Sunday 29 December 2019

सत्ता सिर्फ और सिर्फ सत्ता होती है जिसे कुर्सी से मतलब होता है


"साहित्य राजनीति के आगे चलने वाली मशाल है" जब लोग इस उक्ति को दोहराते हैं तो विश्वास मानिए मैं बहुत देर तक हँसता हूँ और हँसता रहता हूँ| यदि इस पैमाने पर आज के साहित्यकारों को तौला जाए तो लगभग की संख्या ऐसी होगी जिसे साहित्यकार मानने से इनकार करना पड़ेगा| लेकिन करता कौन है? कोई नहीं क्योंकि ऐसा करते हुए हाशिए पर जाने का डर तो बना ही रहता है| जो करता है उसे होना भी पड़ता है|

मेरी नजर में राजनीति एक ऐसा गेम है जिसमें शामिल हर चेहरा एक खिलाड़ी है| खिलाड़ी के लिए हार और जीत तो मायने रखती है, वेदना-सम्वेदना विल्कुल नहीं| जब कोई साहित्यकार इस गेम में शामिल होता दिखाई देता है, निश्चित ही जुवाड़ी की टीम में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहा होता है| इधर एक अलग रवायत चली है| हर साहित्यकार का अपना दल है| हर दल का अपना साहित्यकार है| घूम-फिरकर जब भी अधिकारों की बात की जाती है जनता का पक्ष कम ‘दल’ का पक्ष अधिक रखा जाता है| जबकि पक्ष रखने वाला हर समय स्वयं के निरपेक्ष होने का ‘ढोंग’ पाले रखता है|

जिस तरह कोई जुवाड़ी स्वयं को कभी भी जुवा खेलने वाला नहीं मानता ठीक इसी तरह कोई भी साहित्यकार स्वयं को राजनीतिक दलों का प्रचारक नहीं स्वीकार करता| प्रकारांतर से होता वह वही है| आप नजर उठाकर देखिये सब स्पष्ट होगा और होता चला जाएगा| हर किसी के हाथ में किसी न किसी दल का झंडा और एजेण्डा जरूर होगा|

अधिकांश साहित्यकार पर तब और हंसी छूटती है जब वे सूर, तुलसी और कबीर को अपना आदर्श बताते हैं| यह कहते हुए नहीं थकते कि उन्होंने अपने समय के बादशाहों का नहीं सुना| यह सच है कि उन्होंने नहीं सुना लेकिन क्या यह सच नहीं है कि इधर के साहित्यकार ‘सुनने’ के चक्कर में स्वयं की आवाज और ज़मीर को राजनीतिक दलों के यहाँ गिरवी रख दिया?  

जो जनता का पक्ष लेने वाला है उसे हर दल में शामिल ‘भीड़’ साहित्यकार मानने के पक्ष में नहीं है| आप देखिये गोरखपुर बच्चे मारे गये या मरे लोग बीजेपी के खिलाफ सड़कों पर उतरे| बीजेपी के पक्ष में शामिल साहित्यकारों ने चूं तक न की| कोटा में बच्चे मरे लोग कांग्रेस के खिलाफ सड़कों पर उतरे| कांग्रेस के समर्थक चूं तक नहीं किये| जनता चुपचाप मरी और मरती रही| न तो इधर वाले उधर की तरफ से बोला और न ही तो उधर वालों ने इधर की तरफ से|

निश्चित ही जनता का पक्ष यहीं कहीं से निकलेगा| लेकिन जिस तरह से दल-पूजा की संस्कृति का विकास इधर के साहित्यकारों में दिखाई दिया है उससे यह साफ़ जाहिर होता है कि जनता अकेली है| सत्ता सिर्फ और सिर्फ सत्ता होती है जिसे कुर्सी से मतलब होता है| ऊपर एक उदहारण भर दिया गया है मैं किसी के ऊपर आरोप कतई नहीं लगा रहा हूँ| जो साहित्यकार सत्तासीन दल के खिलाफ होकर सड़क पर शोर कर रहा होता है अचानक विपक्ष के सत्तासीन होते ही अपना पद पाकर पुरस्कार और सम्मान के लालच में मशगूल हो जाता है| खैर...   


