Monday 20 January 2020

पुस्तक मेला : 1


कुछ लोग कहते हैं कविता की किताबें बिकती नहीं| मैं भी मानता था| अब भी मानता हूँ कि यदि गुट और गुटबाजी से दूर हैं तो कविता की पुस्तकें मुश्किल होती हैं बिकना| लेकिन सच ऐसा ही नहीं है|
पुस्तक मेले में बोधि प्रकाशन के स्टाल पर खड़ा था मैं| माया मृग जी से बात करते हुए| कवि-कविता और उनके प्रयासों पर मेरा ध्यान बराबर था| वे भी कुछ बता रहे थे मैं गंभीरता से सुन रहा था|
तभी एक युवती आई| थोड़ी जल्दी में थी| लेकिन जब स्टाल पर वह पहुंची तो बड़े आराम से कहा “भेड़ियों ने कहा शुभरात्रि’ और मैं उसकी तरफ देखने लगा| भाई भेड़ियों ने शुभरात्री क्यों कहा? बाद में पता चला यह कविता संग्रह है|
मैनें उस युवती से पूछा ‘आप कविताएँ पसंद करती हैं?’ उसका जवाब था “बिलकुल सर! यदि कविताएँ हों तो” मैनें कहा “इस कवि को कैसे जानती हैं आप” वह बोली “जी कवि को नहीं संग्रह और कविताओं को|” मैं अवाक् था और उसे देख रहा था|
किताब सामने आई तो पता चला यह संग्रह मणि मोहन मेहता जी का है| राजवंती मान मैम उस समय मेरे साथ थीं| उन्हें भी यह वाकया अच्छा लगा और कहा भी कि “मणि जी कविताएँ अच्छी लिखते हैं| छोटी-छोटी कविताएँ|” मैनें कहा “बिलकुल मैम छोटी लेकिन गंभीर|” मैं भी लेना चाहता था पुस्तक लेकिन अंतिम समय तक दुबारा नहीं जाना हो पाया उधर| अब फिर से आर्डर करूंगा बोधि प्रकाशन से|
हम सब बाद में भी बातें करते रहे| संकट कविता पर नहीं है यदि कवि ईमानदारी से लिख रहा है तो| फ़िलहाल इस वाकये ने दूर तक सोचने के लिए प्रेरित किया| मैं सोचता रहा और आज भी सोच रहा हूँ| प्रकाशक क्यों नहीं प्रकाशित करते कविताएँ जबकि कविता प्रेमी ऐसे ही उसे ढूंढ रहे हैं| आप भी शायद ऐसा ही सोचते होंगे|

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