मनुष्य का जीवन जितनी अनिश्चितताओं से भरा पड़ा है शायद ही किसी अन्य प्राणी का होगा| हर कदम नया और हर राह अनजाना| जिस क्षण और स्थिति से जुड़ाव है वह भी और जिससे उसका कोई सम्बन्ध तक नहीं है, वह भी उसे प्रभावित करते हैं| वह कभी उनका स्वागत करता है तो कभी उनसे विद्रोह| दुःख दोनों स्थितियों में उसको होता है|
सुख की एक छोटी-सी अभिलाषा में दुःख का विशाल पहाड़ अपने ऊपर वह लाद लेता है| गिरते-पड़ते-सम्भलते वह पहुँचता तो है लेकिन तब तक बहुत कुछ छूट चुका होता है| बहुत कुछ गायब हो चुका होता है| छूटे और गायब होने का मोह उसे छोड़ता नहीं और जो नया मिलता है उसे वह चाहता नहीं| टूटन यहाँ भी है| एक को अपनाने में तो दूसरे को त्यागने में|
मैत्री एक कठिन परीक्षा है तो भयानक भूल भी है| सम्बन्धों
में जितनी प्रगाढ़ता है अलगाव भी उतना ही है|
संसार का सब सुख इसके आगे
फीका लगता है तो दुःख का कोई हिस्सा इससे बड़ा भी नहीं है| उपस्थिति
में सब कुछ सुन्दर और अनुपस्थिति में सब कुछ असुन्दर| सूरदास
का ये पद न जाने क्यों याद आ रहा है "तब ये लता लगति अति सीतल, अब
भई विषम ज्वाल की पुंजैं॥"
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