Wednesday, 14 August 2024

कविता के रंग स्वतंत्रता के संग


लवली प्रोफेशनल विश्वविद्यालय के प्रांगण में चाय पर चर्चा का यह दूसरा आयोजन था इस सत्र में| यह कार्यक्रम विद्यार्थियों और शोधार्थियों की उपस्थिति में विशेष रहा| अच्छा लगा कि स्वतंत्रता से सम्बन्धित मुद्दों पर विमर्श किया गया| कविताएँ सुनाई गईं और समय और समाज की परख में दिमाग को लगाया गया| यह एक तरह से जरूरी भी था| वैचारिक विमर्शों के केंद्र में विद्यार्थी और शोधार्थी सीधे हस्तक्षेप करें इससे सुखद और भला क्या हो सकता है?


कार्यक्रम की शुरुआत आकांक्षा द्वारा प्रस्तुत की गयी कविता से हुई| शोधार्थी तान्या ने अपनी अभिव्यक्ति में आज़ादी के गायब होने और सामाजिक असमानता के साथ-साथ स्त्री से जुड़े मुद्दे को शामिल किया| उनकी दृष्टि में कि जब तक हर किसी को सुरक्षा और संरक्षा न प्राप्त हो तब तक हम कैसे भला स्वतंत्र रह सकते हैं?

शोधार्थी बरबरीक ने स्वतंत्रता के मॉडल पर अपनी चिंता व्यक्त की| उनकी दृष्टि में जहाँ सरकारी कॉलेज और विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर कोई श्रम नहीं करते, महज चिंतन में ही समय जाया करते हैं वहीं प्राइवेट संस्थानों में किसी प्रकार के संगठन-निर्माण पर रोक होती है| वह मानते हैं कि हमें विचार-चर्चा के लिए यदि उपयुक्त माहौल दिया जाए तो स्वतंत्रता का दायरा विकसित कर सकते हैं|


शोधार्थी रुपिंदर कौर का कहना था कि हर कोई अपनी तरह की स्वतंत्रता चाहता है| कोई कुछ होना चाहता है तो कोई कुछ होना चाहता है| सुविधाएँ सभी चाहते हैं लेकिन जोख़िम उठाना कोई नहीं चाहता है| रुपिंदर का यह भी कहना था कि यदि आप खुद को स्वतंत्र रखना चाहते हैं तो दूसरों की स्वतंत्रता का ख्याल आपको रखना होगा|

चरणजीत कौर के विचार भी कुछ इसी तरह के थे| शोधार्थी सपना ने हरियाणवी में अपनी कविता सुनाई| इसके पहले बरबरीक ने भी मनमोहन की कविता का वचन किया| सभी शोधार्थी एवं विद्यार्थियों ने अपने विचार व्यक्त किये|

कार्यक्रम के उपरान्त हिन्दी-विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. अनिल कुमार पाण्डेय ने भी अपने विचार को सांझा करते हुए सलाह के रूप में कहा कि आप सभी अपने दरवाजे और खिड़कियाँ पूरी तरह से खुला रखें| स्वच्छ हवा और स्वस्थ विचार कहीं से भी आएं उन्हें आने दिया जाए| निःसंदेह स्वस्थ परिवेश  का निर्माण होगा यहाँ| जीवन-शैली में परिवर्तन भी यहीं से होगा| यहीं से हमारे स्वप्न और ख्वाब यथार्थ होंगे और यहीं से सबको लगेगा कि वह स्वतंत्र हैं|


कार्यक्रम इस तरह सकारात्मक रहा कि चर्चा-परिचर्चा में कब समय बीत गया, पता नहीं चला| भविष्य में चाय पर चर्चा के और अधिक अवसर सुलभ हों इस हेतु सभी ने एकमत से अपना-अपना सुझाव भी दिया| यह सुनिश्चित किया गया कि इस कार्यक्रम में किसी तरह की कोई औपचारिकता नहीं निभाई जाएगी| सभी बोलें और सभी सर्जना कार्य में संलग्न हों यही उद्देश्य रहेगा| निःसंदेह स्वतंत्रता दिवस के पूर्व यह अपनी तरह का एक विशेष आयोजन था| सभी के प्रति सादर आभार|  

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