Saturday 18 February 2017

बोल जगत-जन शापित जीवन

बोल जगत-जन शापित जीवन
उदास आज क्यों  है  तू  भला
छोड़ धरा-धन-धाम  यहाँ का
और कहाँ किस प्रान्त चला ||

धरा को बोला था मन-मंदिर
जग-जीवन  जगती का  मूल
प्रीति-प्रेम से रहना था हमको
संग-साथ  सब  दुर्गति   भूल

था  हमने  भी  सोचा  ऐसा
रहेंगे,  है  तू  कहता  जैसा  
देख-देख  हम  बढ़े  थे  आगे
क्योंकर हुआ तू मौन चला

मन-मन्दिर से ऐसी अनबन
जग-जीवन से ऐसी उलझन
प्रीति-प्रेम से तोड़ मोह अब
लोक-रीति से ऐसी अनशन

समझ नहीं आता है अब तक
तू ही  था  कहता, स्वर्ग यहाँ
मोह-भंग क्यों आज हुआ अब
और कहाँ किस प्रान्त चला ||

संघर्ष किए थे इतने दिन तक
जिए नहीं थे जितने दिन तक
हँसे  थे  हमको  देख  देख  सब
झेल लिए  थे  कितने दिन तक

कैसी अति से पीड़ित अब तू
जो कुछ ऐसा है भाव धरा
जन-जीवन के छोड़ साथ सब
और कहाँ किस प्रान्त चला |



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