Thursday 19 December 2019

फायदा राजनीतिज्ञों को हो और नुक्सान हम उठाएं?

उठिए, बोलिए, हिंसा के खिलाफ खड़े होइए| जो पत्थर लेकर घुमते हुए दिखाई दें उन्हें डंडे मारकर भगाइए| जो देश को तोड़ने और फोड़ने की आवाज उठाते हुए नजर आएं उन्हें दौड़ाइए| देश किसी के बाप की बपौती नहीं है| सबका है| सबके खून पसीने से बना है देश| देश की सार्वजनिक सम्पत्ति सबकी सांझी सम्पत्ति है| सदियों से बनी-बनाई सम्पत्ति को आवारा भीड़ के हाथों छोड़कर चैन की सांस लेना उचित नहीं है|
यह कहाँ की नीति है कि फायदा राजनीतिज्ञों को हो और नुक्सान हम उठाएं? रोटी कोई और सेके और भूखों मरें हम...ऐसा नहीं होगा| नहीं होना चाहिए ऐसा| दिन-के-दिन बीत जाते हैं तब जाकर कहीं दो पैसे आते हैं और जब उन्हीं पैसों से वोट की दलाली की जाती है तो अखरता है साहब| जो विपक्ष जनता के बीच नकारा बन चुका है, जो भरी सदन में कुछ नहीं कर सका वह तांडव मचाने पर उतारू है भला?
यदि इतनी ही शक्ति और सामर्थ्य होती तो विपक्ष में इस तरह होने का दुखद एहसास कभी न होता| आज भी इनमें से कोई जनता के बीच जाने से डरता है| तमाम मुद्दे ऐसे हैं जिन पर आवाज उठाना चाहिए और चाहिए था वहां ये नहीं पहुँच सके| CAB के मार्फ़त खुलकर खेल खेलना चाहते हैं| खून की नदियाँ बहाना चाहते हैं| देश जलाना चाहते हैं| ये नहीं चल सकता है, नहीं चलेगा|

पागल मानसिकता कभी भी शांतिप्रिय नहीं हो सकती| अशांति फैलाने वालों के लिए अनुशासन बहुत जरूरी है| यह होना चाहिए| जो खुले दौड़ रहे हैं उन्हें बंधन का एहसास दिया जाना चाहिए| यह जागरूक नागरिक बिलकुल नहीं हैं| किसी भी तरह से अपना हित सोचने वाले लोग नहीं हैं|

विडंबना की स्थिति तो ये है कि ये तोड़-फोड़ भी कर रहे हैं और जब पुलिस द्वारा इन्हें रोका जा रहा है तो व्यवस्था को हिंसक भी कह रहे हैं| भाई तुम्हारी पागल मानसिकता का इलाज तो करना होगा न? ऐसे ही यदि छोड़ दिया गया तो उत्पात मचाकर देश को नष्ट नहीं कर डालोगे?

विरोध पटरी से उतर चुके ट्रेन के समान हो गया है| इसका कोई दशा-दिशा स्पष्ट नहीं है| तथाकथित शांतिपूर्ण उपद्रव अब पूर्ण रूप से सांप्रदायिक रंगों में रंगता चला जा रहा है| ध्यान से देखिये, समझिये आराम से, अवलोकन करिए शांति से पूरी प्रक्रिया का| किसी भी हिन्दू द्वारा न तो इस्लाम को नकारा गया और न तो उनका कब्र खोदा गया| न तो दलितों को गालियाँ दी गयी| बावजूद इसके पूरा जोर-शोर मुस्लिम और दलित और पिछड़ा के हक़ के लिए चला गया| उन्हें भड़काया गया| उत्तेजित किया गया| हिन्दू की कब्र तक खोदी गयी विश्वविद्यालयों में|

यदि यही सब विरोध रह गया है तो निश्चित तौर पर खतरनाक है| इसे समय रहते पहचाना जाए| इनके प्रतिरोध में व्यवस्थाओं की जड़ों को और मजबूत किया जाए| ये अहिंसा के पुजारी नहीं हैं किसी भी रूप में हिंसा के व्यापारी हैं| इन्हें समय रहते न रोका गया तो परिणाम और भी भयानक हो सकता है|

1 comment:

Hitesh pant said...

बहुत ही उम्दा ।