणीय सर🙏🙏🙏🙏

शुभा said...

वाह!बेहतरीन ।