Saturday 23 November 2019

जे एन यू में चल रहा विवाद फीस से अधिक वैचारिक लड़ाई का विवाद है


जे एन यू में चल रहा विवाद दरअसल फीस से अधिक वैचारिक लड़ाई का विवाद है| यहाँ की फीस वृद्धि में लेखकों से लेकर सामाजिकों तक का जो शोर-शराबा मचाया जा रहा है वह अर्थ से कहीं अधिक गुट से सम्बद्ध है| यदि शिक्षा में हो रही फीस वृद्धि से इतने ही आहत हैं लोग तो वह फीस वृद्धि क्यों नहीं दिखाई देती है जो आए दिन प्राइवेट संस्थानों में उगाही जा रही है? यह पूछने का अधिकार उन सभी को है जो प्राइवेट शिक्षण-संस्थानों की कमाई का माध्यम बने हुए हैं|

यह तर्क हमारे समझदार पत्रकारों और साहित्यकारों द्वारा दिया जा रहा है कि जेएनयू में गरीब बच्चे पढ़ रहे हैं| वे बच्चे पढ़ रहे हैं जिनके परिवार की वार्षिक आय गरीबी रेखा से नीचे है| अब इनसे यह कोई क्यों नहीं पूछता है कि भाई गरीब क्या मात्र जेएनयू में ही हैं? क्या बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में गरीब छात्र नहीं हैं? क्या इलाहबाद विश्वविद्यालय में पढ़ रहे छात्र अमीर घरानों से ही आते हैं?

पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से लकर गुरुनानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर और अन्य महाविद्यालयों में पढने वाले छात्र क्या अमीर और कुलीन घरानों से ही आते हैं क्या? यहाँ हर वर्ष फीस बढ़ती है| हास्टल से लेकर अकादमिक फीस तक चुपके से बढ़ा दी जाती है लेकिन न तो मीडिया जगती है और न ही तो हमारे बौद्धिक ठेकेदार| न आन्दोलन होता है और न ही तो संसद का घेराव होता है| होता है तो मौन जहाँ बोलना कोई उचित नहीं समझता| 

फीस बढ़ाना किसी भी तरह हितकर नहीं है| लेकिन यह आपत्ति मात्र जेएनयू के लिए न होकर सम्पूर्ण देश की शिक्षा व्यवस्था के लिए हो| जो खीझ और बदलाव की जो आकांक्षा आज जेएनयू के सन्दर्भ में है वही अन्य विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों के लिए क्यों नहीं है? यदि ऐसा हो तो निश्चित ही जन-शिक्षा सुलभ हो| योग्यता का सृजन हो और कुशल शिक्षा में विस्तार आए| ऐसा नहीं हो रहा है| हो सिर्फ यह रहा है कि किला सुरक्षित रहे किसी तरह|  

शिक्षा सबका मौलिक अधिकार है| शिक्षा को यथार्थतः फ्री ही होना चाहिए| लेकिन इसके लिए भी विधिवत नियम बने| यह निर्धारित हो कि कितने वर्ष तक छात्र एक कोर्स और विश्वविद्यालय कैम्पस में रहने योग्य हों| यह स्पष्ट हो कि एक उम्र की सीमा के बाद विद्यार्थी विश्वविद्यालय से अलग मान लिया जाएगा| यदि ऐसा हो तो शिक्षा जनसामान्य तक आसानी से पहुंचे| जबकि ऐसा नहीं हो रहा है|

विश्वविद्यालय के साथ-साथ स्कूलों की तरफ भी ध्यान देने की जरूरत है| स्कूलों से निकलने के बाद ही जे एन यू जैसे संस्थान में पहुँच पाना सम्भव है| बच्चों के सपनों को उनकी आशाओं और आकांक्षाओं को सही तो यह है कि पहले ही तोड़ दिया जाता है| अमीर घरों के लोग बड़े स्कूलों में मोटी फीस देकर पढ़ रहे होते हैं और बाद में सेलेक्शन भी उन्हीं का होता है प्रवेश परीक्षाओं में| जिसकी प्राथमिक शिक्षा सही नहीं होगी निश्चित ही उच्च शिक्षा अच्छी नहीं होगी उसकी| 

हम जमीन को भूलकर आसमान पर रहने का ख्वाब देखते हैं यही हमारी कमजोरी है और यही हमारे लिए अभिशाप है| हमें इससे उबरना होगा| सम्पूर्ण देश की शिक्षा-व्यवस्था को फ्री करने की मांग पर अडिग होना होगा| वर्तमान सरकार ऐसा करे तो निश्चित ही बड़ी बात होगी और यदि हम सभी ऐसा करने के लिए सरकार से आग्रह करें तो और बड़ी बात होगी| 

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