Thursday 17 September 2015

सत्ता की आड़ में



यह कहना
कि विकास किया है हमने
निश्चिन्त रहें सब
चिंता करना है कर्त्तव्य हमारा
सुख-दुःख ,
स्थिति परिस्थिति में
देंगें साथ उनका
यह विश्वास दिया है हमने
यह कहना
कि अपना कर दर्द दूसरों का
झेलकर पीड़ा
किया है उद्धार दूसरों का
नियति है हमारी
वेदनाओं से होकर गुजरना
वे रहें सुखी इसलिए
सुख अपना उधर दिया है हमने
यह कहना
कि सोचते हैं लोग
गलत हूँ मै
सोचते रहना काम है उनका
चिंता नही मुझे
सोचने से लोगों को फुर्सत कहाँ
सोच, सोच ही बनी रहे उनकी
बढ़ा कर कदम अपनी गिरेबान तक उनके
जागरण के इस दौर में भी
जीवन-पथ को धार दिया है हमने
यह कहना
कि दयालुता भी चीज है कोई
बची और अभी इस धरती पर
निरंकुशता के हद तक जाकर
पशुविकता के मुहाने पर खड़ा होकर
सबकी नज़रों से लड़ते हुए
गिरते हुए सबकी नजरों में
लाँघ कर सीमा दानवता की
ह्रदय का विस्तार किया है हमने
सोचे लोगबाग
सार्थक हो सोचना उनका
निरर्थक न जाए
यह कहना
कि पाकर सत्ता आज
साथ मानव के मानवता से
अमानवीय व्यभिचार किया है हमने
ह्रदय काँप उठे उसका भी
दिया जिसने साहस सोचने का
आज ऐसा ,
आज ऐसा अत्याचार किया है हमने
अनिल पाण्डेय

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