Sunday, 25 May 2014

छह कवितायें , एक लेख

बुधवार, 6 अगस्त 2008

i am doing ! 

i am doing
what doing
without knowing anything
i am doing something
there is a way
which have divided into four part
first, second and third
are mine , but fourth
i do not know about that
but i am trying
Becouse
something doing
yes, i am doing........

शुक्रवार, 18 जुलाई 2008

भ्रूण - हत्या मीडिया से लेकर जाति, धर्म तक को होना होगा जागरूक

इतनें बडे प्रचार और प्रसार के बाद भी आज स्थिति जस की तस अर्थात मीडिया से लेकर समाज सेवी तक के वे सरे प्रयास विफल होते जा रहे हैं , जो अब तक भ्रूण हत्या और गर्भपात के सम्बन्ध में किए जाते रहे हैं । पर विडंबना की बात तो यह है की जिन पढे लिखे लोगों पर ये जिम्मेदारियों सौंपी जाती हैं वे ही ऐसे आपराधिक मामलों में ऐक्षिक रूप से सक्रिय हैं । और मानवीयता से ऊपर उठकर ऐसे अमानवीय कुकृत्य को अंजाम दे रहे हैं । बताइए, जब शिक्षा देनें वाले ही इस तरंह अपनें कर्तव्यों को अपराधों के साये में पलते देखे जायेंगे तो उनका अनुसरण करनें वाले भला अपने आप को कैसे दूर रख सकते हैं ?
अभी हाल ही के दिनों में नवांशहर में एक नर्स को रंगे हांथों तब पकड़ा गया जब वह एक औरत का गर्भपात करनें में संलग्न थी । ये कहना कोई गलत ना होगा की ऐसे मामलों में जहाँ परिवार के सदस्यों की भूमिका होती है वहीँ पर ऐसे नर्सों और डाक्टरों द्वारा भी बडे ही शौक से इस भूमिका को अदा किया जाता है । जबकि देश और प्रदेश के अनपढ़ और कम समझदार जनता को समझानें के लिए इन्हीं को वहां पर भेंजा जाता है। और भला इनकी बातों को मानेगा भी कौन ? दूसरों को नसीहत ख़ुद मियाँ फजीहत । परिणामतः दिनों दिन स्थिति और भी बदतर होती जा रही है और यदि इन पर मीडिया और सत्ताधारी राजनीतिक पार्टियों द्वारा कुछ हट क्र कुछ ना किया गया तो शायद भविष्य में परिस्थिति और भी जटिल और स्थिति और भी दयनीय हो सकती है ।
लेकिन हमें सिर्फ़ सत्ताधारी पार्टियों और मीडिया पर ही नहीं निर्भर रहना चाहिए क्योंकि किसी बुराई को ख़त्म करनें के लिए एक ही दरवाजे की कीवाड़ मजबूत करना ठीक नहीं होगा । हमें तो हर उस दीवार को मजबूत करना होगा जो समाज की महल के विनाश और विकास में मत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं । अर्थात इन सबके साथ साथ हमें अपनें धार्मिक , राजनीतिक , सांस्कृतिक और पारंपरिक स्थितियों को भी सुदृढ़ करना होगा । यहाँ पर ये बात कुछ अटपटी जरूर लग सकती है की भला इन सबके साथ क्या सम्बन्ध है भ्रूण - हत्या और गर्भपात का जिससे ये नियंत्रण में लिए जा सकेंगे । इतिहाश गवाह है की अभी तक चाहे सती प्रथा हो या बाल विवाह इन सबको भी तो परम्पराओं और धर्मों से जोडकर ख़तम किया गया । जिसके चलते नयी परम्पराएँ स्तित्व में आयीं और उनका भी पालन किया जा रहा है ।
वास्तव में आज यह एक जटिल समस्या हो गयी है जिससे निपटानें के लिए जन बच्चा से लेकर बूढों जवान और औरतों तक को निःसंकोच आगे आना होगा । इसमें धर्म के चलते वैसे आदमियों या स्त्रियों को मंदिरों या मस्जिदों में जानें से रोका जा सकता है । समाज से बाहर किया जा सकता है । आख़िर जब गलत कार्यों के लिए धर्मों और जातियों को साधा जा सकता है तो भला ऐसे कार्य के लिए इनकी सहायता क्यों नहीं ली जा सकती ।

दुःख की दूतिनी

रे दुःख की दूतिनी

फ़िर तूं लौट कर आई यहाँ

अभी अभी

बस थोड़े समय पहले

छोड़ आया था तुझको

अपनी बगल वाली गली में

पर ये क्या

फ़िर घूम कर चली आयी

ओह ! तूं कितनी निर्दयी है

कितनी बेसरम है

लेस मात्र भी दया और सरम नहीं

उनके पास क्यों नहीं जाती

जिनके घर है मेवा मलाई

शायेद इसीलिए न

वे नहीं करते तेरी मेहमानी


हम गरीब हैं

अतिथि को देवो समान मानते हैं

चाहे वो विपदा हो या दुःख

अथवा खुशी

सबको एक समान समझते हैं

इसीलिए तो झेल रहे हैं

ऐसी दलिद्रताई .......... ।

गुरुवार, 17 जुलाई 2008

रोटी के लिए

धूप की सनसनाहट
तूफ़ान की आहट , गरमी का कहर
और दोपहर की तपिस
ये सब फीके पड़ जाते हैं
उस समय की मार से
बौखलाए व्यक्ति के आगे
जिसको कहा करते हैं हम
रिक्शा चालक

