Wednesday, 12 July 2023

महानगर के रहवासियों कविता-वविता तुम्हारे वश में नहीं है

 पंजाब के अधिकांश हिंदी कवियों को देखता हूँ तो चिंता में पड़ जाता हूँ कि ये कविता लिख किसके लिए और क्यों रहे हैं? जवाब मुझे पता है कि वह नहीं देंगे लेकिन एक बार उन्हें स्वयं लोगों के सामने अपना उद्देश्य स्पष्ट कर देना चाहिए, ऐसा मुझे लगता है| कुछ हो या न हो कम से कम जो अपेक्षाएं और आशाएं थोड़ी-बहुत लोगों की हैं वह स्पष्ट हो जाएँगी न...?

यहाँ के अक्सर कवियों की चिंता में ऑटो वाले, रिक्शा वाले, मीलों-फैक्ट्रियों में काम करने वाले, सडकों और कल-कारखानों में मरने-खपने वाले, बस स्टापों, रेलवे स्टेशनों पर भटकने वाले नहीं होते| मल्टीनेशनल कंपनियों में जिनका हक़ मारा जा रहा है, जिन्हें बैलों की तरह दिन-रात खटाया जा रहा है ऐसे लोग भी उनकी चिंता में क्यों नहीं आ पा रहे हैं?
इधर कई दिन हुए जब इस तरह की कोई कविता मैं यहाँ के रचनाकारों की पढ़ पाया होऊँ और देखने को मिला हो...| प्रेम के कसीदे पढ़ने वाले बड़ी संख्या में हैं| बड़ी संख्या में हैं झूठी मूठी क्रांति करने वाले| संवेदना की बाढ़ लेकर चलने वाले कविगण आखिर इनकी समस्याओं को लेकर क्यों नहीं आ रहे हैं? उन्हें किनका डर है? जो
अपनी उम्र जी चुके हैं वह तो सुरक्षित जोन में चले ही गए हैं जिनको जीना है अभी आखिर वह किसकी शहादत का इंतज़ार कर रहे हैं?
महानगर के रहवासियों कविता-वविता तुम्हारे वश में नहीं है शायद...है तो महसूस क्यों नहीं करते बाढ़ में फंसे हुए लोगों की अटकी साँसों को? क्यों नहीं देखते उन्हें जिनके हलक तक रोटी जाकर रुक गयी है और आगे की यथास्थिति यह है कि जीवन अब अंत हो कि तब? सुबह उठकर चाय पीने की व्यस्तता में शाम की बोतल के साथ अस्त होने की प्रथाओं पर रोक लगा सको तो लगा लो| भविष्य जो बंजर हो रहा है उसे बचा सको तो बचा लो|
सच कहूं तो सुनो कि, जो युवा हैं उन्हें छोड़ दो प्रेमिका की याद में कसीदे गढने के लिए आप तो बस उम्र के लिहाज से अनुभव का प्राप्य बिखेर दो परिवेश में ताकि परिवेश याद रखे कि किसी जमाने में कोई कवि भी था, जिसने अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं की तिलांजलि देकर सामूहिक हित के लिए ऐसे-वैसे प्रयत्न किये थे|

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