Thursday 7 February 2019

बिम्ब प्रतिबिम्ब के सन्दर्भ में

 

जिस तरह से जीवन जीने के विविध तरीके हैं उसी तरह से उसे अभिव्यक्त करने के लिए विविध साहित्यिक विधाएँ कार्य कर रही हैं| अकादमिक जगत से लेकर पत्र-पत्रिकाओं तक जितनी चर्चा कविता और कथा साहित्य की होती है, अन्य विधाओं की नहीं| ये प्रश्न बहुत दिनों से मेरे मन में था कि ऐसा क्यों हो रहा है? जब-जब उत्तर खोजने का प्रयास किया जीवन-व्यस्तता ने कुछ अलग करने की छूट नहीं दी| इधर यह विचार में आया कि कथेतर गद्य विधाओं को लेकर एक पत्रिका का प्रकाशन किया जाए जिसमें कविता और कथा साहित्य से हटकर जितनी भी विधाएँ हैं, उन पर विचार-विमर्श हो; आलोचना के दायरे में ये विधाएँ आएं और उन पर स्वतंत्र रूप से वाद-सम्वाद हो|

 वाद-सम्वाद और विचार-विमर्श की ऐसी सम्भावना को पंख देने के लिए जिस पत्रिका –प्रकाशन की इच्छा होती रही है, बिम्ब-प्रतिबिम्ब उसी का साकार रूप है| मुझे पता है कि इन विधाओं के रचनाकार कविता और कहानी की अपेक्षा कम हैं, उन्हें ढूँढना पड़ेगा जो आसान नहीं है, फिर भी अब जब कदम आगे बढ़ा लिया हूँ तो उन्हें ढूंढूंगा, खोजूंगा| कुछ लोग विश्वास नहीं करेंगे लेकिन उन्हें विश्वास में लाने का पूरा प्रयास करूंगा| कुछ इसे एक और मजाक मान कर चल रहे होंगे तो यह मानकर चलें कि पत्रिका का प्रकाशन अप्रैल महीने में निश्चित है| अभी अकेला हूँ तो भी चिंता नहीं है क्योंकि संग-साथ तो लोग निकल पड़ने के बाद ही होते हैं|

इस पत्रिका में नाटक और आत्मकथा धारावाहिक प्रकाशित करने का विचार है| जीवनी-लेखन पर भी गंभीरता से विचार किया जाएगा| अन्य साहित्यिक विधाओं पर भी कार्य करने पर विचार किया जा रहा है| आपका रचनात्मक सहयोग अपेक्षित है| शेष आप इस विषय-सूची को देखकर समझ सकते हैं-


दरअसल...(सम्पादकीय)
खुले मन से (जो कोई कुछ कहना चाहे)
बाकी सब ठीक है...(पत्र-साहित्य)
विमर्श (आलेख)
लोकांगन से (भारतीय भाषा)
दुनिया कुछ ऐसी है...(साक्षात्कार)
ऐसे जिया जीवन को (जीवनी)
स्मृतियां जो भूलती नहीं (रेखाचित्र-संस्मरण)
सैर कर दुनिया के गाफ़िल (यात्रा वृत्तांत)
जो देखा मैंने वहां (रिपोर्ताज)
रंग-तरंग (कला-सिनेमा)
दिन-प्रतिदिन (डायरी)
दुनिया रंगमंच है (नाटक-एकांकी)
विचार-वीथी
जीवन में जो कुछ मिला...(आत्मकथा)
सोचता हूँ कि दुनिया ये बदल जायेगी...(कवि-विशेष)

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