Friday 4 July 2014

पुस्तकालय मे

अब  हम 

नित दिन ही पुस्तकालय में 

धूल  झाड़ेंगे 

खाक छानेगे

तपेंगे दिन रात 

कुछ पाने के लिए 

ज्ञात या अज्ञात 

ऊंघेगे , टहल टहल कर 

बैठ बैठ कर कुछ देर 

रुक रुककर कुछ देर 

कुछ समय चल चलकर 

पुस्तकालय  मे 

हाथ पैर मारेगे 

खोजेंगे कुछ बात 

कुछ चीजे जरूरी 

नई नई दिशाए 

निहारेंगे 

किताबो , पत्र  पत्रिकाओ से 

क्या पता 

किसी दिन 

किसी मोड़ से 

 किसी रास्ते पर 

किसी छोर से 

आ जाए अच्छे दिन 

मुझे पूछते पूछते। ………………………… 

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