Wednesday, 12 July 2023

खुद रह जाऊं भूखे तो क्या हर्ज है

 बारिश में अक्सर लोग प्रेम कविताएँ

लिख लते हैं
याद कर लेते हैं स्मृतियों में
प्रेमियों या प्रेमिकाओं को
मुझे आज तक समझ नहीं आया
रोमांस का यह तौर-तरीका

घर में होते हुए अक्सर बाहर भीगते लोग
मेरी चिंता में होते हैं शामिल
जानवरों को घर में पहुंचाने की फ़िक्र में किसान
हृदय को टीसते हैं
कहीं कोई बिजली का अंश टूटकर गिर न जाए उनके ऊपर
सोचता हूँ तो सिहर जाता हूँ

ऑटो, रिक्शा, ई-रिक्शा, बस के चालक
व्यथित करते हैं
सवारी यदि नहीं मिली तो परिवार का खर्च
कैसे चलेगा
कैसे भरेंगे वह समूह से लिए गए कर्ज
हारी-बीमारी में जूझता परिवार
रोटी का बन्दोबस्त कैसे करेगा
सोचता हूँ तो मौन हो जाता हूँ

सिलेंडर जिनके घर है उन्हें मजा है
उनका क्या होता होगा
उपली या लकड़ी से जलता है चूल्हा जिनके यहाँ
कई बार आगे आया हुआ खाना
उन घरों पर पहुंचा देने का मन करता है

खुद रह जाऊं भूखे तो क्या हर्ज है
कम से कम बच्चे आग न जल पाने की वजह से मरेंगे तो नहीं

बारिश में पकौड़ी का जश्न मनाते लोगों को देखता हूँ
उन्हें भी देखता हूँ घर का एक हिस्सा पकड़ कर खड़े होते हैं जो
अन्य सदस्य सब कुछ तहस-नहस का यथार्थ लिए
उजाड़ के मंजर से डरे हुए होते हैं
जल का भराव या आँधी का ताण्डव याद आता है
सिहर जाता हूँ अन्दर तक
रोमांस के मौसम में सौंदर्य की यह कुरूपता कवियों को क्यों नहीं दिखती...
सोचता हूँ पकड कर पूछूँ
विध्वंश में जश्न की मूर्खता का हक़ दिया किसने

परिवेश में आज सब हो रहा है खो रहा है संवेदना मनुज
रो रही है कविता लेकिन कवि
हँस रहा है
जैसे बजा रहा हो कोई डीजे
घर किसी का जल रहा हो
डूब रहा है घर परिवार बिखर रहा है
कवि प्रेयसी की याद में ग़ज़ल लिख रहा है

पता नहीं कैसे लोग उठती लाश के सामने
ठठाकर हँस लेते हैं
कर लेते हैं डांस जोकरों की तरह कठिन दुःख के क्षण में भी
मेरी निगाह में मलबे के नीचे दबे मजदूर हैं
वे बच्चे हैं जो बाढ़ में फँसे पिता के कंधे पर बैठे
एक मात्र अंधे की लाठी हैं
वह औरत है जो दिहाड़ी पर गए पति का इंतज़ार कर रही होती है
कुछ आएगा तो बनेगा बच्चे खाएंगे

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