Thursday 24 July 2014

मन के आह

अब 
तहकीकात करेगी दुनिया 
या मुझसे बात करेगी 
साक्षी होगी चांदनी रात 
या फिर अँधेरी रात बनेगी 
इतना तो पता है की 
मेरी पहचान ये दुनिया 
मेरे जाने के बाद करेगी 
… … … … … … 
दुःख 
मुझमे नही की 
तुममे नही की 
उनमे नही है दुःख 
सबमे है दुःख 
जैसे 
दुःख में है सब। 

रह गया अकेला हाथ

कोई सोचे कि 
चिंता कैसी होती है 
कोई सोच कि  दुःख कैसा होता है 
सोचे कोई वेदना कैसी होती है 
आए और आकर देखे 
कि दुःख मुझमे है 
कि चिंता मुझमे है 
कि वेदना मुझमे है 
कि सागर उमड़ता है मुझमे 
इन सबका उफान उमड़ता है मुझमे 
कि मै इन सबमे हूँ 
और ये सब , मुझमे है 

मेरा परिेवेश 
मेरा समुदाय 
की परिवार मेरा 
गवाह है इस बात के कि 
बचपन मेरा 
लगा नही की बचपन है 
घुट घुट कर बिताता  रहा एक एक पल 
तिल तिल कर काटता रहा एक एक क्षण 
बेवजह बेमतलब बढ़ता रहा मै 
जूझता रहा जीवन के चाह में 
बड़ो की-सी आदते  घर-कर गई 
इच्छाए बचपन की सब मर गई 
सोचने लगा मै हद से अधिक 
बेहद तक, चिंता करने लगा 
घर और परिवार की 

समय से पहले असमय ही 
नौजवान हो गया 
मोह ममता ममत्व से अनजान हो गया मै 
पहचानने से इनकार करते रहे लोग
धीरे धीरे स्वयं में गुमनाम हो गया मै 
उठा कि ,उठना चाहा 
चिंता सताने लगी 
एक एक पल की 
एक एक क्षण की 
मौसम बेमौसम हो गए 
स्थितियां बदल गई परिस्थितियों में 
 सूखा पड़ गया खुशियो का 
सुखो का अकाल पड़ गया 
सम्बंधित बस्तियों में मेरा 
बड़ा होना ही अखरने लगा मुझे
 
समय से पहले मै 
समय के मुताबिक 
समय के साथ हो गया 
धीरे धीरे सबके रहते भी मै 
मै अनाथ हो गया 
यही , यही की शरीर भी छोड़ने लगा साथ अब 
रह गया अकेला हाथ 
करने और खाने को 

मै पाती बिन रहा हूँ

छोटे छोटे  बच्चे
 देखते हुए ललचाई आखो से 
देख रहे थे उन सबको 
जो खा रहे थे 
खाते हुए आनंद - मग्न हो गा रहे थे 
धीरे धीरे कुछ उनमे से जा रहे थे, और 
वे बच्चे देख रहे थे 
नीचे गिरी पत्तल और प्लास्टिक  के बोतल उठाते हुए 
उन सबको जो बस खा रहे थे 
रहा नही गया यह दृश्य देख 
पूछ लिया उनमे से एक 
''ये क्या कर रहे हो 
क्यों फालतू में मर रहे हो ''
सीधे हुए बच्चे 
कपड़ा  था नही शरीर पर 
नंगे एकदम , थे एक चड्ढी भर पहने हुए 
देखती रही आखे , देखकर भी , देखते हुए 
बोला एक उनमे से 
देखते नही हो 
मै पाती बिन रहा हूँ 
अपने पूर्वजो की दी हुई थाती गिन रहा हूँ 
यही तो बचाकर रखे थे मेरे लिए 
जन्म लिया इस दुनिया में 
दुनिया ने जीने के सपने दिए  
बिन रहा हूँ उन सपनो के लिए 
शायद उन सपनो में ही मिल जाए कुछ 
जीवन को जीने की लिए 

Friday 4 July 2014

तेरे आने के बाद

तेरे आने के बाद 

ऐ मेरी प्रिये 

मेरी तन्हाईयाँ 

चुपके से आकर 

नितांत वैयक्तिक क्षणो मे

मुझे ही जवाब दे रही है 

मेरी दशा बताकर 


मै  कितने शोरगुल मे

कितने आवाजो को 

कितने तरीके से 

कितने विरोधो के बीच 

अनसुना करता रहा 

करता रहा 

अनसुना मै 

नही आने दिया लोगो के बीच 

सहता रहा 

समझता रहा 

विचरता रहा 

अपने लघुत्व पर 

जब तक मेरा परिवेश 

मुझे लघु समझता रहा 


तेरे आने के बाद 

ऐ मेरी प्रिये 

चुपके से आकर 

मेरी अंतरात्मा 

मुझे ही जवाब दे रही है 


तेरे आने के बाद 

अब मुझे लगता है 

मै बड़ा हो गया हूं 

मेरा वह परिवेश 

समझता था जो मुझे लघु 

नही देता था जाने कही 

दूर अपनी आखो से 

नही होने देता था ओझल 

अपनी निगाहो से 


पर आज 

तेरे अाने के बाद 

ऐ मेरी प्रिये 

मेरा परिवेश मुझे ही 

जवाब दे रहा है 


कि मै वयस्क हो गया हू

कि मै परिवारदार हो गया हू

की मै नादान नही  रह गया 

सज्ञान हो गया हू

समझदार हो गया हू

चिंता होनी चाहिए मुझे अपनी 

की मै किसी का पहरेदार हो गया हूं 


तेरे आने के बाद 

ऐ मेरी प्रिये 

मेरी समझदारी मुझे ही 

जवाब दे रही है। ………………… 






पुस्तकालय मे

अब  हम 

नित दिन ही पुस्तकालय में 

धूल  झाड़ेंगे 

खाक छानेगे

तपेंगे दिन रात 

कुछ पाने के लिए 

ज्ञात या अज्ञात 

ऊंघेगे , टहल टहल कर 

बैठ बैठ कर कुछ देर 

रुक रुककर कुछ देर 

कुछ समय चल चलकर 

पुस्तकालय  मे 

हाथ पैर मारेगे 

खोजेंगे कुछ बात 

कुछ चीजे जरूरी 

नई नई दिशाए 

निहारेंगे 

किताबो , पत्र  पत्रिकाओ से 

क्या पता 

किसी दिन 

किसी मोड़ से 

 किसी रास्ते पर 

किसी छोर से 

आ जाए अच्छे दिन 

मुझे पूछते पूछते। ………………………… 

जीवन

जीवन

जीवन नही

एक उलाहना है

सहते सहते जिसे लोग

जीने  की चाह लिए

हैरान हो जाते है

और बाद में

धीरे धीरे

गुमनाम हो जाते है 

मेरे विचार मेरे सपने।

मेरे दिन

खुशियाँ मेरी

मेरे ख्वाब

सपने मेरे

जो कुछ थे

सब हो गए तेरे

क्या सोच

क्या विचार

क्या सिद्धांत

क्या व्यवहार

सब वजह

सब जगह

करता निर्भर

तेरा आधार

किया अभी तक अपने लिए

लिए हुए कितने सपने

सौप दिए तुझको सब कुछ

तू आई जीवन में मेरे

जलने लगी प्रेम के  प्रेम दिए

क्या किया

क्या सोचे हमने

सब कुछ है तेरे अपने

मेरे विचार  मेरे सपने। .........................