Saturday 28 March 2020

कोरोना समय और अरविन्द केजरीवाल गन्दी राजनीति

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कल न्यूज चैनल पर केजरीवाल को सुना तो बहुत ख़ुशी हुई थी| विश्वास हुआ था कि नेता ऐसा ही होना चाहिए| आज उस भाउकता का कोई मायने नहीं रह गया| यह भी विश्वास हो गया कि यह व्यक्ति बिलकुल भी भरोसे लायक नहीं है| पूरी जनता को सम्बोधित करते हुए इन्होने कहा कि उत्तर प्रदेश और बिहार की जनता को कहीं भी जाने की ज़रूरत नहीं है| हर सम्भव कोशिश की जा रही है| हर मदद दी जायेगी|
रात से ही भीड़ कहाँ से उपजी? कहाँ से यह संकट उभर कर सामने आया? इतनी भीड़ कैसे हुई? ये यू पी और बिहार वालों से धोखाधड़ी किया गया कि नहीं? इसका जवाब केजरीवाल से लिया जाना चाहिए| यह व्यक्ति इतना गैर जिम्मेदार कैसे हो सकता है? इसके राज्य में रहने वाली जनता के प्रति सबसे पहले जवाबदेही तो इन्हीं महाशय की बनती है न? इन्होने नहीं निभाया कुछ भी| निभा भी नहीं सकते|

एक महाशय कह रहे थे कि बसों का बन्दोबस्त दिल्ली नहीं कर सकती क्योंकि वहां अधिकांश बसें सीएनजी की चलती हैं| हो सकता है लेकिन जनता को तो रोक सकते थे न दो-चार दिन? ऐसा क्यों नहीं हुआ यह भी तो साहब से पूछा जा सकता है?
1000 बसों की व्यवस्था योगी द्वारा की गयी तो इसके लिए उनको सही कहा जाना चाहिए| लेकिन राह अभी आसान नहीं है| इन षड्यंत्रकारियों से देश को सुरक्षित रखना है तो लगातार सक्रियता दिखानी होगी| यह सक्रियता ही गरीब मजदूरों की जिन्दगी बचा सकती है, बाकि तो सब सो ही रहे हैं|
यह जनता भी इतनी भोली कैसे हो गयी? इनको ऐसे नहीं छोड़ना चाहिए दिल्ली| धरना देना चाहिए अपने स्वास्थय और अपनी देखभाल के लिए| केजरी के सीने पर दाल दरना चाहिए, अक्ल उनको तब आती| हर समस्या में पलायन इस तरह ठीक नहीं है. नहीं होता| कभी नहीं होता|
ऐसे भागते रहे तो तुम हर जगह से भगाए जाओगे| मारे जाओगे गरियाये जाओगे| इन सरकारों से हिसाब मांगो| मरना ही है तो अच्छे से मरो| भाग-भागकर कितने दिन मरोगे?
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दिल्ली सही उन तमाम प्रदेशों के सरकार यदि चाहें तो विस्थापन और पलायन की समस्या से इस कोरोना समय को मुक्ति मिल सकती है| जनता कह रही है कि मकान मालिक उनसे मकान खाली करवा लिए| फैक्ट्री वाले फैक्ट्री से निकल दिये| ऐसे में क्या सरकारों का ये दायित्व नहीं बनता कि उन मकान मालिकों और फैक्ट्री मालिकों से कुछ पूछ सकें? यदि वे पूछ लें और कुछ दिन उन्हें पनाह मिल जाए तो दिक्कत क्या है?
फिर कोई मकान मालिक महज 8-10 दिन रुकने भर से कैसे खाली करवा सकता है, जब पहले से किराया पाता रहा है? यदि पहले से भी नहीं पाया है तो क्यों नहीं दस-बारह दिन रहने देता? खाने की समस्या तो नहीं थी क्योंकि कजरी साहब चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे थे| सभी हमारे भाई बहन हैं सभी की है दिल्ली| ओह्ह भारत तेरा दुर्भाग्य है.....इस कठिन समय में भी राजनीती की गोटियाँ बिछाई जा रही हैं|

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दिल्ली से कम दिहाड़ीदार पंजाब में नहीं हैं| यहाँ भी लाकडाउन है| यहाँ भी कर्फ्यू है| दिल्ली से सस्ता भी नहीं है यहाँ का रहन सहन| एकदम क्रूर औद्योगिक नगर है यह| महानगर की सारी विद्रूपताएँ हैं यहाँ पर बावजूद इन सभी के एक भी मजदूर पैदल निकलने की कोशिश किया| सरकार ने ऐसा नहीं करने दिया|
कांग्रेस की सरकार है| कैप्टन अमरिंदर साहब मुख्यमंत्री हैं| वह भी चाहते तो जनता को भीड़ बना सकते थे| वे भी चाहते तो मजबूर कर सकते थे| यहाँ भी खुरापाती मनसिकता की कमी नहीं है| लेकिन ऐसा उन्होंने नहीं किया| नहीं करने दिया किसी को| आइये देखिये कोई समझदार| विश्लेषण करिए यहाँ का भी| नेता ऐसा ही होना चाहिए| नियम ही तो है| मजबूरी है तो है निपटना कैसे है यह यहाँ से भी सीखा जा सकता है|
दिल्ली के शासक ने ऐसा नहीं किया| उसे मनुष्य से प्रेम नहीं है| वह यह जता दिया कि हर चीज को फायदे-नुक्सान की दृष्टि से ही देखना है| जनता परेशान है| देश दाँव पर है| उससे क्या फर्क पड़ता है? वह थोड़ी न मर रहे हैं और न ही तो उनके कारिंदे मर रहे हैं| आम आदमी ही तो मर रहा है| मरने दीजिए| वैसे भी मरते रहते हैं| क्या फर्क पडता है|

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