जीवन के जिस रंग को हम जी रहे है आज यहां
थे भोग चुके सब पहले ही मुंशी प्रेमचंद वहां
पता उन्हें था स्थिति एक दिन मानव की वह आएगी
देगा दुहाई वह मानवता की पर गरिमा उसकी मिट जाएगी
सबकुछ बदलेगा तेजी से जीवन मानव का होगा अल्प
स्थिति और परिस्थिति के मध्य होता जायेगा ''कायाकल्प ''
कुंठित मन का परिवर्तन ये 'कर्मभूमि ' तलासेगा
जब सूरदास नंगा होकरके 'रंगभूमि ' में नाचेगा
'हुस्ने बाजार ' में सरेआम सब अपना बदन दिखलायेंगे
पुण्य - प्रेम का 'वरदान' वे जीवन भर न पाएंगे
दैजा दहेज़ लेकर दुल्हन नयी नवेली तो आएगी
सब सामन वह संचित - निधि का लेकर 'गबन' हो जायेगी
फिर कोई बिटिया पिता - तुल्य वर संग व्याही जायेगी
धनाभाव की पाप - भूमि भी 'प्रेमाश्रम' कहलाएगी
दिन वह दूर नही जब बिटिया वर चुनकर घर आएगी
गूंजेगी शहनाई द्वारे , 'प्रतिज्ञा' माँ - बाप की रह जायेगी
स्वप्न अधूरे रह जाएंगे सब खाने भर को तरसेंगे
सूखी रह जायेगी फसलें तब पानी भी ना बरसेंगे
चूड़ी कंगन की बात कहे क्या लत्ता न मिलेगा तन ढकने को
'गोदान' कहेगा लाखो आज की रहने दो कुछ कल के रखने को
यह बेबसी लाचारी सारी हम पर ही क्यों आती है
कुत्ते से भी बदतर भोजन 'बूढी काकी' खाती है
शहराती बच्चे को देखो क्या क्या न खाते पाते हैं
गाँव के बच्चो की ख्वाहिश 'ईदगाह' में मारी जाती है
सोचने से है क्या होता क्या क्या न सोचा जाता है
अब तो 'पंचपरमेश्वर' भी देखो न्याय बेचने आता है
'ठाकुर का कुंवा ' अब भी तो उस औरत को धमकाता है
बगल खड़ा 'नमक का दरोगा' देख देख मुस्कुराता है
गर्मी है हम सो जाते हैं नींद पसीने में भी आती है
है जागते रहते सिकुड़ ठण्ड से 'पूस की रात ' कंपाती है
'सवा सेर गेंहूँ ' लेकर हम गरीबन का 'उद्धार' करो
अन्यथा हम सब हैं मर रहे 'कफ़न' एक तैयार करो
हमारा तुम्हारा 'प्रेम' अमर 'दो बैलों की जोड़ी' होगी
साथ रहेंगे जनम जनम फिर भी तो वह थोड़ी होगी
और नही कुछ कहना बंधू नीर - नयन भर आएगी
ख्वाहिश 'मंगलसूत्र' की कितनी और अधूरी रह जाएगी।।
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