Sunday 21 November 2021

कुछ अपनी कुछ जग की

  
आज ही कवि एवं आलोचक गणेश गनी जी से बातचीत करने का अवसर मिला| क्या पूछा मैंने और उन्होंने क्या कहा सब कुछ यहाँ कैद है| आप सुनिए और समय-साहित्य के रूप-स्वरूप का मूल्यांकन कीजिये|