महज चंद रूपए की खातिर
दो रोटी के लिए
दिन भर , हर समय , हर रोज
चलता रहता है
वह रिक्शा चालक

बिना पनही के
आधुनिक फैशन से बहुत दूर
फटी धोती और एक झीनी कुर्ती पहनें
मारता रहता है वह
रिक्शा का पैडल
फ़िर भी नहीं भरता है
उसका वह पेट
नहीं संतुष्ट हो पाती है उसकी अंतरात्मा

काश हे ईश्वर !
इनकी भी होती एक कुटिया
जिसमें वह रहता आराम से
तब कहीं जाकर झलकती
मानव के अन्दर की मानवता
तब देखनें में आता भारतीय संविधान की
समानता का व्यवहार
पर ये सब हैं कोरी कल्पनाएँ
और इन कल्पनाओं से बहुत दूर है
वह रिक्शा चालक । ।

भाजपा का चुनावी प्रार्थना :

भगवान निवेदन तुमसे है कुछ वोट मुझे भी दे देना
बदले में मुझसे लड्डू फल जो दिल भाए ले लेना
वादा मेरा अटल रहेगा फूल कमल का रोज चढ़ेगा
कृपा पात्र हमसब हैं तेरे कृपा दृष्टि तुम भी रखना ।।

मैं साथ आपका हरदम दूँगा मरते दमतक नाम जपूंगा
हर भाषण में मैं याद करूंगा नाम आपका अमर करूंगा
मंदिल के पास जो मस्जिद है बस एक पल मे तुडवा दूँगा
काम आपके मैं आऊंगा कृपा दृष्टि तुम भी रखना ।।

यदि बहुमत आपका मिल जाए तो मैं कृतार्थ हो जाऊँगा
महिमा राम आपकी सबको भली भाँती समझाऊंगा
अस्त व्यस्त आवास आपका मैं ख़ुद जाकर बनवाऊंगा
सब रुका कार्य मैं पूर्ण करूंगा पर ख्याल मेरी तुम भी रखना ।।

चिकनी चुपडी बातें सुनकर प्रभु का दिल भी दहल गया
कभी प्रचारक थे जिसके दिल उसके दल से बदल गया
राम नाम की अनुमति देकर प्रभु ने उनको सफल किया
खुश होकर भक्त ये कहने लगा प्रभु साथ सदा मेरे रहना ।।

मिला राजपद जब इनको सब वादों को ये भूल गये
नर तो क्या नारायण को भी बकवादी नर भूल गये
तारीख पड़ी न्यायालय में जब प्रभु के दिल में भी शूल किए
होकरके दुखी प्रभु कहनें लगे अब साथ नहीं तेरे रहना ।।

जो भूल गये नारायण को अब क्या उम्मीदें उनसे है
हर सुख सुविधाएं अपनी तो बस यार खुदा के घर से है
पर एक दिन समय वो आएगा हर काम जो उनका हमसे है
हम कह देंगे प्यारे अब मतदान नहीं तुमको देना
बदले में दुवायें गिरने की चाहे तुम हमसे ले लेना ।।

सोमवार, 2 जून 2008

' सिद्धविनायक ' में अमिताभ बच्चन

तुम आये आए तुम भगवान
धन्य हुए हम , हुए जो मेहरबान
ना तो गीता श्लोक को पढ़ना
ना ही तो रटना पड़ा कुरान
तुम आए आए तुम भगवान

तुम चले जलसा से सिद्धविनायक
हे युग निर्माता हे जननायक
तुमसे बड़ा कौन , है कौन तुमसे महान
तुम आए आए तुम भगवान्

लगाए कतार , गणेश नहीं तुम्हारा जयकार
उनके दर्शन में होती देरी - अदृश्य वे
दिखे तुम प्रत्यक्ष , स्पष्ट , साकार
नहीं शिकायत , गिला कुछ भी
बसता तुम्हारे दर्शन में प्राण
तुम आए आए तुम भगवान ....... ।

मेरी दुनिया में ' तुम ' तुम ना रहे

मेरी दुनिया में " तुम " तुम ना रहे
कोई और आया था तुमसे पहले
आप बनकर
सहज सुंदर स्वाभाविक रूप सा
एकदम सरल एकदम सीधा
मिलता भी हर जगंह
' यहा ' या ' वहाँ ' या कहीं और
जरूरी नहीं की मैं ही
उसके पास जाऊं रोज सुबह सुबह
जरूरत हर की हर से होती है
हमारे उसके रिश्ते के
सबसे ठोस प्रत्यक्ष वजह
एक एक के लिए , एक दूसरे जैसा
बिन ' दूसरे ' एक कैसा
क्योंकि हमारी दुनिया है निराली
निराली दुनिया में पहले के ' तुम '
आज के ' आप ' हो गए
' आप ' साथी , दोस्त बने
दुश्मन ना रहे
मेरी दुनिया में ' तुम ' तुम ना रहे
कोई और आया था तुमसे पहले
आप बनकर ....... ।

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