Friday 30 April 2021

अफ़सोस कि पंजाब की हिंदी कविता को साहित्य-जगत में लाने वाले अभी फिलहाल सो रहे हैं

 

पंजाब की हिंदी कविता जगत पर इधर लगातार चर्चा हो रही है| सार्थक चर्चा हो रही है| होनी भी चाहिए| मजेदार बात तो यह है कि जिन्हें कविता लिखना और समझना नहीं आता, वे भी कविता के महत्त्व और कवि-सक्रियता की बात कर रहे हैं| यही कवि और कविता की ताकत है| जिनकी नज़रों में कवि पागल और मूर्ख थे, वे भी उनमें अब लोक-जीवन का अंश देख रहे हैं| मूर्ख पाठक से औसत दर्जे के रचनाकार कहीं अधिक श्रेष्ठ होते हैं| जो औसत होते हैं वह बाद में श्रेष्ठ भी हो सकते हैं| होते भी हैं| उन्हें माहौल मिलता है| नहीं मिलता तो वहां के जिम्मेदार लोग मिलकर बनाते हैं|

इधर रचना और रचनाकारों पर लम्बे समय से चर्चा-परिचर्चा कुछ हुई नहीं| इसी प्रवृत्ति ने यहाँ के जिम्मेदार और ईमानदार रचनाकारों को नेपथ्य में लाकर खड़ा कर दिया और खेल का मालिक किसी और को बना दिया गया| हमें खेल नहीं खेलना है| रचनाकारों का सम्यक और निरपेक्ष मूल्यांकन करना है| मूल्यांकन प्रक्रिया से गुजरते हुए उन रचनाकारों की भी चर्चा की जानी चाहिए, जिनकी वजह से पंजाब का कविता जगत चर्चा में रहता है| रचना या रचनाकार का अच्छा या बुरा होना आलोचक की मानसिकता और जरूरत पर निर्भर करता है| ऐसा होना भी चाहिए|

किसी भी विषय, क्षेत्र में सक्रिय रचनाकारों की सूची-निर्माण की प्रवृत्ति से हर समय बचना चाहिए हमें| फिर भी कुछ नाम यहाँ जोड़ने का आग्रह करता हूँ ताकि भविष्य में कुछ अध्येता भटकें नहीं| जिन्होंने श्रम किया है, इस धरा पर कविता की धार बहाई है, उनका नाम जरूर लेना चाहिए| कार्यक्रम समाप्ति पर ही नहीं प्रारंभ और बीच में भी लेना चाहिए| जो नाम इधर अच्छे से सक्रिय हैं, इनमें कुछ हिंदी ग़ज़लकार भी शामिल हैं- वे नाम इस प्रकार हैं-मोहन सपरा, राजेन्द्र टोकी, कीर्ति केसर, अनिल पठानकोटी, राजेन्द्र सिंह 'साहिल', शैली बलजीत, तरसेम गुजराल, संजीव डाबर, हरमोहिंदर सिंह बेदी, बलविंदर सिंह अत्री, नीलम जुल्का, निर्मल जसवाल राणा, सुरेश सेठ, रमेश विनोदी, कमलपुरी, मनोज फगवाड़वी, बिशन सागर, किरण वालिया, वीणा विज, शुभदर्शन, राकेश प्रेम, डॉ विनोद कुमार, बल्वेन्द्र सिंह, रश्मि खुराना, कमलेश आहूजा, सरला भारद्वाज, देविन्दर बिमरा, सत्य प्रकाश उप्पल, अमिता सागर (रचनाकार कमजोर हैं यह मजबूत, छोटे हैं या बड़े, इसका निर्धारण आलोचक लोग करें| ध्यान देने की बात यह है कि सभी नाम क्रम से नहीं हैं| क्रम आदि को लेकर भी यहाँ लड़ने की प्रवृत्ति होती है, इसलिए यहाँ कहना उचित समझा|) अभी मैं और भी नामों की खोज में सक्रिय हूँ| कुछ नाम हैं जो भूल भी रहा हूँ|

राजवन्ती मान को आप अब पंजाब से अलग नहीं देख सकते| फूलचंद मानव जैसे रचनाकार यहीं से हैं| अमरजीत कौंके इसी पंजाब के हैं| माधव कौशिक भी यहाँ के साहित्य शिरोमणि रहे हैं| आप उन्हें पंजाब से अलग कैसे कर सकते हैं? कृष्ण कुमार रत्तू जैसे रचनाकार यहाँ की ज़मीन को उर्वर बनाने में अपना योगदान दिया है| ये सभी कवि बगैर आलोचना की सहारा के सक्रिय रहे| इस प्रकार की सक्रियता कितनी मुश्किल होती है, हम आपसे अच्छा कौन जानता है भला? कोई भी रचनाकर यह मांग नहीं करता कि उसे बहुत धन कोई दे दे और न ही तो वह किसी से अपेक्षा करता है कि देगा कोई| वह महज शब्द-शक्ति के आसरे रहता है और उसी को अपना सब कुछ समझता है| यह तय है कि रचनाकार को प्रशंसा के अतिरिक्त कोई सैलरी नहीं चाहिए| उन्हें चर्चा-परिचर्चा चाहिए जो इधर न के बराबर होता है| रचनाकारों के साथ उनकी रचनाओं का मूल्यांकन होता रहे तो बेहतर से बेहतर हो सकता है|

