Tuesday 5 August 2014

कहा खोए है जनाब

 कहा खोए है जनाब 
देखिए ज़रा इधर 
कितने मासूम है बेताब 
क्या जानते है आप 

आपको अपने नौकरी की पड़ी है 
कुछ भी किए जा रहे है 
इसारे पर किसी के 
मर रही है जनता 
जो देख रहे है आप ही 
किसी और  लिए नही 
महज दो रोटी के लिए खड़ी है 

सो रहे है आराम से आप 
गर्मी है न ठंडी है 
भूख तो लगती नही 
मेवा पकवान की मंडी है 
 नींद भी कहाँ होगी 
नाच रही जो रंडी है 

यहां देखिए आइए 
हो गई बारिस आज शाम 
चूल्हा नही जला 
गरम न हुआ तवा 
भीग गई जो कंडी है 

रो रहे है बच्चे 
लाचार  है  माँ 
ममता नही उसके आँचल में 
हाथ 
में डंडी है 

कपड़े नही है उनके 
बीमार है बाप 
व्याह किया बिटिया का अगले साल 
दादा यहां पड़े हैं खाट पर 

आइए देखिए जनाब 
यहां देखिए 
माना की देखने लायक चीज नही कोई यहां 
मुसीबत है समस्या है 
लाचारी है बेगारी है 
चारो तरफ खस्ताहाल जिंदगी 
खुद के लिए मौत दूसरो के लिए बंदगी 
न अकल है न शकल है 
गरीबो की कुटिया में 
फैसन का दखल है 

चलने के लिए सड़क नही 
एक अदद सी पगडंडी है 
सच्चे अर्थो में सजी साहब 
अभावों की मंडी है। 

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