Wednesday 23 February 2022

आप यदि फेमस बनना चाहें तो तमाम राहें आपका इंतज़ार कर रही हैं

 कभी फुर्सत मिले तो चुपचाप किस्मत के बदलते समीकरण को देखिये और महसूस कीजिये| कुछ दिन पहले मैंने कहा था कि हम पढ़ते ही इसलिए हैं कि एक ठीक ठाक नौकर बन जाएँ| सच यह भी है कि किस्मत, रुतबा और पैसा का कोई सम्बन्ध नहीं है| आप यदि फेमस बनना चाहें तो तमाम राहें आपका इंतज़ार कर रही हैं| रोड से उठकर महलों में पहुँचते हुए मैंने देखा है| कहानी अधिक पुरानी नहीं पिछले वर्ष से शुरू होकर इस वर्ष तक जारी है|

साहिर लुधियानवी अतीत भले हैं लेकिन बदलते समीकरण के एक स्थाई उदाहरण तो हैं ही| रानू मण्डल का उदाहरण आप सब के सामने है| अभी काचा बादाम के गायक भुबन बडायकर को भी देखा| एक कोई कैलाश खेर हैं उनके गीतों को सुबह ही Paramjeet Singh Kattu सर ने सुनाया| उनसे सम्बन्धित कहानी भी सुनाई इन्होने| निश्चित ही ये प्रतिभाएँ आपके विश्वविद्यालय के कैम्पस से नहीं सम्बन्धित हैं और न ही तो किसी इंजीनियरिंग का कोई सर्टिफिकेट है इनके पास| रोड से उठकर सीधे महलों में पहुँचने वाले लोग हैं ये|
हम अच्छे दिनों की तलाश में भटकने वाले निहायत ही पढ़े-लिखे मूर्ख की श्रेणी के लोग हैं| साहित्य में सफलता का स्वप्न संजोए युवाओं के पास तरीके तो हैं, लेकिन मूर्खताओं में कैद रहने वाले कैदखाने अधिक हैं, स्वतंत्रता कम| आप जितने अधिक बन्धनों से मुक्त हैं, स्वतंत्र हैं सफलता की राहें आपके लिए खुली हैं| साहित्य में यह नहीं है| एक अच्छा से अच्छा लेखक भी प्रकाशक-संपादक-आलोचक की दया पर टिका है| यह न कहना कि निराला, कबीर, तुलसी आदि इस मायने में अपवाद हैं, सही बात ये है कि उन्हें भी प्रकाश में लाने का श्रेय इन्हीं लोगों से होकर जाता है|
इधर हिंदी का लेखक सेलिब्रिटी नहीं बन पाया| उनके कहने से कई वर्ष हुए कोई धरना-प्रदर्शन नहीं हुआ| हाय-हाय तो क्या बाय-बाय कहने वाला भी कोई नहीं मिला उन्हें| सौंदर्य की तलाश में इतना बिचारा-सा लगता है यह वर्ग कि जीते-जी सूख गया लेकिन जुल्फों के छाए की सिहरन भी उसे नसीब न हो पाई| कहाँ तो एक डायलोग लिखने वाले को लाखों मिल जाते हैं और कहाँ लाखों रचनाएँ लिखने वाला खुद के लिए एक घर तक नहीं बनवा पाया|
क्रांति और सुधार की बात न कीजिये| परिवर्तन और समाजिक चेतना का हवाला देकर सच को ठुकराने का दुस्साहस आपको और अधिक गर्त में लेकर जाएगा| दुनिया ऐसी ही है| न तो गरीबी ख़त्म हुई और न तो राजाओं का अंत हुआ| भुखमरी में आज भी लोग मर रहे हाँ आज भी महलों में पैसे लुटाए जा रहे हैं| ये जो आदर्श का चोला है न इसी उतार फेंकिये|
तो कुल कहने का अर्थ यह है कि कदम जिधर भी बढ़े उसको बढ़ा दीजिये| पीछे घूमने या कदम हटाने से कुछ होने वाला नहीं है| होगा तभी जब आप दायरों को तोड़ कर आगे बढ़ेंगे| ये दायरे सोच के भी हो सकते हैं और संकोच के भी|