ऐसे जगह पर आलोचक की सक्रियता मायने रखती है| वह प्रचार नहीं करता लेखक और पुस्तक की लेकिन लोगों को यह तो बताता ही है कि अमुक के साहित्य में कौन-सी दृष्टि है अमुक के साहित्य में कौन-सी दृष्टि| उसका लिखा हुआ पत्रिकाओं में प्रकाशित होता है, ब्लॉग पर प्रकाशित होता है तो तमाम क्षेत्र के पाठक उन्हें पढ़ते हैं| सही और गलत का अर्थ लोग निकालते हैं| अब जब आलोचक ही अपनी ज़िम्मेदारी से भागते रहे तो रचनाकार करें क्या आखिर? हालांकि आत्ममुग्ध रचनाकारों ने यहाँ की रचनात्मक परिदृश्य को बहुत अधिक नुकसान पहुँचाया, फिर भी आलोचक और आलोचना की जिम्मेदारी तो बनती ही है? जो अच्छा होता है उसे अच्छा बताया जाना चाहिए| जो गलत है उसे गलत भी कहा जाना चाहिए| यह आलोचना की जिम्मेदारी है| पंजाब के हिंदी साहित्य को इस जिम्मेदारी की सबसे बड़ी आवश्यकता है| लोग यह नहीं समझ रहे हैं तो समझने की आवश्यकता है|

पंजाब के कविता जगत में दरअसल किसी आलोचक का ठहराव ठीक से नहीं हुआ| कोई आया होता और नकारात्मक बात भी करता तो ये कवि किसी अन्य प्रदेश के कवियों से कमजोर नहीं हैं और न ही तो इनमें उस दृष्टि का अभाव है| अन्य प्रदेशों के रचनाकर कोई तोप नहीं हैं| फर्क बस यही है कि उन्हें आलोचक मिलते गए| नहीं थे तो लोगों ने खोजा| किसी भी माध्यम से लेकर भी आए| नए नए आलोचकों को खड़ा किया यहाँ की तरह लाठी लेकर खदेड़ा नहीं| आए हुए रचनाकारों ने साहित्य को समृद्ध ही किया है, सीमित ही नहीं| यदि किसी रचनाकार की कड़ी आलोचना की गयी तो उसका विस्तार ही हुआ, संकुचन नहीं| आलोचना की प्रवृत्ति और जरूरत को लेकर यहाँ के साहित्य-जगत को समझने की जरूरत है|

सच्चाई तो यह है कि हमारे यहाँ आलोचक आए भी तो टिकने नहीं दिया गया या फिर क्षेत्रीय राजनीति का शिकार होने के भय से बाहर का रास्ता अपना लिया और यहाँ के विषय में चुप्पी साध ली| उनका भी इज्जत और अस्तित्व होता है| इज्जत और अस्तित्व को बचाए रखने के लिए साधी गयी 'चुप्पी' ने इतना खतरनाक कार्य किया कि बड़े और समर्थ कवि तो उपेक्षित हुए ही, पूरी की पूरी युवा पीढ़ी भी


हाशिए पर धकेल दी गयी| जालंधर आदि में कहीं कोई कार्यक्रम होता है तो युवाओं की उपस्थिति नदारद होती है| कभी कोई भूला-भटका आता भी है तो दुबारा लौटकर नहीं आता| कारण यह कि सार्थक विमर्शों पर चर्चा नहीं है, यह बात मैं पिछले लेख में कह चुका हूँ| यहाँ के वरिष्ठ भी युवाओं को आगे लाने का कार्य नहीं किये| यह भी एक बड़ा अपराध हुआ| लोग बच्चों को भी अपना प्रतियोगी बना लेते हैं और फिर धीरे-धीरे एक फ़ौज सक्रिय होती है जो विस्थापन पर धकेलने का षड्यंत्र करने लगते हैं| इधर पिछले तीन वर्षों से मैंने कोशिश की थी इन अपेक्षाओं पर कार्य करने के लिए लेकिन लोग मुझे भी विवादों में उलझा दिए| हालांकि मैं ऐसा होने नहीं दूंगा लेकिन सकारात्मक कार्यों में बाधा पहुँचती है|

हम-आप सक्रिय-निष्क्रिय रचनाकारों का नाम लेने और उनका गंभीर-विश्लेषण करने की जिम्मेदारी से स्वयं को अलग नहीं कर सकते| हमारे जालंधर में ऐसा ही गेम प्लेन लोगों ने तैयार किया था जिसका परिणाम आए दिन देखने को मिलता है| हालांकि अब परिदृश्य बदल रहा है| बदलना भी चाहिए| रचनाकार का नाम और विश्लेषण हर हाल में होना चाहिए, यह बात और है कि रचनाकार अच्छा लगे या बुरा| कुछ नाम तो ऐसे हैं जिन्होंने इधर अच्छा प्रतिनिधित्व किया है| हिंदी की समकालीन कविता पंजाब के कुछ रचनाकारों पर गर्व कर सकती है| अफ़सोस कि पंजाब की हिंदी कविता को साहित्य-जगत में लाने वाले अभी फिलहाल सो रहे हैं| वे कब जागेंगे, यह प्रतीक्षा लम्बे समय से थी, अभी भी बनी हुई है|

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