शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2007
बाज़ार में
बिक रहा था सब कुछ
''कुछ'' के साथ ''कुछ''
मिल रहा था उपहार में
आलू, प्याज,टमाटर की तरह
भाव, विचार, रीति, नीति, सुनीति
सब के लगे थे भाव फुटकल नहीं, थोक में
लोग ख़रीद रहे थे
सब के साथ सब
कुछ के साथ सब
एक के साथ सब
कुछ को मिल रहा था
कुछ व्यवहार में
मैं खोज रहा था शिष्टाचार
किसी ने चेताया
यह नहीं संसार
तुम खड़े हो बाज़ार में॥
''कुछ'' के साथ ''कुछ''
मिल रहा था उपहार में
आलू, प्याज,टमाटर की तरह
भाव, विचार, रीति, नीति, सुनीति
सब के लगे थे भाव फुटकल नहीं, थोक में
लोग ख़रीद रहे थे
सब के साथ सब
कुछ के साथ सब
एक के साथ सब
कुछ को मिल रहा था
कुछ व्यवहार में
मैं खोज रहा था शिष्टाचार
किसी ने चेताया
यह नहीं संसार
तुम खड़े हो बाज़ार में॥
बाज़ार
आचार, शिष्टाचार, व्यवहार, परिवार
कितनी तीव्र हो रहा परिवर्तित संसार
घट रहा, बढ़ रहा, स्थाई नहीं, चल रहा
फिर भी सूना पड़ा मानवता का बाज़ार
है नहीं आता समझ क्या विस्तृत होगा
पैरा-पुतही, घांस-फूंस से
नव निर्मित मानव घर-बार
होगा यह चिरस्थाई क्या पुराने ईंटों से गर्भित दीवार
या यूँ ही रह जाएगा संकुचित कुजडे, बनिये का बाज़ार
नहीं सुरक्षित, वैचारिक स्थिति,
व्यावहारिक परिस्थिति से खंडित आचार
छोटे छोटे खंडों में, टुकड़ों में हो रहा विभाजित बाज़ार
गया परिवार, लोपित शिष्टाचार, नश्वरता ही रह गया आधार
बनते बिगड़ते शेअरों में विनष्ट हो रहा एक विस्तृत बाज़ार ॥
कितनी तीव्र हो रहा परिवर्तित संसार
घट रहा, बढ़ रहा, स्थाई नहीं, चल रहा
फिर भी सूना पड़ा मानवता का बाज़ार
है नहीं आता समझ क्या विस्तृत होगा
पैरा-पुतही, घांस-फूंस से
नव निर्मित मानव घर-बार
होगा यह चिरस्थाई क्या पुराने ईंटों से गर्भित दीवार
या यूँ ही रह जाएगा संकुचित कुजडे, बनिये का बाज़ार
नहीं सुरक्षित, वैचारिक स्थिति,
व्यावहारिक परिस्थिति से खंडित आचार
छोटे छोटे खंडों में, टुकड़ों में हो रहा विभाजित बाज़ार
गया परिवार, लोपित शिष्टाचार, नश्वरता ही रह गया आधार
बनते बिगड़ते शेअरों में विनष्ट हो रहा एक विस्तृत बाज़ार ॥
सोंच
सोंच, सोंच के किनारे रहकर
सोंचती है सोंचते हुए
क्या सोंच का जन्म
सोंच,सोंच के सोंचने से ही होता है
या
सोंच का सम्बंध
सोंच के सोंच से है
यानी अपनी प्यारी प्यारी चिन्ता ।।
सोंचती है सोंचते हुए
क्या सोंच का जन्म
सोंच,सोंच के सोंचने से ही होता है
या
सोंच का सम्बंध
सोंच के सोंच से है
यानी अपनी प्यारी प्यारी चिन्ता ।।
गुरुवार, 4 अक्टूबर 2007
क्या है मानव जीवन?
दुःख है
विपदा है
सघर्ष है
चल सम्पदा है
निरुपाय निरर्थक
एक विकट विकराल आपदा है
यह मानव जीवन
या
सुख है
समृद्ध है
सहज स्वीकार्य
मानवता की सुमनावीय
भावाभिव्यक्ति की
अचल सम्पदा है
यह मानव जीवन ?
विपदा है
सघर्ष है
चल सम्पदा है
निरुपाय निरर्थक
एक विकट विकराल आपदा है
यह मानव जीवन
या
सुख है
समृद्ध है
सहज स्वीकार्य
मानवता की सुमनावीय
भावाभिव्यक्ति की
अचल सम्पदा है
यह मानव जीवन ?
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