Sunday 22 December 2019

अजीब समय है यह

1

समय अजीब है
अजीब समय है यह
हर चेहरे
रंगे हुए हैं
तमाम गाढ़े रंगों में
छिपाने की कोशिश में
दिखाई देने लगे हैं
उनके चेहरे
पूरे सच के साथ

2

भीड़ चारों तरफ मौजूद है
और तुम कहते हो
अकेले हैं सभी
तनहा हैं
हताश परेशान और निराश हैं

हैरान न हों
ये श्मशान हैं
जलाने के लिए जिन्दा आग
हवा, तूफ़ान
सम्वेदनाओं को बांटते हैं ये

3

निगाह एक पर डालो 
भेद खुलता है
सौ-सौ का
भेड़ की शक्ल में
भेड़ियों का हुजूम है
देखो तो पहचानों ठीक से
रोते हैं यही तो
रुलाते भी यहीं हैं

4

यह समय है
मूर्ख चेतना के पाठ पढ़ा रहे हैं
बुद्धिमान मौन हैं

मशाल लेकर चलने का जिम्मा
घर जलाने वालों के हाथ में है
जो दीप जलाने के काबिल हैं
अँधेरे के शहंशाह
घोषित किये जा रहे हैं

बस्तियों को अँधेरे में
धकेलने वाले
अहिंसक बताए जा रहे हैं
अराजक दौर है ये जहाँ
'कलह' के सिपाही
'शांतिदूत' बनाए जा रहे हैं

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