Wednesday 13 February 2019

कुछ नहीं होता

आशाओं के कंक्रीट पर
सम्भावनाओं की
पुष्प-कलियों का खिलना भी
सम्भव कहाँ होता है आखिर

पुष्प के लिए
नमी का होना जरूरी है
कंक्रीट तो अक्सर
पत्थर-पसंद होते ही हैं

हवा-पानी-खाद-बिसार
सब हड़प लेती हैं आशाएँ
सम्भवनाओं के लिए
ऊसर-धूल भर बचा रहता है

कुछ नहीं होता
स्वप्न यहाँ आने से पहले
पूरे हो जाते हैं
कल्पना के लोक में यथार्र्थ
सुलभ कहाँ होता है आखिर

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