मन की बेचैनी में जाहिर भले न हो
बेचैनी दिल की शामिल है
दुखता है हृदय
जब नींद गायब हो जाती है देर रात
सुबह का इंतज़ार
स्मृतियाँ अतीत की कचोटती रहती हैं हर समय
व्यस्तताएं कहाँ नहीं हैं
बादल कितना कौन व्यस्त होगा
धरती के हिस्से तो
बस यही है यथार्थ कि वह व्यस्त रहती है
बावजूद इसके
मिलन की उत्कंठा इतनी
होती है बारिश तो भीग जाता है संसार सारा
अब यह मत कहें
कि समुद्र की लहरों से उठता है उफान जल का
किसी की याद से पिघलता है आसमान
हम प्रेमी तो बस यही जानते हैं
सच तो बस उतना ही है
जितना दिल कहे और माने
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