Sunday 22 March 2020

कोरोना-समय में कविता

1.

आप धार्मिक हैं
तो निकलिए अपने समुदायों के साथ
आप नेता हैं
तो निकालिए अपने समर्थकों के साथ
आप सेलिब्रिटी हैं
तो निकलिए अपने फालोवर्स के साथ
आप आदमी हैं
तो लोगों से दूरी बनाइये
आप इंसान हैं
तो लोगों को स्वयं से दूर रहने दीजिए
आप यदि मनुष्य हैं
मनुष्यों को जीने लायक वातावरण दें
ईश्वर को नहीं फुर्सत
इधर वह आ सकें
नेता काम नहीं देंगे
घर उनका अभी नहीं भरा है
अभिनेत्रियाँ नहीं होंगी स्वप्नों की मालकिन
अभी बहुत घरों को उजाड़ने हैं उन्हें
आप हैं किसी के आस
किसी के विश्वास हैं आप
आप रहेंगे
परिवार बचा रहेगा
बचा रहेगा परिवेश पूरा
आप के बचे रहने से

2.

खुद देखो
गर शौक है देखने का
कोई कहे कि पता है उसे हर रास्ता
विश्वास न करो
चलो तो आँखें खोल कर चलो
देर से ही सही पहुंचोगे वहां तक
जहाँ के लिए निकले हो
यह समय
तमाम परेशानियों का समय है
दूर खड़ा कोई आकर्षित कर रहा है
उसके चक्कर में न पड़कर
सोचो बीबी तुम्हारी इन्तजार में है
बच्चे रो रहे हैं दूध के लिए
बहुत दिन हो गये हैं मिले जिसे
याद लगातार कर रहे हैं रिश्तेदार
किसी के लोभ में पड़ने से पहले सोचो
घर का दरवाजा बंद हो सकता है
बूढी माँ बीमार है
वह मर सकती है
नौकर लूट कर ले जा सकता है घर
मर सकते हैं जानवर भूखे
तुम्हारे लगातार व्यस्त पार्टियों से लौटने के इन्तजार में
न सोचो तो यह सब फ़ालतू बात है
सोचो तो नेताओं के जुलूस में शामिल होना
है मूर्खता, अभिनेत्रियों के आमंत्रण में बिछ जाना
न नेता काम आएँगे
न अभिनेत्रियाँ पूछेंगी तुम्हें कभी
जिस समय मर रहे होगे किसी विवशता में
काम परिवार ही आएगा
सोचना है
खुद सोचो एक पल ही सही
कोई नहीं कहेगा
दरअसल कोई खुद नहीं सोच रहा है
यह समय सोचने का नहीं है
कर सको तो करो स्वयं कुछ
दूसरों को भी करने दो

3.

1.
निडर था मनुष्य
शैतान का भय हुआ
सुरक्षा की तलाश में
ईश्वर को खोज लिया
भरा-पूरा बाज़ार निर्मित हुआ
देखते रह गये सभी
2.
स्वतंत्र था मनुष्य
निर्द्वन्द अकेला जग-जीवन में
निर्मित किया रिश्ते
रिश्तों ने बनाए नियम
नियमों ने लगाईं पाबंदियाँ
पाबंदियों ने बनाए गुलाम
देखते रह गये सभी
3.
चालाक था मनुष्य
कहीं भी जाता था रह लेता था
करना क्या है क्या नहीं
खुद निर्धारित करता था
खुद बनाए सरकार
निर्णय का अधिकार दिया दूसरों को
दूसरों ने बताया अनपढ़ गंवार
देखते रह गये सभी
4.
देखते रह गये सभी
कैसे निडरता से भयभीत हुए
स्वतंत्र से गुलाम हुए
समझदार से अनपढ़ गँवार बने
बनते जा रहे हैं क्या से क्या
अभी क्या क्या बनना है
पूरी जागरूकता के साथ यह भी देखेंगे सभी

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