Sunday 22 December 2019

अजीब समय है यह

1

समय अजीब है
अजीब समय है यह
हर चेहरे
रंगे हुए हैं
तमाम गाढ़े रंगों में
छिपाने की कोशिश में
दिखाई देने लगे हैं
उनके चेहरे
पूरे सच के साथ

2

भीड़ चारों तरफ मौजूद है
और तुम कहते हो
अकेले हैं सभी
तनहा हैं
हताश परेशान और निराश हैं

हैरान न हों
ये श्मशान हैं
जलाने के लिए जिन्दा आग
हवा, तूफ़ान
सम्वेदनाओं को बांटते हैं ये

3

निगाह एक पर डालो 
भेद खुलता है
सौ-सौ का
भेड़ की शक्ल में
भेड़ियों का हुजूम है
देखो तो पहचानों ठीक से
रोते हैं यही तो
रुलाते भी यहीं हैं

4

यह समय है
मूर्ख चेतना के पाठ पढ़ा रहे हैं
बुद्धिमान मौन हैं

मशाल लेकर चलने का जिम्मा
घर जलाने वालों के हाथ में है
जो दीप जलाने के काबिल हैं
अँधेरे के शहंशाह
घोषित किये जा रहे हैं

बस्तियों को अँधेरे में
धकेलने वाले
अहिंसक बताए जा रहे हैं
अराजक दौर है ये जहाँ
'कलह' के सिपाही
'शांतिदूत' बनाए जा रहे हैं

Thursday 19 December 2019

फायदा राजनीतिज्ञों को हो और नुक्सान हम उठाएं?

उठिए, बोलिए, हिंसा के खिलाफ खड़े होइए| जो पत्थर लेकर घुमते हुए दिखाई दें उन्हें डंडे मारकर भगाइए| जो देश को तोड़ने और फोड़ने की आवाज उठाते हुए नजर आएं उन्हें दौड़ाइए| देश किसी के बाप की बपौती नहीं है| सबका है| सबके खून पसीने से बना है देश| देश की सार्वजनिक सम्पत्ति सबकी सांझी सम्पत्ति है| सदियों से बनी-बनाई सम्पत्ति को आवारा भीड़ के हाथों छोड़कर चैन की सांस लेना उचित नहीं है|
यह कहाँ की नीति है कि फायदा राजनीतिज्ञों को हो और नुक्सान हम उठाएं? रोटी कोई और सेके और भूखों मरें हम...ऐसा नहीं होगा| नहीं होना चाहिए ऐसा| दिन-के-दिन बीत जाते हैं तब जाकर कहीं दो पैसे आते हैं और जब उन्हीं पैसों से वोट की दलाली की जाती है तो अखरता है साहब| जो विपक्ष जनता के बीच नकारा बन चुका है, जो भरी सदन में कुछ नहीं कर सका वह तांडव मचाने पर उतारू है भला?
यदि इतनी ही शक्ति और सामर्थ्य होती तो विपक्ष में इस तरह होने का दुखद एहसास कभी न होता| आज भी इनमें से कोई जनता के बीच जाने से डरता है| तमाम मुद्दे ऐसे हैं जिन पर आवाज उठाना चाहिए और चाहिए था वहां ये नहीं पहुँच सके| CAB के मार्फ़त खुलकर खेल खेलना चाहते हैं| खून की नदियाँ बहाना चाहते हैं| देश जलाना चाहते हैं| ये नहीं चल सकता है, नहीं चलेगा|

पागल मानसिकता कभी भी शांतिप्रिय नहीं हो सकती| अशांति फैलाने वालों के लिए अनुशासन बहुत जरूरी है| यह होना चाहिए| जो खुले दौड़ रहे हैं उन्हें बंधन का एहसास दिया जाना चाहिए| यह जागरूक नागरिक बिलकुल नहीं हैं| किसी भी तरह से अपना हित सोचने वाले लोग नहीं हैं|

विडंबना की स्थिति तो ये है कि ये तोड़-फोड़ भी कर रहे हैं और जब पुलिस द्वारा इन्हें रोका जा रहा है तो व्यवस्था को हिंसक भी कह रहे हैं| भाई तुम्हारी पागल मानसिकता का इलाज तो करना होगा न? ऐसे ही यदि छोड़ दिया गया तो उत्पात मचाकर देश को नष्ट नहीं कर डालोगे?

