Saturday 12 November 2016

देखते आए हो देखते चले जाओगे


हाँ, तो सजीवन जी
वह तुम ही थे न
जो अभी-अभी कुछ समय पहले 
लम्बी कतार में खड़े थे मुंह ओरमाए 
बैंक के सामने पैसे बदलने के लिए
निहायत ही लाचार और विवश होकर

वह तुम्हीं थे न, जो 
कुछ समय पहले कोश रहे थे
सरकार की कारगुजारियों को
और साथ ही अपनी किस्मत को भी
उस ईश्वर को भी जो तुम्हें नहीं जानता
लेकिन तुम जानते थे बचपन से जिसे

सजीवन भाई! याद है
कल के दिन भी तुम्हें देखा था मैनें
झंडा उठाए, भागते, हांफते बीच सड़क पर
चिल्लाते, जो हुआ अच्छा हुआ, सब बाहर आ गया
लूट कर रखा था जो, आज से नहीं वर्षों से,
वह तुम ही थे सजीवन भाई जो कह रहे थे
अब मजा आएगा, जो होगा देखा जाएगा   

ए भाई! सजीवन भाई!
सदियों से देखते आए हो
तब से अब तक क्या कर लिए? हाँ? बताओ?
और आज भी क्या कर लोगे? देखते आए हो
देखते चले जाओगे, फिर आएगा कोई सजीवन 
ठीक तुम्हारी तरह, कुछ करने के लिए नहीं
झंडा उठाने के लिए, चीखने के लिए, चिल्लाने के लिए

तो सजीवन भाई
अभी मुश्किल से तो चाय तुम्हें
नशीब हुई है, क्योंकि जहाँ तुम चाय पी रहे हो
वह दुकानदार तुमको जानता था
खाना मिला कि नहीं यह तो नहीं जानता लेकिन
यह जानता हूँ कि परिवार तुम्हारा अब भी
इंतज़ार कर रहा है आटा और चावल का
जब तुम जाओगे तो बच्चे मुस्कुराएँगे,
थोड़ा राहत की सांस लेगी धरम पत्नी तुम्हारी

लेकिन यह क्या सजीवन भाई
जो मैं देख रहा हूँ, तुम्हारे थके हारे शरीर के तंतुओं में
एकाएक जाग उठा है राष्ट्रवाद तुम्हारा
तुम गाली देने लगे हो एक ही सुर में नेहरू, गांधी, इन्दिरा को
यह कहने लगे हो एकाएक कि बचा लिया डूबते देश को मोदी ने
उनका क्या है? वे जहाँ थे वहीं हैं बल्कि और भी मजबूत हुए हैं
जो चले गए वो आने से रहे और जो हैं वो जाने से रहे

लेकिन सजीवन भाई यह मैं देख रहा हूँ
तुम स्वयं को भूल गए, जहाँ से चले थे वहीँ झूल गए  
कुछ दिन और रहोगे; खाद, पानी, बिसार देते रहोगे नेताओं को
उसके बाद वही तुम्हारे भूखे बच्चे तुम्हारी ही जगह कतार में होंगे
उनके बीबी बच्चे खाने के इंतज़ार में मर रहे होंगे और वह तुम्हारी तरह
उधार के चाय की चुस्की लेते हुए कोश रहा होगा सरकार को, व्यवस्था को
 शांत होगी क्या तुम्हारी आत्मा? जैसे आज भटक रही है तुम्हारे पूर्वजों की आत्मा

तुम्हारे ऊपर, वैसे तुम्हारी भटकेगी उनके ऊपर, तब बताओ सजीवन भाई......?  

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