Friday, 2 June 2023

मनुष्य बस इसी तरह चलता है...

 मन के दुखी होने में

परिवेश शामिल होता है कुछ हद तक
हृदय के टूटने में
आवाज़ कहीं से भी नहीं आती
एक 'धक्का' सा लगता है
बिखर जाता है सब कुछ किसी शीशे की तरह
स्वाति के बूंदों से
चातक के उलझने की जरूरत ही क्या थी आखिर
ख़ाली था तो
स्नेह के नेह में रम लिया
अब समुद्र भी उफ़ान मारे तो उसके किस काम का?
दुनिया बस ऐसे ही है
'काम' से 'काम' भर का मतलब है
जब तक न सधे कुछ
मोह है माया है जीवन है संसार है
वैराग्य तो
सब कुछ प्राप्त कर लेने के बाद का 'अवसर' है
हर कोई भुनाता है इसे अपनी तरह से
'मन' और 'हृदय'
हैं तो आखिर व्यापार ही
कोई खरीदता है
बेचता है फिर कोई अपनी हद में
उलझता है तो बस जीवन
कभी लाइन पर चल रहा होता है
तो कभी फिसलता है
मनुष्य बस इसी तरह चलता है

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