यदि स्त्री पर आपराधिक मामले चल रहे हैं पहले से तो क्या उसे सच कहने और अपने
ऊपर होने वाले ज्यादतियों को बताने का हक नहीं है? क्या सुप्रीम कोर्ट का जज होना सभी
प्रकार की प्रवृत्तियों से पाक साफ़ होने का अंतिम प्रमाण है? यदि स्त्री ने सेक्सुअल
हरासमेंट के आरोप लगाए हैं तो कुछ तो सही होगा? कोई स्वयं को इतने बड़े और चरित्र
पर लगने वाले दाग को कैसे सार्वजनिक कर सकता है भला? आप कहते हैं कोई ‘बड़ी शक्ति’
काम कर कर रही है आपको बदनाम करने के लिए तो क्या ये सही नहीं है कि वह बड़ी शक्ति
है जिस पर बैठकर आप एकदम से सुरक्षित हैं|
चलो मान भी लेते हैं कि एक हद तक आप सही भी हो लेकिन यही आरोप यदि किसी मंत्री/
विधायक/ सांसद/ डाक्टर/ प्राध्यापक अथवा अन्य किसी कर्मचारी पर लगे होते तो क्या
उस समय भी आपके यही तेवार होते साहब? उस समय भी उसे अपने पद पर बने रहने देते और
जो जनता आपके पक्ष में खड़ी है क्या उनके पक्ष में उसी निर्लज्जता के साथ खड़ी होती?
शायद न खड़ी होती क्योंकि उसके साथ वह ‘बड़ी शक्ति’ नहीं रहती है जिसके छत्रछाया में
आप सुरक्षित हैं एकदम से|
महिला ने एक हलफनामें को 22 जजों के घर भेजा है| इतने बड़े पद पर बैठे किसी भी
व्यक्तित्व के लिए इतनी बड़ी हिमाकत करना बगैर सच के आधार के सम्भव नहीं है| लेकिन
जिस तरह आप स्वयं को गलत नहीं मान रहे हैं लोग भी आप को गलत मानने की ‘भूल’ नहीं
करेंगे| समरथ को दोषी कहने की भूल कर भी कौन सकता है? वह भी इस देश में तो बिलकुल
असंभव है क्योंकि शोषण को चुपचाप सह जाना ही आम आदमी के जीवन की सबसे बड़ी नियति
है|
यदि आप यह कहते हैं कि जज के पास ‘प्रतिष्ठा’ ही है तो भाई प्रतिष्ठा जज के
पास ही नहीं सभी के पास होती है? फिर तो प्रतिष्ठा दांव पर न लगे इसलिए किसी के
खिलाफ कोई कानून वगैरह तो बनता ही नहीं? चुपचाप शोषण करो और सज्जन बने रहो अंततः| आप
कहते हैं कि “मुझे कोई धन के मामले में पकड़ नहीं सकता| लोगों को कुछ और तलाशना था
और उन्हें यह मिला|” तो साहब धन से हीन होना ‘अपराध’ से मुक्त होना नहीं है| यानी
आप ‘धन’ संचित करके नहीं रख पाए तो गलत कार्य नहीं करेंगे यह बचाव का कैसा तर्क है
भाई? आरोप लगा है तो सच्चाई भी होगी| नहीं भी होगी तो जो सजा हो बाद में उसे सुनाओ
वह भुगते उसे| लेकिन ऐसा नहीं होगा|
अभी उसे आपराधिक मामलों में दोषी बताया जा रहा है, बाद में फाइलें पलटी
जायेंगी, उसके खिलाफ के अपराध दो चार और ढूंढें जायेंगे, किसी मंत्री वंत्री के
साथ उसके कनेक्शन फिट किये जाएंगे और फिर उसके बाद जो अक्सर होता है महिलाओं के
साथ...दुश्चरित्र घोषित करके बदनाम कर दिया जाएगा उसे| वह न्याय नहीं पायेगी| जज
साहब साहस के साथ फैसलें सुनाएंगे और एक स्त्री अपने फैसले का इंतज़ार करते हुए या
तो आत्महत्या कर लेगी या फिर जज साहब की मुस्कराहट और साहस को देखते हुए तिल-तिल
मरने लगेगी| भारतीय न्याय की यही विशेषता है|
महिला आयोग कहाँ चली गयी भाई? वह आयोग
जो मीटू कार्यक्रम को आगे बढ़ा रही थी? वे लोग कहाँ चले गये जो महिला अधिकारों के
प्रति स्वयं को ‘तटस्थ’ बता रहे थे? दरअसल वे लोग कहीं गये नहीं हैं, वे लोग अभी ‘फासीवाद’
के खिलाफ सबूत जुटाने में आप से उम्मीद जगाए बैठे हैं| वे लोग आपमें ‘ईश्वर’ का
अंश देख रहे हैं| वे लोग अभी ‘भक्त’ को कोश रहे हैं| आप उस महिला के साथ ही नहीं
उन लोगों के घर की महिलाओं के साथ ज्यादती करेंगे फिर भी वे नहीं बोलेंगे कुछ भी|
क्योंकि वे वैचारिकता के अन्धे और मानसिकता के पैदल लोग हैं| उनके आँसू, उनके नारे
स्वयं को सुरक्षित रखने के ‘सुरक्षा-कवच’ हैं|
जहाँ तक मेरा विचार है तो उस महिला को सुरक्षा दिलवाया जाए ‘सरकार’ द्वारा|
इनका कोई भरोसा नहीं है| अपने हितों की ‘सुरक्षा’ को ध्यान में रखते हुए वे उसे
मरवा भी सकते हैं| यदि सुरक्षा सम्बन्धी किसी प्रकार को जोखिम उस पर आता है तो
उसका सारा जिम्मा देश के प्रधान जज पर ही थोपा जाए|
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