Friday 3 May 2019

राजनीतिक चालें सब समझा दे रही हैं

चलो मान लेते हैं कि जिन्ना सामाजिक थे| प्रगतिशील थे| कट्टरपंथियों से चिढ़ते थे कोसते थे उन्हें| जब यह सब कुछ थे तो अलग राष्ट्र निर्माण की नीति का समर्थन क्यों किये?? और बाद में उसी झंडे को उठाकर न सिर्फ नेतृत्व किये अपितु मुस्लिम सम्प्रदाय को लेकर ही पाकिस्तान के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाए??

सच तो ये है कि उन्हें हिन्दुस्तान से नहीं इस्लाम से प्रेम था| हिन्दू से नहीं मुसलमान से प्रेम था| यदि थोड़ी भी भारत और भारतीयता के प्रति प्रेम होता तो विभाजन की नौबत ही क्यों आती?? हिन्दू-मुस्लिम के दंगे तो अभी भी हो रहे हैं, होते रहते हैं| न महज हिन्दू दोषी करार दिए जा सकते हैं और न ही तो मात्र मुस्लिम| दोनों पक्ष की कमियों की वजह से ही ऐसा होना संभव होता है| लेकिन अलग तो नहीं हो रहे हैं| फिर भी एक हैं|


ये बात और है कि इस्लाम अल्पमत में है| जहाँ बहुमत में हैं वहाँ की स्थितियां किसी से छिपी नहीं है| अलीगढ मुस्लिम विवि में जिन्ना का फोटो लगना इसलिए नहीं जरूरी है कि वह संस्थापक सदस्यों में से एक था इसलिए ज्यादा जरूरी है कि वह इस्लाम के संरक्षकों में प्रमुख था| उसने एक अलग मुस्लिम राष्ट्र का निर्माण किया| अभी और भी इस्लामी राष्ट्र भारत से पैदा करने होंगे शायद इसलिए भी इनकी तस्वीरों को सुरक्षित रख कर पूजा जा रहा है?? यह भी एक सच्चाई है कि देश में अभी और भी जिन्ना हैं जो जिन्न बनकर डँसेगे|

कुछ बुद्धिजीवियों का ये भी मानना है कि राजनीतिक नेतृत्व में मुस्लिम लीग के हार के कारण जिन्ना को अपना राजनीतिक भविष्य खतरे में नजर आया इसलिए वे पाकिस्तान की मांग पर उतर आए| हो सकता है| फिर तो आज 20 के लगभग राज्यों में भाजपा की सरकार है तो क्या राहुल गांधी मुस्लिम समुदाय के सहारे किसी दूसरे पाकिस्तान की परिकल्पना करने में सफल हो सकेंगे? क्या वामपंथ, सपा, बसपा और जितनी भी पार्टियाँ अल्पमत में हैं और सांस ले रही हैं किसी दूसरे राष्ट्र की मांग रखेंगे??

कुछ भी हो सकता है| सही अर्थों में यही हिन्दुस्तान है| वैचारिकता की मोह और राजनीतिक सत्ता की लोलुपता व्यक्ति को कितना नीचे गिरा सकती है, वर्तमान समय की राजनीतिक चालें सब समझा दे रहीं हैं|

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