Sunday 25 May 2014

छह कविताएं , एक गद्य कविता

गुरुवार, 10 अप्रैल 2008 

चिंता

ऐ मेरी चिंता तूं कितनी भोली है रे! भोली है कितनी कि हर समय साथ रहा करती है । दुःख हो या विपदा, गम हो या निराशा, प्रतिदिन प्रतिक्षण यहाँ तक कि नीरवता में भी साथ दिया करती है तूं ! क्या मिलता है तुझको मेरे इस साथ में ? प्रसंसा के दो शब्द का भी तो हकदार नहीं तूं , तूं , जो करती है मजबूर सोंचनें के लिए , करती है उत्प्रेरित पानें के लिए , तूं बनाती है कमजोर बहानें के लिए आंसू किसी के मिलन या बिछुड़न पर । फ़िर भी इस हमारे सच्चे हृदय की न बन पाई वफादार है तूं । फ़िर तेरे इस भोलेपन का क्या वजूद? तुझे तो हो जाना चाहिए एकदम कठोर । पर फ़िर भी अभी तक तूं कितना भोली है रे ! ऐ मेरी चिंता तूं कितनी भोली है रे ........ ।

यादों का टूटा तारा हूँ

यादों का टूटा तारा हूँ
रहता हूँ यादों में बिछड़कर
चाहता हूँ निकलना भी, पर
जाऊं कहाँ यादों से हटकर
छूट जाते हैं जब हम सभी से
रूठ जाते हैं जब सब हमी से
हो जाता है अँधेरा
ना कहीं कोई साथी दिखता
ना कहीं कोई सवेरा
तब दूर देश से आती एक रोशनी
सब कुछ कहते सुनते हैं
रोशनी को अपना समझकर
यादों का टूटा तारा हूँ
रहता हूँ यादों में बिछड़कर ........ ।

भाग्य का बिछौना

कहते थे लोग जिनको
खिलौना खिलौना
हाथों का खिलौना
आना जाना काम था जिनका
किसी के पास सिर्फ़ मनोरंजन के लिए
वह आज बन गयी है
सबके जीवन की लकीर
जो मलिका बन गयी है
सबकी जरूरत का
पर
अपनी जरूरत
सुख समृद्धि का फकीर
उसको नहीं था आता
कभी किसी के साथ
रोना धोना
जिसको पता होता था सिर्फ़
अपनें सुख पर गाना
लेकिन आज पड़ता है उसको
सबके सुख- दुःख-गम में
अपनें नयन-नीर बहाना
अब उसे नही कहता कोई
खिलौना खिलौना
सब दोहाई देते फिरते हैं अब
बिछौना बिछौना
भाग्य का बिछौना
सिर्फ़ बिछौना बिछौना
भाग्य का बिछौना ............ ।

गुरुवार, 27 मार्च 2008

असर उसके साथ का

जब से वो मेरे दुनिया में आयी
सूर्य चन्दा से लगनें लगा है
उजड़ी थी जो कभी मेरी महेफिल
आज तारों सा सजानें लगा है

रोते थे हम कभी यूँ अकेले
अपनें दुखादों का दमन पकडके
आज रहती है साथ वो मेरे
दोस्ती की कसम एक ले के

दी कसम हमको भी दोस्ती की
आज उसको दिल ढोनें लगा है ।

मिलती वो मुझको सपनों में हंसकर
यूँ हकीकत में फूलों से खिलकर
करता हूँ याद उसको मैं हरपल
लाख मुशिबतों से भी घिरकर

मेरी भी याद रखती वो होगी
तह- ऐ - दिल से ये लगनें लगा है ................. ।

कहानी सुहानी

मैनें तो सोंचा था शायेद
कुछ सुनोंगे मेरी भी बातें
होता कैसे दिन गलियों मी मेरे
वितती हैं कैसे ये रातें
किस तरंह से जीते हैं वासी यहाँ के
खाते हैं क्या वो पीते
कब कैसे बीत जाते हैं पल
किस किस के ताने बाने सुनते
मिलती कौन उन्हें सावन बूँद - सम
सताती समेटे गमांचल में अपनें
खिलती फूलों में कैसे कलियाँ काटों की
दिखने लगते हैं जब बेगानों से अपनें
है कहानी सुहानी दिलचस्प जुबानी यहाँ की
मिलो कभी फुरसत में तो बैठ सुनाएँ
बातें करेंगे अनिल (हवा) से गोधूली बेला में
तब दिखा करेंगे रंग जागरण में दहकते ................. ।

उड़ते मन के ख्यालों से

हे मन आश तूं केके लिए है
प्यार वफ़ा रिश्ते सब नाते बस थोड़े दिन के हैं
आज खुसी कल खिल खिल हँसना परसों गाना हाल
नरसों सुन कुछ गुस्सा होना अगले दिन दुःख के हैं
भूल जा चेहरा फ़िर से उनके जानें से ले सन्यास
तीखे वचन "अनिल" शरीर शालत अच्छे के मालिक के हैं .................. ।

मैं तो मातु चरण रज प्यासा
कब आएगी अमृत -रज उसकी कब देगा मन दिलासा
सोंचा था प्रतिपल साथ वो मेरे होगी शाश्यामल जीवन गाथा
उसकी ममता हर वो सुख देगी मन लहरेगा ध्वजा सा
अब तो मम ख्वाबें भी रूठे दामन पकडी निराशा
जीवन मैं सब सुख साधन हैं पर नहीं उसकी आशा ................ ।

बुधवार, 26 मार्च 2008

प्रियतम संदेश

ये हवा जाके उनसे कह देना

हम याद बराबर करते हैं

वो चाहे जितना दूर रहे

पर मेरे दिल में रहते हैं



याद हमारी उनको भी

दिन रात सताया करती है

सब जान के वो अनजान बने

दिल दर्द शिकायत सहते हैं



हम आज भी पहले जैसे हैं

जिस हाल में थे कुछ वैसे हैं

पर वो हंस कर कह देते है

हम कुछ कहनें से डरते हैं



कुछ ऐसा संदेसा भी कहेना

कुछ उनकी भी तुम सुन लेना

पर चुप रहेना बुत बनकर तूं

हम जैसे गुमसुम रहते हैं



अरविंद सो आनन दिखता है

फूलों की गली में घर उनका

कुछ और पता हम भूल गए

पर गुल की गुलशन में रहते हैं



ये हवा जाके उनसे कह देना

हम याद बराबर करते हैं

वो चाहे जितना दूर रहें

पर मेरे दिल में रहते हैं ............... ।
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