Wednesday 15 March 2017

घर की चाहत

जवानी में भटकता
जीवन पुरुष का सोचता है
देखता है ऊपर हताशा भरी निगाह से
बेघर हुए खड़े होकर समाज में नीले आकाश के तले

घर की चाहत लिए
अपने जीवन के पहले दिनों में
गुड्डी और गुड्डा का खेल खेलता है लड़का  
वह बनाना चाहता है एक घर अपने पसंद का

घर, जिसमें वह रहे
माता-पिता और परिवार रहे
सुखी और ख़ुशी रहे देखकर समाज यह
उसी घर से थोड़ी दूर जाता है नौकरी की तलाश में वह

नौकरी इसलिए कि
घर के सभी सदस्यों की देखभाल कर सके
अपनी आवश्यकता और उनकी जरूरत को पूर्ण कर सके
अपनी ममता और संवेदना को कुरेंद कर बढ़ता है वह और आगे

जरूरतें कम नहीं है
परिवार का हर सदस्य चाहता है
सुख-सुविधा के सभी सामान उसे हासिल हों
वह दूर बहुत दूर निकल जाता है सामान के इंतजाम में

दूर के लोग कभी भी
नहीं आने देते अपने पास उसे
व्यथित मन खोजता है निवास अपना
छोड़कर घर के सभी सदस्य को बेगाने सदस्यों के बीच में

घर बनाने का स्वप्न
कहीं दूर छूट जाता है उसके मन से
संभालने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है दिलो-दिमाग में
दो लोगों के लिए दो पैसे के लालच में करने लगता है समय खर्च वह

अब यह कौन समझाए 
दो पैसे का लालच महज उसका स्वार्थ नहीं होता
कर्तव्य भी होता है घर में रहने वाले दूसरों को देखने की

स्वप्न घर की छोड़कर ताउम्र आसमान तले रहने के लिए मजबूर होता है वह