विरोध पटरी से उतर चुके ट्रेन के समान हो गया है| इसका कोई दशा-दिशा स्पष्ट नहीं है| तथाकथित शांतिपूर्ण उपद्रव अब पूर्ण रूप से सांप्रदायिक रंगों में रंगता चला जा रहा है| ध्यान से देखिये, समझिये आराम से, अवलोकन करिए शांति से पूरी प्रक्रिया का| किसी भी हिन्दू द्वारा न तो इस्लाम को नकारा गया और न तो उनका कब्र खोदा गया| न तो दलितों को गालियाँ दी गयी| बावजूद इसके पूरा जोर-शोर मुस्लिम और दलित और पिछड़ा के हक़ के लिए चला गया| उन्हें भड़काया गया| उत्तेजित किया गया| हिन्दू की कब्र तक खोदी गयी विश्वविद्यालयों में|

यदि यही सब विरोध रह गया है तो निश्चित तौर पर खतरनाक है| इसे समय रहते पहचाना जाए| इनके प्रतिरोध में व्यवस्थाओं की जड़ों को और मजबूत किया जाए| ये अहिंसा के पुजारी नहीं हैं किसी भी रूप में हिंसा के व्यापारी हैं| इन्हें समय रहते न रोका गया तो परिणाम और भी भयानक हो सकता है|

यहाँ मामला CAB का अब बिलकुल नहीं है

विरोध जब विरोध मात्र के लिए होता है तो आगजनी होती है, लूटपाट होता है, खून-खराबा होता है, तोड़-फोड़ होती है| यह सब हो रहा है| डकैतों को शहीद घोषित किया जा रहा है और चोरों को क्रांतिकारी| यह कैसा समय है जिसकी दुहाई सभी दे रहे हैं और इस प्रकार की टुच्ची प्रवृत्ति का समर्थन भी किया जा रहा है|

यह सीधी सी बात क्यों नहीं समझा जा रहा है कि यहाँ मामला CAB का अब बिलकुल नहीं है| नहीं रह गया है| सीधे तौर पर राजनीति खेली जा रही है| कांग्रेस का भारत बचाओ रैली किसी भी रूप में भारत के हित में नहीं थी| यह रैली थी ही भारत जलाओ के लिए| सपा, बसपा जैसे क्षेत्रीय दल भी इसी प्रकार के हिंसा के इन्तजार में थे|

शांतिपूर्ण विरोध के नाम पर उग्रवाद को जो समर्थन दिया जा रहा है क्या यही भारतीयता है? क्या यही संविधान है? क्या यही गांधीवाद है? सच तो यह है कि इन मूर्खों को न तो सम्विधान से कुछ लेना-देना है और न ही तो लोकतंत्र से| शोकतंत्र के हिमायती लोकतंत्र के नाम पर जीती-जागती बस्ती को मुर्दाघाट बनाने के लिए मचल रहे हैं|

पत्थरबाजों का काम है मात्र पत्थर बरसाना| इनसे सीधे तौर पर निपटा जाना चाहिए| निपटा भी जा रहा है| ये मासूम कतई नहीं हैं| किसी भी रूप में मजबूर और कमजोर नहीं हैं| मुस्लिम संगठन सरेआम खून बहाने की धमकियाँ दे रहे हैं| यह किसी को नहीं दिखाई दे रहा है| आगजनी कर रही हैं यह भी नहीं देख पा रहे हैं| नहीं देखेंगे क्योंकि उधार की आँख से सम्वेदना की परख करने निकले हैं ये|

भाड़े के सौदागरों से गरीब जनता त्रस्त हो रही है| परेशान हो रही है| ये दंगा-दंगा खेल रहे हैं और देश बर्बाद हो रहा है| यह तो देश नहीं था| यह देश नहीं है| ऐसा कभी नहीं था और ऐसा रहेगा भी नहीं| जो मामला बिलकुल भी हिन्दू-मुस्लिम नहीं था उसे बहुत बारीकी से हिन्दू-मुस्लिम के रंग में रंग दिया गया| वोट की राजनीति में गरीब विद्यार्थियों को बेबस मरने के लिए छोड़ दिया गया| मारे गये और मरे भी| वे ख़ुशी हैं| घर उजड़ा जिसका उनके माता-पिता से पूछो मूर्खों|

यह लगातार देखा जा रहा है कि जो गांधी और सम्विधान के हिमायती बन रहे हैं वे हर तरह से उनकी भावनाओं को जला रहे हैं| पता नहीं ये कुछ पढ़ते-लिखते भी हैं कि नहीं| सुनी-सुनाई बातों से क्रांति का नारा लगाने वाले भेड़ों से बहुत ठीक भेड़िये होते हैं कम से कम अपना तो पहचानते हैं|

Tuesday 3 December 2019

बिम्ब-प्रतिबिम्ब सृजन संस्थान एवं भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ, प्रयागराज द्वारा आयोजित ‘लोकतंत्र में मीडिया का योगदान’ विषय पर संगोष्ठी सम्पन्न


