Monday 10 April 2017

वह कहाँ है

तुम वहां हो खोए हुए अपने में
हम यहाँ हैं सोए हुए किसी अनबूझ सपने में
वह कहाँ है जो न तो खोया हुआ है
और न ही तो सोया हुआ है
हमारे तुम्हारे साथ शामिल था जो पिछले जुलूस में
नितांत हताश और परसान-सा चेहरा लिए

समय की नियति और उसकी नीयत से
यह तो जाहिर है वह अमीर नहीं था
और यदि होता तो क्यों आता नारा लगाने बेमतलब के
घर-बार अपना छोड़-छाड़ के बीच बाजार में बगैर खाए पिए
वह रहीस भी नहीं ही था हमारी तुम्हारी तरह  
बेशरम होकर छाती पीटने की अकल नहीं दिखाई दी थी उसमें
फटे पुराने कपड़े में नारे लगाने से एक बार बहुत ही ज्यादा सरमाया था वह

वह जो था अतीत में
वही होकर रहना चाहता था वर्तमान में
भविष्य से लापरवाह जरूर था वह हमारे तुम्हारे नज़रों में
वह आवारा, खुदगर्ज, कपटी और स्वार्थी बिलकुल भी नहीं था
जैसा कि हम तुम होते आए हैं आज से नहीं सदियों से
नहीं जनता था वह हमारी तुम्हारी तरह घड़ियाली आंसू बहाना
हंसने की चाहत रखता था और सिखाता था हमें भी मुस्कुराना    
हाँ, तुम कह सकते हो वह पालतू कुत्ता था
पुचकारते थे तो वह दौड़ा आता था किसी लालच में
गधा था, भैंसा था, भेड़ था, था और वह बहुत कुछ  
जो वह नहीं हो सकता था वह भी था अपने स्वभाव में
न होता तो हजारों कुत्तों, हजारों गधों, हजारों भेड़ों में घिरा होकर
भाग क्यों न लेता हमारी तुम्हारी तरह, हमारे तुम्हारे लिए उनसे मुठभेड़ क्यों करता
वह भूखे-प्यासे, रोते-गाते, सोते-जागते हमारी रक्षा के लिए क्यों रहता तत्पर  

उसका न होना ही होना है आज के लोगों को सच बताने के लिए
हमारा होना यथार्थ को झुठलाना है, बहाना है सच को छुपाने के लिए
तलाश तुम्हें भी है हमें भी है और उन्हें भी है जो उसके गुम से गुमनाम होने के साक्षी थे
यह बात और है कि हिम्मत नहीं है हमारे पास सच को सच की तरह दिखाने के लिए
अब हम ही नहीं दुनिया भी जानना चाहती है वह कहाँ गया, जो
न तो चिल्लाता था, न डकारता था, न हांफता था और न ही तो रोता था
खटता रहता था कि हम और तुम आराम से सो सकें अहक भर के || 

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