Monday 6 May 2019

लौटकर आओ सखे

आज व्यथित मन ढूंढता है
शान्ति का कोना कोई
तुम मिलो तो बात हो कुछ
होना तेरा सब कहीं
है मुझे लगता जहां में
है नहीं तुझ सा कोई

रहती है तो दुनिया मे सब
नहीं तो जैसे कोई नहीं
जागता ही रहा मैं तन्हा
आंखें कब की सोई नहीं
तुम नहीं तो आज जैसे
इस जहां में हो न कोई


जिंदगी की दौड़ में हम
अक्सर हैं ठहरे हुए
सब सुनाई दे रहा अब
हैं मगर बहरे हुए
मौन हो तुम, शब्द गूँगे
ध्वनि नहीं हलचल कोई

तुम कहाँ हो, हो, जहां हो
लौटकर आओ सखे
व्यथित हृदय, थकित आँखें
रास्ते दे जाओ प्रिये
हो न हो कुछ हो ही जाए
कुछ और न समझे कोई

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