जिस क्षेत्र में अराजकता का दौर शुरू होता है वहां कोई न कोई जिम्मेदार संस्थान या व्यक्तित्व निखर कर सामने आता है| यह दौर सही अर्थों में संकट का दौर है| सामाजिक संकट से लेकर मूल्यों के विघटन तक की जो यथास्थिति है वह भयानक है| पत्रकारों को अपनी भूमिका की पहचान करनी होगी| साहित्यकारों को अपनी भूमिका की पहचान करनी होगी| जो संस्थान हैं या संस्थाएं हैं उन्हें अपनी भूमिका को पहचानना होगा| सामान्य से लेकर खास तक को एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका का निर्वहन करना होगा” यह कहना था जालंधर के वरिष्ठ साहित्यकार और दैनिक सवेरा के एडिटोरियल पेज के सम्पादक श्री सुरेश सेठ जी का जो बतौर अध्यक्ष बिम्ब-प्रतिबिम्ब सृजन संस्थान, जालंधर एवं भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ, प्रयागराज के तत्वावधान में आयोजित "लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका" विषयक संगोष्ठी को सम्बोधित कर रहे थे|
उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि “बिम्ब-प्रतिबिम्ब का एक संस्था के रूप में खड़ा होना और भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ का पंजाब प्रदेश में सक्रियता के साथ आना दोनों स्थितियां समय और समाज के लिए हितकर हैं| मुझे विश्वास है कि पंजाब की धरती से बदलाव की नई जमीन तैयार होगी|” उनका मानना था कि “आंचलिक पत्रिका और पत्रकारों की भूमिका समाज के निर्माण में अत्यंत महत्वपूर्ण है और सर्वाधिक जनउपयोगी  सार्थक दृष्टिकोण लघु पत्रिकाएं एवं आंचलिक पत्रकार ही प्रस्तुत करते हैंl”

बतौर मुख्य अतिथि पूर्व विधायक एवं मंत्री पंजाब सरकार एवं वर्तमान शहरी प्रधान (शिरोमणि अकाली दल) रंजीत सिंह ढिल्लों ने अपना अभिमत रखते हुए कहा कि “कवि लोग मनोरंजन नहीं करते अपितु गंभीर बातों की तरफ इशारा करते हैं| इनके इशारे को समझते हुए यदि समाज अपना कदम बढ़ाए तो सामंजस्य एवं समरसता के लक्ष्य से दूर कभी न जाए| हमें अन्य शौक से दूर रहते हुए साहित्य समृद्धि में अपना योगदान तो देना ही चाहिए ऐसे महान साहित्यकारों को सुनने और समझने की कोशिश भी करनी चाहिए”


डॉ. विनोद कुमार (डी.ए.वी. कॉलेज, जालंधर) का मानना था कि “पत्रकारिता एक जिम्मेदारी और ईमानदारी की जमीन है जहाँ सत्य कहने और प्रस्तुत करने का जोखिम उठाना होता है| इस स्थिति को हमें बराबर बनाकर रखना होगा|”

लुधियाना के प्रतिष्ठित अधिवक्ता ए. के. गिरि जी ने पत्रकारिता और कानून की जिम्मेदारियों को प्रस्तुत करते हुए इस बात पर बल दिया कि लोकतंत्र इन्हीं दोनों के आधार पर समृद्ध हो सकता है इसलिए जरूरी है कि ऐसे पेशे में वही सक्रिय हों जो जिम्मेदार और कर्तव्यों के प्रति सचेत हों|”

 लुधियाना के बड़े शायर सागर सियालकोटि जी का कहना था कि पत्रकार और साहित्यकार दोनों को बहुत कुछ त्याग करते हुए आगे बढ़ना होता है| समाज इन्हीं से प्रेरणा ग्रहण करता है| युवा यहीं से संस्कारित होता है|”

 पत्रकार महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक डॉ भगवान प्रसाद उपाध्याय ने संगोष्ठी को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए कहा कि लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है आजादी की लड़ाई में भी मीडिया ने अपना सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया आज मीडिया लोकतंत्र की संरक्षा और सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैl

 साहित्य प्रकोष्ठ के प्रभारी डॉक्टर रामलखन चौरसिया ने अपने उद्बोधन में कहा कि पत्रकारों की समस्याओं का निदान  सरकारी स्तर से भी सुनिश्चित किया जाना चाहिएl

पत्रकार महासंघ के पत्रकार उत्पीड़न निवारण प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय प्रभारी अरविंद कुमार पाण्डेय जी संगोष्ठी के व्यवस्था-प्रमुख रहें जिन्होंने अभ्यागत अतिथियों का स्वागत किया और उन्होंने यह आश्वस्त किया कि निकट भविष्य में शीघ्र ही एक स्तरीय आयोजन पूरे पंजाब की धरती पर किया जाएगाl

अरविन्द पाण्डेय के आयोजन में सम्पन्न हुआ यह महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम कुल तीन सत्रों में विभाजित था|  विचार गोष्ठी, लोकार्पण समारोह और सम्मान समारोह| इस अवसर पर साहित्यांजलि प्रभा के दिसंबर अंक का लोकार्पण भी किया गया| पहले सत्र की अध्यक्षता श्री सुरेश सेठ जी ने और मंच-सञ्चालन डॉ. सौरव कुमार ने किया|

युवा कवियों ने अपनी मजबूद उपस्थिति दिखाते हुए साहित्य प्रेमियों को सोचने के लिए विवश किया| लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के युवा कवि धीरेन्द्र सिंह, अंकित डोकानिया और साहिल कुमार ने अपनी कविताएँ सुनाकर लोगों का दिल जीता| इनकी कविताएँ अपने समय की विसंगतियों पर गंभीर विमर्श की मांग रखती हैं| वरिष्ठ कवि श्री सागर सियालकोटि जी ने तरन्नुम में ग़ज़ल प्रस्तुत कर सब को मंत्रमुग्ध कर दिया| इस सत्र का सञ्चालन लवली अनिल पाण्डेय ने किया|


कविता सत्र में विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री प्रवीण सूद जी उपस्थित रहे| उनके साथ मंच पर हरजिंदर सिंह मिंटा जी, रमेश शर्मा जी, बलबीर सिंह ढिल्लों जी, हरमन सिंह जी एवं गुरदीप सिंह जी, राजकुमार राजू जी उपस्थित रहे| इस अवसर पर अन्य साथियों में अमित कुमार गुप्ता, दिनेश कुमार, माहिद अली, के साथ-साथ अन्य साहित्य प्रेमी भी उपस्थित रहे। 


इस कार्यक्रम में जालंधर के वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश सेठ को पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रियता और विशेष योगदान के लिए और लुधियाना के प्रतिष्ठित कवि श्री सागर सियालकोटि को साहित्य के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पत्रकार महासंघ द्वारा सम्मान-पत्र देकर सम्मानित किया| एस.सी.डी. राजकीय महाविद्यालय, लुधियाना के सहायक प्राध्यापक डॉ. सौरव कुमार को और डी.ए.वी. कॉलेज के सहायक प्राध्यापक डॉ. विनोद कुमार को शिक्षा एवं साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों के लिए सम्मानित किया गया|

जे.के. चैनल के जुझारू पत्रकार श्री राजेश कुमार को और बिम्ब-प्रतिबिम्ब सृजन संस्थान, जालन्धर के संस्थापक एवं लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के सहायक प्राध्यापक अनिल पाण्डेय को पत्रकारिता एवं साहित्य के क्षेत्र में विशेष योगदान देने के लिए सम्मानित किया गया| उपस्थित युवा कवियों को और अतिथिगण को बिम्ब-प्रतिबिम्ब सृजन संस्थान, जालंधर द्वारा विशेष सम्मान से सम्मानित किया गया|


 यह सम्पूर्ण कार्यक्रम जिसके निर्देशन में चला वह श्री राजेश सूद जी थे| उन्होंने उपस्थित सभी अतिथियों का अपनी तरफ से स्वागत ही नहीं किया अपितु हर वर्ष इस तरह के साहित्यिक कार्यक्रम करवाने का संकल्प भी रखा, जिसका स्वागत सभी ने किया| कार्यक्रम के अंत में उपस्थित सभी अतिथियों को सम्बोधित करते हुए नगर काउंसलर श्री कुलवंत सिंह जी ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया|

विदित हो कि बिम्ब-प्रतिबिम्ब सृजन संस्थान, जालंधर एवं भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ, प्रयागराज  के तत्वावधान में वी 2 वी होटल के सेमिनार हाल, समराला चौक, लुधियाना में 1 दिसंबर 2019, रविवार की शाम को यह कार्यक्रम आयोजित हुआ जो देर रात तक चलता रहा|